बूंदी, नाथद्वारा और पहाड़ी शैली की पुराणों पर आधारित चित्रकथाओं से सजेगा त्रिवेणी संग्रहालय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 103वें एपिसोड में खुशी जाहिर की
भोपाल
उज्जैन के त्रिवेणी संग्रहालय में पुराणों पर आधारित आकर्षक चित्रकथाएँ देखने को मिलेंगी। यहाँ देश के 18 चित्रकार चित्रकथाएँ बनाने में जुटे हैं। ये चित्र बूंदी शैली, नाथद्वारा शैली, पहाड़ी शैली और अपभ्रंश शैली जैसी कई विशिष्ट शैलियों में बनेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 103वें एपिसोड में त्रिवेणी संग्रहालय में चल रहे इस काम की चर्चा करते हुए खुशी जाहिर की थी।
क्या विशेष है त्रिवेणी कला संग्रहालय में ?
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा भारतीय सनातन संस्कृति के अनादिदेव शिव, शक्ति स्वरुपा भगवती दुर्गा और लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण के विविध कथा आख्यानों को पुरातन तथा वर्तमान समय की कलाओं के माध्यम से सृजित करने का प्रयास किया गया है। यहाँ सनातन परंपरा की तीन शाश्वत धाराओं को समावेशित किया गया है।
उज्जैन में इन तीनों ही ज्ञान परंपराओ के प्रत्यक्ष प्रमाण यथा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, हरसिद्धी शक्तिपीठ और श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली सान्दीपनि आश्रम के रुप में देखे जा सकते हैं। उज्जयिनी के इसी पौराणिक महत्व को दृष्टिगत रखते हुए वर्ष 2016 में आयोजित सिहंस्थ महाकुंभ के अवसर पर इस संग्रहालय की स्थापना की गई। इसका यह नाम 'त्रिवेणी' इन तीनों ही परंपराओं के समावेश को परिलक्षित करता है। त्रिवेणी शैव, शाक्त व वैष्णव परंपराओं पर आधारित कला विविधताओं का ललित संसार है।
संग्रहालय में क्रमशः शैव, शाक्त व वैष्णव दीर्घाओं के माध्यम से पुरातात्विक प्रतिमाओं एवं सांस्कृतिक प्रतिकृतियों का समावेश बहुविध भारतीय कलारूपों में किया गया है। पुरातत्व की दीर्घाओं में मालवांचल के क्षेत्रों से एकत्रित किए गए शिल्प, सिक्के आदि महत्वपूर्ण पुरावेश उनकी समकालीन विशेषताओं के साथ प्रदर्शित हैं। यहाँ शैवायन, कृष्णायन और दुर्गायन दीर्घाओं में क्रमशः शिव, देवी और विष्णु (कृष्ण) से संबंधित पुरातन मूर्तियों और प्रतीकों को सुरक्षित ढंग से प्रदर्शित किया गया है।
नंदी की प्रतिमा मुख्य आकर्षण का केन्द्र
शिव दीर्घा में स्थित खड़े नंदी की 2000 साल पुरानी प्रतिमा मुख्य आकर्षण का केन्द्र है जो हमारे अतीत के कला मनीषियों की अतुलनीय प्रतिभा की परिचायक है इसके अतिरिक्त यहाँ की मूर्तियों और शिल्पों के माध्यम से उज्जयिनी में पुरातन समय से ही शैव मत की महत्वता को समझा जा सकता है।
प्रथम तल पर स्थित दीर्घाओं को भी त्रिवेणी की प्रकृति के आधार पर तीन भागों (शैव, शाक्त और वैष्णव) में विभक्त किया गया है किन्तु यहाँ महत्वपूर्ण भारतीय पुराणों / ग्रन्थों पर आधारित कथा आख्यानों और ऐतिहासिक घटनाओं का प्रदर्शन, भारत की पारंपरिक चित्रशिल्प शैलियों के माध्यम से किया गया है।
शिव दीर्घा में विक्रमादित्य के कालखण्ड की उज्जयिनी को दिखाया गया है। शिव पुराण में वर्णित कथाओं का प्रदर्शन हिमाचल प्रदेश की बसोहली, कांगड़ा, गुलेर चित्र शैलियों के माध्यम से किया गया है। इसी प्रकार शक्ति और कृष्ण की दीर्घाओं में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के चित्रों तथा शिल्पों का समावेश है। यह सभी आख्यान, शिल्प और प्रतीक हमें न सिर्फ सनातन संस्कृति की परंपराओं, धार्मिक क्रियाओं तथा मान्यताओं से अवगत कराते हैं बल्कि इनके भीतर के उन गूढ़ रहस्यों को भी उजागर करते हैं जो हमारे पूर्वजों ने पुराणों में संजोए है।