कौन बनेगा कांग्रेस का हनुमान? राजस्थान से कर्नाटक तक मचा है घमासान; BJP से नहीं आपस में ही लड़ रहे नेता
नई दिल्ली
कांग्रेस दूसरों दलों से लड़ने की बजाय विभिन्न राज्यों में अपने असंतुष्ट नेताओं से जूझ रही है। ताजा मामला राजस्थान का है। चेतावनी के बावजूद राजस्थान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के खिलाफ जांच की मांग को लेकर अनशन किया। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव ने भी तेवर दिखाते हुए अपनी पुरानी मांगों को दोहराया है। वहीं, तमाम कोशिशों के बावजूद चुनावी राज्य कर्नाटक में वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच झगड़े से सत्ता की राह मुश्किल हो सकती है।
पार्टी में यह घमासान उस वक्त मचा है, जब कर्नाटक में 10 मई को वोट डाले जाएंगे। इसके कुछ माह बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। वर्ष 2024 से ठीक पहले होने वाले इन राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का रुख तय करेंगे। पार्टी इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने में विफल रहती है, तो उसके लिए लोकसभा चुनाव की लड़ाई और मुश्किल हो जाएगी। बावजूद इसके पार्टी नेताओं में रार थम नहीं रही है।
राजस्थान में सचिन पायलट के बगावती तेवर दिखाने के साथ कांग्रेस आलाकमान छत्तीसगढ़ को लेकर सक्रिय हो गया था, पर टीएस सिंहदेव ने पार्टी को संभलने का वक्त देने से पहले ही तेवर दिखाने शुरू कर दिए। सिंहदेव ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद के फॉर्मूले पर अमल चाहते हैं। बकौल सिंहदेव, बंद कमरों में जो बात होती है, उसकी मर्यादा बनाए रखना चाहिए। कभी मौका मिला, तो वह जरूर बताएंगे कि क्या बात हुई थी।
संकटमोचक की कमी
कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि उसके पास कोई संकटमोचक नहीं है। पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है, जिसकी बात पर सभी प्रदेश कांग्रेस के नेता भरोसा कर सकें और वह पार्टी आलाकमान से बातकर अपना वादा पूरा करा सके। पंजाब में पार्टी के कुछ नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और वरिष्ठ नेता नवजोत सिंह सिद्धू के झगड़े को सुलझाने की कोशिश की थी, पर इस प्रयास में पार्टी पंजाब में अपने हाथ जला बैठी।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, कांग्रेस के पास कई संकटमोचक होते थे पर अहमद पटेल के बाद कोई कुशल रणनीतिकार नहीं है। इसलिए कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में रार बढ़ रही है। वहीं, प्रदेश प्रभारी भी सभी गुटों को साथ लेकर चलने के बजाए एकतरफा निर्णय लेते हैं। इससे नाराजगी और बढ़ती है। पायलट की शिकायत के बाद पार्टी ने वर्ष 2020 में अविनाश पांडेय को प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त कर अजय माकन को जिम्मेदारी सौंपी थी। पायलट समर्थकों का आरोप था कि अविनाश पांडेय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कहने पर काम करते हैं। पांडेय की जगह जिम्मेदारी संभालने वाले अजय माकन को इसलिए पद छोड़ना पड़ा, क्योंकि गहलोत समर्थक उनसे खुश नहीं थे। छत्तीसगढ़ में भी कुछ ऐसा ही हुआ। पीएल पुनिया की जगह कुमारी शैलजा को जिम्मेदारी दी गई, पर टीएस सिंहदेव की नाराजगी बरकरार रही। पार्टी नेतृत्व झगड़े को खत्म करने में नाकाम रहा है।