धार्मिक

भारत में एक मात्र जगह…जहां दशहरे पर रावण नहीं, महिषासुर का होता है दहन, इसके पीछे अनोखी कहानी

 ब्यावर
राजस्थान में ब्यावर जिले के बिजयनगर के निकट शक्तीपीठ श्री बाड़ी माता मंदिर में आसोज नवरात्रि में रावण की जगह महिषासुर के दहन की परंपरा है। ये प्रदेश का ऐसा पहला स्थान है, जहां महिषासुर के पुतले का दहन होता है। दरअसल, ये सिलसिला आज से करीब 23 साल पहले शुरू हुआ था। वहीं, कल यानी 11 अक्टूबर को मंदिर परिसर में मां भगवती मर्दिनी 41 फीट के महिषासुर के पुतले का दहन करेंगी।

एक और संपूर्ण देश व प्रदेश में बुराई के प्रतिक रावण का दहन किया जाता है। वहीं बिजयनगर के निकट स्थित बाड़ी माताजी में पिछले 23 वर्षों से महिषासुर के पुतले का दहन किया जा रहा है। इस बार 11 अक्टूबर को मंदिर परिसर में मां भगवती मर्दिनी द्वारा 41 फीट के महिषासुर के पुतले का दहन किया जाएगा।

जानें-क्यों होता है महिषासुर का दहन

बिजयनगर के निकट स्थित प्रमुख शक्तिपीठ श्री बाड़ी माता मंदिर ट्रस्ट प्रमुख कृष्णा टांक ने बताया की महिषासुर एक राक्षस था। जिसका वध करने के लिए ब्रह्नमा, विष्णु और महेश के तेज पुज से व देवी-देवताओं ने अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित कर मां भगवती को शक्ति प्रदान की। इसके बाद मां भगवती ने सिंह पर सवार हो अपना विकराल रूप धारण कर महिषासुर का वध किया। बाड़ी माता भी एक मां का ही रूप है। इसलिए यहां पर महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है।

23 सालों से महिषासुर का दहन कार्यक्रम

बाड़ी माता तीर्थ धाम पर पिछले 23 सालों से महिषासुर का दहन का कार्यक्रम होता आया है। हर साल जगह-जगह पर दशहरे पर रावण दहन का कार्यक्रम होता है। लेकिन, प्रदेश व देश में शायद एक मात्र बिजयनगर शहर के निकट बाड़ी माता मंदिर है। जहां महिषासुर का दहन होता है।

महिषासुर के दहन

बाड़ी माताजी मंदिर में महिषासुर के दहन का कोई विशेष कारण नहीं बताया जा रहा है। बस वर्षों पहले माताजी के परमभक्त स्मृतिशेष चुन्नीलाल टांक ने ये परमंपरा शुरू की थी। जिसने अब एक विशाल रूप ले लिया है। हर साल दशहरे पर यहां मेला भरने सहित भव्य झांकिया का भी आयोजन होतो है। साथ ही शानदार आतिशबाजी का भी आयोजन किया जाता है।

बाड़ी माता मंदिर में विराजित माता की प्रतिमाएं

मूल स्वरूप में बाड़ी माता मन्दिर के शिखर की ऊंचाई 185 फीट है मन्दिर में भगवान शिव, मां लक्ष्मी, धर्मराज, श्रीकृष्ण राधा, श्रीराम दरबार, चारभुजानाथ, गंगा मैया, चित्रगुप्त, सूर्यनारायण भगवान, रामदेव, गायत्री माता, शीतला माता सहित की अन्य देव प्रतिमाएं विराजित है। नवरात्र के दौरान यहां भक्तजनो का तांता लगा रहता है।

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