भारत में ऐसा गांव जहां आज भी नहीं है बिजली, फोन तो दूर…लोगों ने बल्ब भी नहीं देखे
नई दिल्ली
अगर आपको यह सुनने को मिले कि आज के जमाने में भारत जैसे विशाल देश के एक गांव में कभी बिजली नहीं आई तो आप सुनकर हैरान रह जाओगे। सरकारें हर क्षेत्र में विकास करने का दावा करती हैं, लेकिन देश में भुवनेश्वर से सिर्फ 20 किमी दूर ढोलकाठ नाम का गांव आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य पेयजल जैसी जरूरी सुविधाओं में भी पिछड़ा है।
एक तरफ जहां आज सोशल मीडिया पर दुनिया रील्स बनाने में व्यस्त है, तो वहीं इस गांव के लोग आजतक बिजली से वंचित हैं। टीवी, स्मार्ट फोन, कंप्यूटर तो दूर की बात है, किसी ने आज तक सोलर बल्ब आदि जैसी चीज का भी इस्तेमाल नहीं किया है। गंभीर बात यह है कि तापस का गांव किसी दुर्गम इलाके में नहीं बल्कि ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर है। सिल्वर सिटी कटक जिला के बांकी-डमपड़ा अभयारण्य के अंतर्गत ढोलकाठ नाम के इस गांव में 600 के करीब आदिवासी लोग पीढ़ी दर पीढ़ी रहते आ रहें हैं।
बुनियादी न्यूनतम आवश्यक्ताओं को भी तरसे लोग
सिर्फ बिजली ही नहीं बल्कि, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, शौचालय, साफ पेय जल जैसी न्यूनतम आवश्यक्ताओं से भी यह गांव वंचित है। ग्रामीणों का कहना हैं, 1982 में जब इस इलाके को अभयारण्य घोषित किया गया, तब गांववालों को उम्मीद की किरण दिखाई गई थी, पर 1982 से लेकर आजतक ढोलकाठ के समेत आस पास के पांच गांव बुनियादी न्यूनतम आवश्यक्ताओं को भी तरस रहे हैं। करीब 10 साल पहले प्रशासन व वन विभाग के कर्मचारी समझा बुझाके कुछ लोग व्यवस्था पर भरोसा कर विस्थापित होने को राजी हो गए लेकिन आज तक सरकार ने उन्हें कोई सुविधा या रोजगार की व्यवस्था नहीं दिलाई। ग्रामीणों का कहना हैं, अगर सरकार उनकी शर्तों को पूरा करने को तैयार हैं, तो वे विस्थापित होने को राजी हैं। इसके विकल्प न्यूनतम सुविधाओं के साथ बिजली की व्यवस्था के लिए उनके गांव को सोलर गांव में रूपांतरित किया जाए तो गांववालों के जीवन में सुधार आ सकता हैं।
एक ही स्कूल में एक तरफ पहली से 5वीं की कक्षा, दूसरी तरफ आंगनवाड़ी
गांव में एकमात्र सरकारी प्राथमिक विद्यालय है। यहां एक तरफ पहली से 5वीं कक्षा तक और दूसरी तरफ आंगनवाड़ी की क्लास लगती हैं। जीने के लिए गांव के लोग 4 माह सब्जी की खेती करते हैं। गांव जंगल के अंदर होने के कारण अकसर जंगली हाथी, सूअर आदि फसल नष्ट कर देते हैं। इसके आलावा ग्रामीण जंगल से लकड़ी इकट्ठा कर उसे बेच कर अपने रोजगार का प्रबंध करतें हैं।