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भारत के लिए Aditya L1 जरूरी क्यों, 4 महीनों में पहुंचेगा सूर्य के पास; जानें पूरी डिटेल्स

नई दिल्ली
चंद्रयान 3 के जरिए चांद की ठंडक देखने के बाद अब भारत गर्म सूर्य की ओर बढ़ रहा है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि सितंबर की शुरुआत में Aditya L1 मिशन लॉन्च किया जा सकता है। खबर है कि इस मिशन के जरिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO सूर्य पर मौजूद एनर्जी सोर्स के बारे में जानकारी जुटाएगा, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी है।

कितना होगा बजट और कब होगा लॉन्च
खबर है कि आदित्य एल1 मिशन में अनुमानित 424 करोड़ रुपये खर्च आया है। इसे 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से PSLV-C57 की मदद से लॉन्च किया जाएगा।

आदित्य एल1 के उद्देश्य
ISRO के अनुसार,
– सौर ऊपरी वायुमंडलीय (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) गतिकी का अध्ययन।
– क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल तापन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत, और फ्लेयर्स का अध्ययन
– सूर्य से कण की गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले यथावस्थित कण और प्लाज्मा वातावरण का प्रेक्षण
– सौर कोरोना की भौतिकी और इसका ताप तंत्र।
– कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान: तापमान, वेग और घनत्व।
– सी.एम.ई. का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति।
– उन प्रक्रियाओं के क्रम की पहचान करें जो कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) में होती हैं जो अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाती हैं।
– कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र माप।
– हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता।

क्यों जरूरी है सूर्य मिशन
कहा जा रहा है कि कई घटनाएं हैं, जिनके बारे में लैब में जानकारी नहीं जुटाई जा सकती। जबकि, सूर्य इस मामले में प्राकृतिक लैब के तौर पर काम करता है और जानकारी हासिल करने में मदद करता है। पृथ्वी का सबसे नजदीक तारा भी सूर्य को ही कहा जाता है। सूर्य पर कई विस्फोटकारी घटनाएं होती हैं और यह बहुत भारी मात्रा में एनर्जी छोड़ता है।

अब अगर ऐसी कोई विस्फोटकारी घटना पृथ्वी की दिशा में हुई, तो इसका असर पृथ्वी के पास अंतरिक्ष वातावरण पर पड़ सकता है। कई अंतरिक्षयान और संचार व्यवस्थाएं ऐसी गड़बड़ी का शिकार हो सकते हैं। ऐसे में पहले ही उपाय करना बेहद जरूरी है।

अब L1 की कहानी समझें
किसी ग्रह के ऑर्बिट या कक्षा के आसपास 5 स्थान होते हैं, जहां गुरुत्वाकर्षण बल और अंतरिक्ष यान, सूर्य और ग्रह की गतिविधियां एक स्थिर स्थान तैयार करती हैं, जहां से जानकारी जुटाई जाती है। इन बिंदुओं को लैग्रेंजियन या L पॉइंट्स कहा जाता है। 18वीं सदी के खगोलविद जोसेफ लुई लैग्रेंज के नाम पर इन बिंदुओं को पहचान दी गई है।

लैग्रेंज पॉइंट्स को L1, L2, L3, L4 और L5 के नाम से जाना जाता है। पृथ्वी से L1 की दूरी 15 लाख किमी दूर है। यह पृथ्वी-सूर्य की 151 लाख किमी दूरी का एक फीसदी है।

आदित्य एल1 मिशन के बारे में जानते हैं
इस सौर्य मिशन के तहत अंतरिक्षयान एल1 पॉइंट के आसपास हेलो ऑर्बिट की ओर बढ़ेगा। इसकी वजह वहां मौजूद सैटेलाइट है, जो बगैर किसी बाधा के सूर्य को देखती है। ऐसे में सूर्य पर होने वाली गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाने में यह मददगार होगी। आदित्य एल1 में 7 पेलोड होंगे, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और पार्टिकल डिटेक्टर्स से फोटोस्पीयर, क्रोमोस्पीयर और सूर्य की बाहरी परतों की जानकारी जुटाएंगे।  पेलोड्स कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियां और उनकी खासियतों के बारे में भी जानकारी देंगी।

सूर्य तक की यात्रा कैसे करेगा आदित्य एल1
ISRO का PSLV-C57 रॉकेट आदित्य एल1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाएगा। इसके बाद इसे और ओवल आकार में लाया जाएगा औरयान को ऑन बोर्ड प्रोपल्शन की मदद से एल1 पॉइंट की ओर भेजा जाएगा। इस यात्रा में जब अंतरिक्ष यान पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के स्पीयर ऑफ इंफ्लुएंस या SOI से बाहर हो जाएगा, तो क्रूज चरण शुरू होगा और यान को एल1 के पास हेलो ऑर्बिट में भेजा जाएगा। अंतरिक्ष यान को अपनी मंजिल तक पहुंचने में 4 महीनों का समय लगेगा।

 

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