जब NASA चीफ ने ISRO की तैयारी देख मांगी थी माफी, भारत आकर किए थे मिशन मून के MoU पर दस्तखत
नई दिल्ली
बात साल 2006 की है। जी माधवन नायर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष थे। उस वक्त अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी-नासा के चीफ माइकल ग्रिफिन थे। 30 सालों बाद भारत दौरे पर आने वाले वह पहले नासा चीफ थे। 9 से 11 मई 2006 को वह दो दिनों के भारत दौरे पर आए थे। इस दौरान उन्होंने इसरो के तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लॉन्चिंग सेंटर और थुंबा स्पेस म्यूजियम का दौरा किया था। इसरो की इन दोनों केंद्रों पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा था।
जॉर्ज बुश ने लगाया भा इसरो पर प्रतिबंध
1992 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ISRO पर दो साल का प्रतिबंध लगा दिया था। इतना ही नहीं, उस समय अमेरिका ने रूस पर दबाव बनाकर उसे ISRO के साथ क्रायोजेनिक इंजन तकनीक साझा करने से भी रोक दिया था। अमेरिका की इन सभी कोशिशों का मकसद भारत को मिसाइल विकसित करने की तकनीक हासिल करने से रोकना था। यह प्रतिबंध 6 मई 1992 से 6 मई 1994 तक रहे थे।
क्यों लगाया था प्रतिबंध
यहां यह भी दिलचस्प बात है कि अमेरिका ने यह प्रतिबंध इसलिए लगाया था कि भारत सैटेलाइट लॉन्च करने वाला रॉकेट नहीं बना सके लेकिन प्रतिबंधों के बावजूद इसरो GSLV बनाने में कामयाब रहा था। बाद में उसी क्रायोजेनिक इंजन वाले PSLV ने नासा के सैटेलाइट्स को भी अंतरिक्ष में भेजा।
नासा चीफ ने मांगी थी माफी, MoU पर भी दस्तखत
इसी दौरे पर नासा प्रमुख ग्रिफिन ने भारत के पहले मून मिशन, चंद्रयान-1 में दो अमेरिकी वैज्ञानिक उपकरणों को शामिल करने पर इसरो चीफ जी माधवन नायर के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। MoU पर दस्तखत के बाद प्रेस कॉन्फ्रेन्स में जब उनसे पूछा गया कि नासा प्रमुख को भारत आने में इतना समय क्यों लगा और क्या ऐसी यात्राओं पर "स्व-प्रतिबंध लगाया गया" था, तो उन्होंने कहा था कि ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं थे। हालांकि, उसी मीडिया ब्रीफिंग में ग्रिफिन ने 1992 से 1994 के बीच इसरो पर लगाए गए प्रतिबंधों के लिए माफी भी मांगी थी। उन्होंने कहा था: "मुझे अतीत के बारे में खेद है लेकिन मैं भारतीय अंतरिक्ष की प्रभावशाली क्षमताओं और भारतीय तकनीक की निखरती क्षमताओं के बारे में निश्चित रूप से एक अच्छा शब्द ही सामने रखूंगा।"
ISRO के वैज्ञानिकों-इंजीनियरों से मिलकर झूम उठे
तब बेंगलुरु में ही नासा चीफ ने कहा था कि वह भारत की प्रभावशाली अंतरिक्ष सुविधाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखकर, उनके वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से मिलकर और उल्लेखनीय कार्यों के बारे में जानकर बहुत आह्लादित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि चंद्रयान-1 वास्तव में एक अंतरराष्ट्रीय मिशन है, जिसमें यूरोप के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के पेलोड भी शामिल हैं।
चंद्रयान-1 में नासा के थे दो पेलोड
चंद्रयान-1 में नासा के दो पेलोड भेजे गए थे। इसमें मून मिनरलॉजी मैपर भी शामिल है, जिसे चंद्र खनिज संसाधनों की तलाश के लिए डिज़ाइन किया गया था, और मिनी-एसएआर नामक एक उपकरण, जो चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के भंडार की तलाश करने के लिए डिजायन किया गया था। इसरो के काम से गदगद नासा चीफ ने तब भविष्य में भारत के साथ अंतरिक्ष के क्षेत्र में साझेदारी की कहानी लिख दी थी।
उन्होंने कहा था, "यह मेरी आशा और विश्वास है कि जैसे-जैसे हम पूरे सौर मंडल में मानव सभ्यता की पहुंच बढ़ाएंगे, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत कई तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण और वैज्ञानिक रूप से पुरस्कृत परियोजनाओं में भागीदार बनेंगे।" इस समझौते के बाद 2008 में भारत ने PSLV की सहायता से चंद्रयान-1 चांद पर भेजा था। इसके बाद 2019 में चंद्रयान-2 भेजा गया था, जिसकी सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी थी। आज भारत अमेरिका, रूस और चीन के बराबर खड़ा होने जा रहा है। इसरो का चंद्रयान-3 आज शाम 6 बजे के करीब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने जा रहा है।