छत्तीसगढ़ में क्या है भाजपा का ‘विजय प्लान’; कैसे भूपेश बघेल की बढ़ा दी है टेंशन
रायपुर
छत्तीसगढ़ की राजनीति में दुर्ग जिले का पाटन काफी हाईप्रोफाइल सीट हो गया है। यह सीट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विधानसभा सीट है। यह तो तय था कि भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा छत्तीसगढ़ और खासकर पाटन में कोई बड़ी चाल चलेंगे। भाजपा ने पाटन में आंतरिक सर्वे कराया था जिसमें ओबीसी या आरएसएस से जुड़ा चेहरा उतारने की बात कही गई थी। सीएम भूपेश बघेल को घेरने को कोई बड़ा चेहरा नहीं दिख रहा था। पाटन में मजबूत पकड़ रखने वालों में विजय बघेल का नाम ही सबसे ऊपर था। लिहाजा भाजपा ने छत्तीसगढ़ियावाद के बलबूते आगे बढ़ रहे भूपेश को रोकने उनके भतीजे को मैदान में खड़ कर दिया। मजबूत उम्मीदवार देकर भाजपा की कोशिश है कि भूपेश बघेल को पाटन पर अधिक फोकस करने पर मजबूर किया जाए और वह प्रदेशभर में कम घूम सकें।
बता दें कि पाटन से भूपेश बघेल के अजय योद्धा वाली रफ्तार पर 2008 में भाजपा के रथ पर सवार विजय बघेल ने ही ब्रेक लगाया था। छत्तीसगढ़ की राजनीति में ताकतवर चेहरा बनकर उभरे भूपेश बघेल को भारतीय जनता पार्टी द्वारा पाटन विधानसभा में घेरने की बड़ी रणनीति बनाई गई है। भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा है विजय बघेल को पाटन से भाजपा का प्रत्याशी बनाया जाना। दरअसल, विजय बघेल सालभर पहले से ही यह बात सार्वजनिक तौर पर कह रहे थे कि मौका मिला तो वे पाटन से ही चुनाव लड़ेंगे। और अब भाजपा ने उन्हें मौका दे भी दिया है। भाजपा की सूची जारी होने के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता रणनीति बनाने में भी जुट गए हैं। कई राजनीतिक उठापटक भी देखने को मिलेंगे।
चाचा-भतीजा क्यों बने चीर प्रतिद्वंद्वी
पहले चाचा (भूपेश बघेल) और भतीजा (विजय बघेल) दोनों कांग्रेस में साथ-साथ थे। सन 2000 में नए नवेले भिलाई चरोदा निगम में कांग्रेस से टिकट को लेकर बगावत हो गई। चाचा ने अपने चाचा (स्व. दाऊ श्री श्यामाचरण बघेल) को टिकट दे दिया। विरोध में विजय बघेल ने कांग्रेस छोड़ निर्दलीय ताल ठोक दिया। कांग्रेस-भाजपा के नेताओं को टक्कर देकर बड़े अंतर से जीत भी गए। पांच साल तक भिलाई-चरोदा नगर पालिका के अध्यक्ष रहे। यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गृह क्षेत्र है और नगर पालिका अब नगर निगम बन चुका है।
चौथी बार आमने-सामने होंगे भूपेश-विजय
मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल ने पाटन का विकास किया है। यह कांग्रेस का बड़ा हथियार है। लोग मानते हैं कि साढ़े चार साल में पाटन की तस्वीर और तकदीर दोनों बदली है। 23 साल की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विजय बघेल के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन जब से भाजपा ने विजय बघेल को चुनाव घोषणा पत्र समिति का संयोजक बनाकर प्रदेश भाजपा का बड़ा चेहरा बनाया है तब से मुख्यमंत्री भी अब बोलने लगे हैं। पाटन विधानसभा सीट पर भूपेश बघेल और विजय बघेल तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं। चह चौथी बार चुनाव लड़ेंगे।
भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ियावाद का तोड़
भाजपा विजय बघेल के भरोसे मुख्यमंत्री को पाटन में ही घेर देने का पूरा प्रयास करेगी। वहीं भाजपा के आम कार्यकर्ता पाटन के मतदाताओं को यह संदेश देंगे कि यदि मुख्यमंत्री को विजय बघेल ने हरा दिया तो वे ही छत्तीसगढ़ के अगले मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। भाजपा को इससे दोहरा लाभ होगा। भाजपा राष्ट्रवाद के रथ पर सवार रहेगी और छत्तीसगढ़ियावाद के बूते छत्तीसगढ़ के जनमन में गहरे तक उतर चुके भूपेश बघेल कड़ी टक्कर देने का प्रयास करेगी।
हारे तो CM से हारे, जीते तो सोने पर सुहागा
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज पूरे भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। पाटन की सीट पर विजय बघेल को उतारने का कितना राजनीतिक असर होगा यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन सांसद विजय बघेल छत्तीसगढ़ भाजपा में एक बड़ा चेहरा जरूर बन गए हैं। पहले लोकसभा का टिकट, जिसमें रिकॉर्ड 3 लाख से ज्यादा मतों से ऐतिहासिक जीत, फिर छत्तीसगढ़ भाजपा के चुनाव समिति के संयोजक बने। राष्ट्रीय नेतृत्व भी कहीं न कहीं विजय बघेल को लेकर छत्तीसगढ़ में कुछ संभावना टटोल रहा है। भाजपा ने रणनीति के तहत विजय बघेल को पाटन से टिकट दिया, ताकि सीएम को उसके क्षेत्र में घेरा जा सके। अगर हारे तो कोई बात नहीं, क्योंकि छत्तीसगढ़ के सीएम से हारे, जीते तो सोने पर सुहागा।
राकांपा की टिकट पर भी दिया था टक्कर
2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने हाथ का साथ छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया। विजय बघेल भी स्व. विद्याचरण शुक्ल के साथ राकांपा की नाव पर सवार हो गए। उन्हें पाटन से टिकट मिला। कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल को जमकर टक्कर दी, लेकिन भूपेश बघेल लगातार तीसरी बार जीतकर अपने नाम रिकॉर्ड दर्ज कर लिया। 2008 में दोनों फिर आमने-सामने हुए। इस बार विजय बघेल को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया। विजय बघेल ने भूपेश बघेल को हराकर उनके लगातार जीतने के रिकॉर्ड पर ब्रेक लगा दिया।