सरकार के UCC वाले दांव से बिखरेगा विपक्ष! शिवसेना और AAP के भी कांग्रेस से अलग बोल
नई दिल्ली
क्या लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता का मुद्दा जोर पकड़ेगा? 22वें विधि आयोग की सिफारिश के बाद ऐसे ही कयास लग रहे हैं। आयोग ने समान नागरिक संहित की वकालत की है और इसे लेकर जनता से सुझाव आमंत्रित किए जा रहे हैं। इस मामले पर भाजपा मुखर है और उसका कहना है कि समान नागरिक संहिता लागू होनी ही चाहिए। पहले ही उसकी उत्तराखंड और गुजरात जैसी सरकारें समान नागरिक संहित पर विचार के लिए पैनल बना चुकी हैं। इस बीच पूरा मामला राजनीतिक रंग लेता जा रहा है और यह विपक्षी एकता के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसकी वजह यह है कि समान नागरिक संहिता पर कांग्रेस मुखर रही है। वहीं उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और आम आदमी पार्टी इसके समर्थन में रहे हैं। शिवसेना तो अपनी स्थापना से ही इसे अपना सैद्धांतिक मसला बताती रही है। भले ही वह भाजपा से अलग है, लेकिन समान नागरिक संहिता के मसले पर वह समझौता नहीं करना चाहेगी। इस तरह दो बड़ी विपक्षी पार्टियां अलग हो जाएंगी, जो विपक्षी एकता की पैरोकार भी रही हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश के वाईएसआर और चंद्रबाबू नायडू, ओडिशा के नवीन पटनायक जैसे नेता भी इस मसले पर सरकार के साथ आ सकते हैं।
विधि आयोग पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने गुरुवार को कहा था कि उसे यह समझना चाहिए कि राष्ट्रहित और भाजपा हित अलग-अलग चीजें हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि जब 21वें विधि आयोग ने कहा था कि समान नागरिक संहिता को इस स्थिति में ना तो लागू किया जा सकता है और ना ही इसकी जरूरत है तो फिर अब क्या बदल गया है। लेकिन कांग्रेस से अलग रुख रखते हुए उद्धव सेना ने कहा है कि इस पर विचार होना चाहिए। हम तो हमेशा से समान नागरिक संहिता के समर्थन में रहे हैं।
गुजरात चुनाव में खुद केजरीवाल ने की थी वकालत
यही नहीं आम आदमी पार्टी भी इसके खिलाफ नहीं रही है। यहां तक कि गुजरात इलेक्शन से पहले तो उसने भाजपा को चुनौती दी थी कि वह पूरे देश में कॉमन सिविल कोड लागू करके दिखाए। अरविंद केजरीवाल ने इलेक्शन कैंपेन के दौरान कहा था कि समान नागरिक संहिता की बात संविधान के आर्टिकल 44 में कही गई है। इसे लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है। उसने चुनाव से पहले भले ही उत्तराखंड में इसे लेकर कमेटी बना दी है, लेकिन इलेक्शन के बाद यह याद नहीं रह जाएगा।