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आईआईटी-गुवाहाटी के अनुसंधानकर्ताओं ने नई जैविक कचरा प्रबंधन तकनीक ईजाद की

गुवाहाटी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी में अपशिष्ट प्रबंधन अनुसंधान समूह (डब्ल्यूएमआरजी) के अनुसंधानकर्ताओं ने जैविक कचरे के प्रबंधन में नगर निगमों की सहायता के लिए एक नया तरीका ईजाद किया है।

 जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार यह तकनीक 'रोटरी ड्रम कम्पोस्टिंग' (आरडीसी) को 'वर्मीकम्पोस्टिंग' (आरडीवीसी) को जोड़ने वाली है, जिसके परिणामस्वरूप एक कुशल और पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया होती है जिसके जरिए नगर निगम जैविक कचरे से बेहतर उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।

इस तकनीक का उपयोग जलकुंभी जैसे आक्रामक जलीय खरपतवार के पोषक तत्वों से भरपूर मृदा कंडीशनर (उर्वरक) का उत्पादन करने के लिए भी किया जा सकता है।

खुले कूड़ेदानों में जमा किए गए नगर निगम के ठोस कचरे में अक्सर 50 प्रतिशत से अधिक कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो दीर्घकालिक अपघटन के कारण पर्याप्त गर्मी पैदा करते हैं। विज्ञप्ति में कहा गया है कि इससे न केवल पर्यावरणीय चुनौतियां पैदा होती हैं बल्कि सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी बाधा आती है।

अन्य अपशिष्ट जैव विघटन तकनीक में दो से तीन महीने लगते हैं। इनकी तुलना में आरडीसी केवल 20 दिनों के भीतर विविध जैविक फीडस्टॉक (कच्चा माल) को पोषक तत्व-सघन खाद में परिवर्तित कर सकता है और नगरपालिका कचरे की मात्रा को 60-70 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

दूसरी ओर 'वर्मीकम्पोस्टिंग' एक बेहतर जैव विघटन प्रक्रिया है जिसमें परंपरागत रूप से न्यूनतम 60 दिनों की आवश्यकता होती है। 'वर्मीकम्पोस्टिंग' खाद बनाने की एक विधि है जिसमें जैव विघटन के लिए केंचुओं, कीड़ों का उपयोग किया जाता है।

बयान में कहा गया है कि दोनों प्रक्रियाओं के लाभों को मिलाकर आईआईटी गुवाहाटी में डब्लूएमआरजी ने दो-चरणीय जैव विघटन की एक अनूठी रणनीति विकसित की है।

अनुसंधान का नेतृत्व करने वाले आईआईटी गुवाहाटी में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अजय एस कलमधाड ने नई तकनीक के बारे में कहा, ''हमने आरडीसी तकनीक को अनुकूलित किया और जैव विघटन की अवधि को कम करने के लिए इसे वर्मीकम्पोस्टिंग के साथ जोड़ा।'' विज्ञप्ति में कहा गया है कि उत्पाद ऑनलाइन मंच अमेजन और इंडियामार्ट पर बिक्री के लिए उपलब्ध है।

Pradesh 24 News
       
   

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