इंदौरमध्यप्रदेश

आलोट विकासखंड में शिप्रा-चंबल नदी का संगम स्थल शिपावरा का स्वरूप अब जल्द निखरने वाला …..

 रतलाम
 जिले के आलोट विकासखंड में शिप्रा-चंबल नदी का संगम स्थल शिपावरा का स्वरूप अब निखरने वाला है। यह जगह करीब 4000 साल पुरानी ताम्राश्म युगीन सभ्यता के अवशेष समेटे हुए है। शिपावरा के पौराणिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हुए यहां महाकाल लोक की तर्ज पर नवनिर्माण होगा।

कलेक्टर राजेश बाथम ने करीब 23 करोड़ रुपये की योजना तैयार करवाकर स्वीकृति के लिए शासन को भेजी है। सिंहस्थ मद से इसमें स्वीकृति मिलना तय माना जा रहा है। पर्यटन और धार्मिक नजरिये से शिपावरा विकास की योजना में पूरे क्षेत्र को शिवआकृति में तैयार किया जाएगा।

    शिपावरा के विकास के लिए कार्ययोजना बनाकर स्वीकृति के लिए संभागायुक्त को भेजी गई है। इस स्थल को पर्यटन व धार्मिक नक्शे पर नई पहचान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है।

    -राजेश बाथम, कलेक्टर

शिव के त्रिनेत्र, अर्द्धचंद्रमा आदि आकार में होगा निर्माण

इसके लिए शिव के त्रिनेत्र, अर्द्धचंद्रमा, सर्प आदि शामिल रहेंगे। धर्मशाला, ऑडिटोरियम, वॉच टॉवर की तर्ज पर दीपस्तंभ, बड़े घाट, सड़क, पार्किंग, भव्य प्रवेश द्वार सहित अन्य निर्माण किए जाएंगे। इस काम के लिए हाउसिंग बोर्ड को नोडल एजेंसी बनाया गया है।

शिपावरा से उज्जैन की दूरी 100 किमी है। तैयारी इस तरह से की जा रही है कि यहां भविष्य में बड़े सांस्कृतिक आयोजन भी किए जा सकें। सिंहस्थ 2028 से पहले निर्माण कार्य पूरा करने की योजना है। इससे इस इलाके में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
उल्टे दीयों पर टीका है मंदिर, खुदाई में मिले हैं दीये

शिप्रा नदी शिपावरा में आकर चंबल नदी में मिल जाती है। इस संगम पर करीब 100 फीट ऊंचे एक टीले पर शिपावरा में दीपेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। इसके उल्टे दीयों पर टीके होने की बात कही जाती है। खुदाई में भी यहां दीये मिलते हैं। आलोट से विक्रमगढ़, खजूरी देवड़ा, रजला, मोरिया होकर शिपावरा तक जाने के बाद आगे करीब ढाई किलोमीटर का कच्चा और पथरीला रास्ता संगम स्थल तक पहुंचाता है।
प्रागैतिहासिक काल के प्रमाण भी यहां मिलते हैं

शिपावरा में प्रागैतिहासिक काल से लेकर परमार और मराठा काल तक की पुरा-संपदा के महत्वपूर्ण प्रमाण मिलते हैं। लोकमान्यता है कि भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव इस स्थल पर छुपे थे। यंत्र-तंत्र लगे परमार स्थापत्य एवं मूर्तिकला के कारण इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। यहां रियासतकालीन शिकारगाह भी बना हुआ है, जिसका प्रयोग जावरा के नवाब किया करते थे।

Pradesh 24 News
       
   

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button