व्यापार

क्रूड ऑयल पर बढ़ी टेंशन, दाम और बढ़े तो हो सकती है मुश्किल

नई दिल्ली
 अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में तेजी देखी जा रही है। जल्द ही ये 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकता है। गुरुवार को ब्रेंट क्रूड ऑयल प्राइस 88.67 बैरल प्रति डॉलर के करीब ट्रेड कर रहा था। ऐसे में अपने ईंधन खपत को पूरा करने के लिए 80 फीसदी आयात पर निर्भर भारत के लिए आने वाले दिनों में कच्चा तेल मुश्किलों को बढ़ा सकता है। इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव पंकज जैन ने बुधवार को कहा कि कच्चे तेल का भाव 90 डॉलर प्रति बैरल की ओर बढ़ना भारत के लिए चिंता की बात है। जब भी कीमतें बढ़ती हैं, तो इससे चिंता होती है। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के बेंचमार्क ब्रेंट की कीमत लगभग चार महीनों में 15 डॉलर प्रति बैरल बढ़कर करीब 89 डॉलर प्रति बैरल हो गई है।

भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है और अपनी आवश्यकताओं का 88% आयात करता है। जैन ने कहा कि ऊंची कीमतों के असर का अंदाजा तभी लगाया जा सकता है, जब ये भाव लंबे समय तक बनी रहें। जैन ने कहा कि अगर कीमतें एक महीने या उससे अधिक समय तक इसी तरह रहती हैं, तो तेल कंपनियां इसी के हिसाब से निर्णय लेंगी।

 

कंपनियों ने घटाए हैं दाम

गौरतलब है कि भू-राजनीति घटनाक्रम भी कीमतों को बढ़ा रही हैं। सोमवार को सीरिया में ईरान दूतावास पर इस्राइली हमले में कुछ सीनियर ईरानी सैन्य अधिकारी मारे गए। ये तमाम बातें पश्चिम एशिया में संघर्ष को बढ़ा रही है। तेल कंपनियों से अपेक्षा की जाती है कि वे नियमित रूप से ईंधन की घरेलू कीमतों को अंतरराष्ट्रीय दरों के अनुरूप बनाएं। भारत की सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने हाल ही में पेट्रोल डीजल के दामों में 2 रुपये प्रति लीटर तक की कटौती की है। माना जा रहा कि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर दाम घटाए गए हैं। लेकिन कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी होने के बाद तेल कंपनियों की लागत बढ़ेगी। चुनावों के चलते बढ़ती लागत का भार वो आम लोगों के ऊपर नहीं डाल सकेंगे। ऐसे में तेल कंपनियों का नुकसान बढ़ सकता है।

चीनी-गेहूं की कीमतों पर लगाम की तैयारी

सरकार ने आम चुनाव से पहले चीनी और गेहूं की कीमतों पर लगाम लगाने कि लिए खास तैयारी शुरू कर दी है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि सरकार ने खाने-पीने की चीजों की कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए खेती से जुड़ी कंपनियों और कारोबारियों पर निगरानी बढ़ा दी है। सरकार ने लगभग 80 चीनी कंपनियों पर कार्रवाई की है, जिन्होंने अपने संबंधित कोटा से अधिक चीनी बेची हैं। गेहूं कारोबारियों को अपने स्टॉक का खुलासा करने के लिए कहा गया है। निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए चावल निर्यातकों को माल ढुलाई शुल्क पर भी निर्यात शुल्क का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने जनवरी में अलॉट किए गए मात्रा से अधिक चीनी बेचने के लिए कुछ बड़े चीनी उत्पादकों के अप्रैल के कोटे में से 25% की कटौती की है। इनमें बलरामपुर चीनी मिल और कोल्हापुर चीनी मिल शामिल हैं।

सरकार ने बढ़ाई सतर्कता

बता दें कि सरकार घरेलू बाजार में चीनी की बिक्री के लिए मासिक कोटा तय करती है। चीनी मिलों को नियमित आधार पर स्टॉक आदि के बारे में खुलासा करना आवश्यक है। ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आम चुनाव से पहले सतर्कता बढ़ाना महत्वपूर्ण है, ताकि ऐसी किसी भी शरारत को रोका जा सके जिससे कीमतों में वृद्धि हो सकती है। इससे पहले सीमा शुल्क विभाग ने पिछले 18 महीनों में निर्यात किए गए चावल पर शुल्क अंतर के भुगतान के लिए चावल निर्यातकों को नोटिस भेजा था। चावल के एक बड़े निर्यातक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'निर्यातक चावल के मुफ्त ऑन-बोर्ड मूल्य या सरकार द्वारा तय फ्लोर प्राइस के आधार पर 20% शुल्क का भुगतान कर रहे थे, लेकिन वे चाहते हैं कि हम पूरे रिमिटेंस पर शुल्क का भुगतान करें, जिसमें माल ढुलाई भी शामिल है।

Pradesh 24 News
       
   

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button