राजनीति

महाराष्ट्र आखिर में चल क्या रहा है? अजित पर नरम पड़े शरद पवार, उद्धव भी कर रहे तारीफ…

मुंबई

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अजित पवार की तारीफ की है. शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिए इंटरव्यू में उद्धव ने महाराष्ट्र सरकार में डिप्टी सीएम अजित पवार को ईमानदारी से काम करने वाला नेता बताया है. उन्होंने अजित को कुशल प्रशासक बताते हुए कहा है कि सूबे में जब महाविकास अघाड़ी की सरकार थी, तब उन्होंने अपनी जिम्मेदारी वाले विभाग बेहतर तरीके से संभाले थे.

उद्धव ठाकरे का ये बयान ऐसे समय में आया है जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पर अजित के दावे को लेकर चुनाव आयोग ने शरद पवार से जवाब मांगा है. अजित के साथ तीन मुलाकातों के बाद शरद पवार का रुख भी नरम हुआ है. शरद पवार के रुख ने उनके समर्थक विधायकों को भी असमंजस में डाल दिया है. शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख ने पिछले हफ्ते अजित पवार से उनके दफ्तर पहुंचकर मुलाकात भी की थी. पहले मुलाकात और फिर अब तारीफ, कहीं ये महाराष्ट्र में बनते किसी नए समीकरण की ओर इशारा तो नहीं?

उद्धव कहीं मध्यस्थ की भूमिका में तो नहीं?

उद्धव ठाकरे एक तरफ अपनी ही बनाई पार्टी में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे शरद पवार के साथ नजर आते हैं. दूसरी तरफ, एनसीपी में टूट की वजह माने जा रहे अजित पवार की तारीफ भी कर रहे हैं, दफ्तर पहुंचकर मुलाकात कर रहे हैं. उद्धव की अजित से मुलाकात और अब तारीफ कहीं चाचा-भतीजे की रार समाप्त कराने की दिशा में कदम आगे बढ़ने का इशारा तो नहीं? उद्धव कहीं मध्यस्थ की भूमिका में तो नहीं आ गए हैं?

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अजित पवार पिछले दिनों लगातार तीन दिन चाचा शरद पवार से मुलाकात करने उनके घर पहुंचे थे. अजित पहले दिन अपनी पत्नी और बेटे के साथ शरद पवार की बीमार पत्नी का हाल जानने पहुंचे थे. इसके बाद अगले दो दिन अजित छगन भुजबल और प्रफुल्ल पटेल के साथ ही अपने गुट के कई विधायकों को भी साथ लेकर. अजित पवार से एक के बाद एक तीन मुलाकात के बाद शरद पवार के सुर नरम पड़े हैं.

दूसरी तरफ, उद्धव ठाकरे पूरे घटनाक्रम के दौरान शरद पवार के साथ खड़े नजर आए. उद्धव और शरद पवार विपक्षी गठबंधन की बैठक में भी पहुंचे थे और अगली बैठक मुंबई में ही होनी है जिसके मेजबान भी उद्धव और शरद पवार की पार्टी होगी. अजित को लेकर शरद पवार की नरमी की वजह से उनके समर्थक विधायक पहले से ही असमंजस में हैं. शरद पवार गुट के विधायक विधानसभा के चालू सत्र में शामिल होने जा तो रहे हैं लेकिन कार्यवाही के दौरान सदन में नहीं पहुंच रहे. इस असमंजस को उद्धव के बयान ने और गहरा कर दिया है.

अजित के सहारे शिंदे गुट को बौना करने का मौका

वरिष्ठ पत्रकार अशोक ने कहा कि उद्धव का ये रुख अजित की एंट्री से महाराष्ट्र सरकार में शिंदे गुट के कम होते प्रभाव का परिणाम भी हो सकता है. अजित की सरकार में एंट्री के बाद शिंदे पर बीजेपी की निर्भरता कम हुई है. शिंदे खेमे के विरोध के बावजूद अजित वित्त मंत्रालय की मांग पर अड़े रहे और अंत में लेकर ही माने.

उद्धव ठाकरे को अजित पवार के सरकार में शामिल होने के बाद विपक्ष में रहते हुए एकनाथ शिंदे के पर कतरने का मौका दिख रहा है. उद्धव की रणनीति अजित की महत्वाकांक्षा को और हवा देकर शिंदे खेमे की सियासत कमजोर करने की भी हो सकती है. कभी शरद पवार के सबसे भरोसेमंद नेताओं में शामिल रहे प्रफुल्ल पटेल ने भी कह दिया है कि अभी भले ही ये संभव नहीं है लेकिन अजित पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे. प्रफुल्ल पटेल भी अजित के साथ हैं.

खजाने की बात कर क्या मैसेज देना चाहते हैं उद्धव

उद्धव ने अजित की तारीफ करते हुए महाराष्ट्र के खजाने की चाबी उनके (अजित के) पास होने का जिक्र करते हुए कहा है कि वे महाराष्ट्र के लोगों की भलाई के लिए काम करें. उद्धव का महाराष्ट्र के खजाने की चाबी यानी वित्त मंत्रालय की ओर इशारा करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जब शिंदे के नेतृत्व में उनकी पार्टी के विधायकों ने बगावत की थी तब इसी को मुख्य आधार बनाया गया था.

शिवसेना विधायकों ने आरोप लगाया था कि अजित पवार उन्हें पर्याप्त फंड नहीं दे रहे. वे शिवसेना को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. शिंदे समर्थक विधायकों ने जिन अजित के पास वित्त मंत्रालय होने को लेकर अलग राह अपना ली, वही अजित उनके नेतृत्व वाली सरकार में वित्त मंत्री भी बना दिए गए. उद्धव भी चुनाव में इस मुद्दे को उछालेंगे, ये बयान इसी तरफ इशारा है.

एनडीए में वापसी का रास्ता तैयार कर रहे उद्धव?

सियासी गलियारों में अटकलें ये भी हैं कि क्या अजित के सहारे उद्धव कहीं एनडीए में वापसी का रास्ता तैयार करने की कोशिश तो नहीं कर रहे? बीजेपी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए 2024 के चुनाव से पहले कुनबा बढ़ाने के मिशन में जुटा है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पहले एनडीए का हिस्सा रहे दलों को ये संदेश दे चुके हैं कि सभी के लिए दरवाजे खुले हुए हैं. हमने किसी को बीच में नहीं छोड़ा. जो छोड़कर गए हैं, उन्हें तय करना है कि वे कब वापस आना चाहते है. उद्धव की अजित से मुलाकात हो या अब शान में कसीदे पढ़ना, बीजेपी अध्यक्ष के बयान के बाद ही हुआ है.

बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़े, पशुपति पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए में एक ही गठबंधन तले आ गए हैं. ऐसे में अटकलें ये भी हैं कि महाराष्ट्र में भी क्या बिहार की तर्ज पर राजनीतिक समीकरण फिर से करवट लेगा? हालांकि, जानकार फिलहाल उद्धव के एनडीए में शामिल होने की संभावनाओं को शून्य बता रहे हैं. उद्धव के मन में क्या है, ये तो वही जानें लेकिन राजनीति में कब दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन जाए, कहा नहीं जा सकता.

Pradesh 24 News
       
   

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