आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग को लेकर वीपीपी प्रमुख की भूख हड़ताल 9 वें दिन भी जारी
शिलांग
मेघालय में 1972 की आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग को लेकर विपक्षी दल 'वॉयस ऑफ द पीपल्स पार्टी' (वीपीपी) के अध्यक्ष अर्देंट बसाइवमोइत की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल 9 वें दिन भी जारी है।
मेघालय के उपमुख्यमंत्री स्निआवभलंग धर का कहना है कि सरकार मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा के राज्य लौटने के बाद आरक्षण नीति पर विचार करेगी।
वीपीपी नेता की मांग है कि खासी और गारो समुदायों के लोगों के बीच नौकरियों के 40-40 अनुपात की आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की जाए। उन्होंने राज्य सरकार के वार्ता के अनुरोध को ठुकरा दिया।
बसाइवमोइत ने कहा कि उनकी पार्टी तभी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल वापस लेगी, जब सरकार 1972 की नौकरी आरक्षण नीति की समीक्षा करने के लिए तैयार हो।
वीपीपी प्रमुख ने कहा, ''हमने सरकार के सामने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। यदि सरकार अब भी अड़ी रहती है, तो मैं तब तक इस जगह से नहीं जाऊंगा, जब तक सरकार नौकरियों में आरक्षण संबंधी मौजूदा नीति की समीक्षा करने का फैसला नहीं करती।''
उन्होंने कहा कि पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि नौकरी में आरक्षण का अनुपात राज्य की जनसंख्या संरचना के अनुसार होना चाहिए।
धर ने कहा, ''हम मुख्यमंत्री के लौट आने के बाद इस (आरक्षण नीति) पर फैसला करेंगे।''
उपमुख्यमंत्री ने कहा, ''यह मामला संवेदनशील है और इस पर गहन चर्चा करने की आवश्यकता है, लेकिन इसे लेकर सड़कों पर नहीं, बल्कि बैठकर बात होनी चाहिए।''
धर ने मंगलवार को मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक में वीपीपी अध्यक्ष की अनुपस्थिति की भी आलोचना की।
धर ने कहा, ''अगर उन्होंने (सर्वदलीय दल की बैठक में) भाग लिया होता तो वह इस मामले पर अपने विचार साझा कर सकते थे।''
राज्य सरकार द्वारा 1972 से ही गारो और खासी समुदाय के लिए 40-40 फीसदी नौकरियां आरक्षित हैं, जबकि पांच फीसदी नौकरियां राज्य में रहने वाली अन्य जनजातियों के लिए और शेष 15 फीसदी नौकरियां सामान्य वर्ग के लिए हैं।
वीपीपी का कहना है कि यह नीति खासी जनजाति के लिए अनुचित है, जिसकी आबादी पिछले कुछ वर्षों में गारो जनजाति से अधिक हो गई है।
पार्टी का कहना है कि मौजूदा नीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है क्योंकि उप-जनजातियों (जयंतिया, वार, भोई और लिंगंगम) से बनी खासी की आबादी गारो लोगों से अधिक है।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, मेघालय में 14.1 लाख से अधिक खासी रहते हैं, जबकि गारो लोगों की संख्या 8.21 लाख से कुछ अधिक है।