ऑक्सीजन में मिलावट से जा सकती है जान, सिलेंडर की शुद्धता बता देगी आईआईटी की ये किट
कानपुर
आईआईटी कानपुर की एक खास किट अब यह भी बताएगी कि सिलेंडर में भरी ऑक्सीजन कितनी शुद्ध है। इससे सिलेंडर में मिलावटी गैस की वजह से किसी मरीज की जान नहीं जाएगी। साथ ही गैस खत्म होने के कगार पर किट अलार्म भी बजाएगी, जिससे पहले ही पैरामेडिकल स्टाफ को जानकारी मिल जाएगी। इस किट को तैयार किया है आईआईटी व सीएसजेएमयू के इंक्यूबेटर प्रियरंजन तिवारी ने। उन्होंने इसका नाम ऑक्सीजन प्योरिटी मीटर रखा है। प्रियरंजन ने बताया कि यह उपकरण पूरी तरह स्वदेशी और कम कीमत का है। यह पहला प्योरिटी मीटर है, जिसे मेडिकल को ध्यान में रख बनाया गया है। पहले ये मीटर विदेशों में इंडस्ट्री की जरूरतों को देखते हुए तैयार किया जाता रहा है।
कोविड में किल्लत बढ़ी तब शुरू हुआ शोध
प्रियरंजन ने बताया कि 2020 में जब कोरोना संक्रमण फैला और अचानक ऑक्सीजन की किल्लत शुरू हुई तो लोगों ने इंडस्ट्री में प्रयोग होने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर का भी उपयोग शुरू कर दिया। तब एक बड़ा सवाल सामने आया कि सिलेंडर में भरी ऑक्सीजन कितनी शुद्ध है, इसे कैसे मापा जाए। इसी सवाल के बाद प्रियरंजन ने शोध शुरू किया। करीब एक साल की रिसर्च के बाद सफलता मिली।
जीएसवीएम समेत 12 अस्पताल में चल रहा ट्रायल
प्रियरंजन ने बताया कि ऑक्सीजन प्योरिटी मीटर का ट्रायल कानपुर स्थित जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अलावा पुणे, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु समेत 12 अस्पतालों में चल रहा है। यह उपकरण का अंतिम ट्रायल है। इसके बाद यह बाजार में उपलब्ध होगा।
काफी सस्ती है किट
प्रियरंजन ने बताया कि इस किट की कीमत सिर्फ 30 हजार रुपये है। फिलहाल ऑक्सीजन की शुद्धता की जांच करने वाली मशीन की कीमत एक लाख रुपये से अधिक है, जिन्हें विदेशों में बनाया जा रहा है।
प्रमुख तथ्य
– कोरोना संक्रमण के दौरान शुरू हुई रिसर्च
– एक साल में पूरी हुई रिसर्च, कीमत 30 हजार
– 12 अस्पतालों में चल रहा है ट्रायल
– ऑक्सीजन की शुद्धता सिलेंडर में उपलब्धता पर करेगी अलर्ट, गैस खत्म होने पर अलार्म
– अभी तक विदेशी कंपनियां इंडस्ट्री को ध्यान में रख बना रही थीं प्योरिटी मीटर
और प्रभावशाली बनाने पर चल रही रिसर्च
कानपुर में बर्रा के रहने वाले प्रियरंजन तिवारी मूलत बलिया में बैरिया के हैं। इनके पिता रमेशन कुमार तिवारी हैं। प्रियरंजन ने बताया कि अभी रिसर्च और चल रही है। मीटर में शुद्धता बताने के साथ कई अन्य बीमारियों में प्रयोग करने के लिए बदलाव किया जा रहा है।