छत्तीसगढराज्य

हर दौर की कला में दिखता है तत्कालीन समाज का प्रतिबिम्ब

रायपुर

कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन की ओर से तीन दिवसीय कला पर्व के आखिरी रविवार की शाम कला चर्चा के बाद युवा कलाकारों की शास्त्रीय संगीत की महफिल सजी।

इस त्रिदिवसीय आयोजन के समापन पर रविवार को शाम 4 बजे से 6 बजे तक चित्रकार अखिलेश से डॉक्टर विकास चंद्र एवं कला विद्यार्थियों की बातचीत महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय के सभागार में हुई। इस बातचीत में कला से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। युवा विद्यार्थियों ने चित्रकला में प्राचीन काल से अब तक के बदलावों पर बात की।

सवालों का जवाब देते हुए अखिलेश ने कहा कि मुख्यत: सामाजिक बदलाव ही हर कला में बदलाव की वजह होता है। जैसा समाज होता है, उसी का प्रतिबिम्ब हमें उस दौर की कला में दिखता है। एक सवाल के जवाब में अखिलेश ने कहा कि चित्र में उसका सौंदर्य बोध मुख्य तत्व होता है और सौंदर्य बोध की परिभाषा विभिन्न चित्रों में विभिन्न प्रकार से होती है। काला रंग ,लाल रंग या कोई भी रंग सौंदर्य का प्रतीक बन सकता है। यह चित्रकार के प्रस्तुतीकरण पर निर्भर करता है।

इस दौरान चित्रकार भानु प्रकाश दास, विकास चंद्रा, हरि सेन, उमाकांत ठाकुर, विजया त्रिपाठी, कला निर्देशक ज्ञानदेव सिंह एवं इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से आए ललित कला के विद्यार्थी शामिल हुए। कला अकादमी के अध्यक्ष योगेंद्र त्रिपाठी ने इस बातचीत को सार्थक निरूपित करते हुए उम्मीद जताई कि इसका लाभ चित्रकला के विद्यार्थियों को जरूर मिलेगा।

आयोजन की अंतिम कड़ी के रूप में शाम 6 बजे से प्रारंभ के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के युवा कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। किशन देवांगन ने  राग मुल्तानी में बंदिश पेश की। उनके साथ हारमोनियम पर  अमित कुमार सूर्यवंशी, तबले पर  रामचंद्र सर्पे और तानपुरे पर रूपांश पवार ने संगत की। रायपुर के डॉक्टर के रोहन नायडू का वायलिन वादन दर्शकों ने सराहा। जिसमें उन्होंने राग मारू बिहाग पेश किया। वहीं बड़ा ख्याल ताल एकताल में और छोटा ख्याल ताल त्रिताल में निबद्ध था। द्रुत गत व झाला से उन्होंने समापन किया। भिलाई की युवा तबला नवाज पूनम सरपे ने यहां अपनी सधी हुई प्रस्तुति दी। इनके अलावा नई दिल्ली के पंडित रितेश एवं पंडित रजनीश मिश्रा का शास्त्रीय गायन हुआ। प्रख्यात गायक जोड़ी पद्मभूषण पं. राजन-साजन मिश्र में पं. राजन मिश्र के पुत्र द्वय पं. रितेश एवं पं. रजनीश मिश्रा अपने बनारस घराने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां उन्होंने अपने घराने की कुछ प्रचलित बंदिशे पेश की। इन कलाकारों के साथ मिलिंद वैष्णव, पंडित पार्थसारथी मुखर्जी, रामेंद्र सिंह सोलंकी ,रामचंद्र सरपे और श्रीकांत पिसे ने संगत की।

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