जिला अस्पतालों को निजी हाथों में देने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है
भोपाल
जन स्वास्थ्य अभियान, स्वस्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत संगठनो, संस्थाओं और विशेषज्ञों का नेटवर्क है जो पिछले दो दशकों से अधिक समय से सक्रिय है और स्वास्थ्य के नीतिगत मसलों को बेहतर बनाने की दिशा में हस्तक्षेप करता रहा है और सार्वजनिक स्वस्थ्य सेवाओं की मजबूती का पक्षधर रहा है। दिनांक 4 मार्च 2024, सोमवार को हुई मंत्री परिषद की बैठक में मंत्री परिषद द्वारा मध्यप्रदेश के सभी जिलों में चिकित्सा महाविद्यालयों को पीपीपी मोड पर स्थापित करने और इसके लिए जिला अस्पतालों को निजी हाथों में देने निर्णय लिया गया है। जन स्वास्थ्य अभियान सरकार के निर्णय की आलोचना करता है, सरकार के इस निर्णय से गरीब वंचितों के इलाज का एक बड़ा संस्थान उनकी पहुँच से दूर हो जाएगा।
हमारी स्वस्थ्य व्यवस्था में जिला अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की दृष्टि से जिले में महत्वपूर्ण जरूरी स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करता है और जिले में केंद्रीय भूमिका मे है। जिला अस्पताल पर सम्पूर्ण जिले की आबादी के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी होती है, केवल अस्पताल में स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने वालों की नहीं। आज प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना पहली प्राथमिकता है ना कि तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021-22 के अनुसार प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 4134 उप स्वास्थ्य केंद्र, 1045 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 245 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रो की कमी है इसी प्रकार की कमी आदिवासी और शहरी क्षेत्रों में भी है। साथ ही इन स्वास्थ्य केन्द्रो में चिकित्सक और अन्य मेडिकल और पेरा मेडिकल स्टाफ की कमी भी है। जन स्वास्थ्य अभियान का मानना है सरकार का प्रयास प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने वाले संस्थानो को मजबूत करने और कमियों को दूर करने पर होना चाहिए।
जन स्वास्थ्य अभियान के अमूल्य निधि ने कहा की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 स्वास्थ्य देखभाल के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता का समर्थन करती है, और करने के लिए वित्तीय और ढांचागत संसाधनों का एक निश्चित स्तर होना चाहिए जहां सबसे गरीब आबादी लाभान्वित हो सके और कानूनी मुद्दों से बच सके और निती एक सक्षम वातावरण स्थापित करने के लिए गारंटीकृत फंडिंग के साथ क्रमिक और वृद्धिशील दृष्टिकोण की सिफारिश भी करती है कि भविष्य में स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच एक मौलिक अधिकार बन जाए।
अभियान श्री आज़ाद ने कहा कि मध्यप्रदेश में पूर्व में भी अलीराजपुर जिला अस्पताल और जोबट सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को दीपक फ़ाउंडेशन के निजी हाथों में सौपकर स्वास्थ्य सूचकांको में सुधार की उम्मीद की थी परंतु सरकार का यह प्रयास भी विफल रहा था, और इन प्रयासों से जिले में स्वास्थ्य की परिस्थितियों में कोई अंतर नहीं आया था। इस मामले में जन स्वास्थ्य अभियान मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में एक जनहित याचिका भी लगाई थी जो कि अभी भी विचारधीन है।
अभियान से जुड़े धीरेंद्र आर्य ने कहा कि निजी स्वास्थ्य संस्थानो का मात्र एक ही उद्देश्य होता है मुनाफा कमाना और हम सभी ने कोविड महामारी के दौरान निजी अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों की मुनाफाखोरी के अनुभवों को बहुत नजदीक से देखा है। कोविड महामारी के दौरान प्रदेश के सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानो और चिकित्सा कर्मियों सहित जमीनी कार्यकर्ताओं ने बहुत ही बहादूरी के साथ महामारी का सामना किया था और जनता को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की थी।
अभियान के साथी राकेश चांदौरे ने कहा कि सरकार का यह निर्णय जन स्वास्थ्य अधिकार की भावना के विपरीत है और इससे जरूरतमन्द जनता स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होगी। जन स्वास्थ्य अभियान से सरकार को पत्र लिखकर इस निर्णय पर पुन: विचार करने कि मांग की है और प्रदेश में जनता को स्वास्थ्य सेवाएँ देने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करा जाए न कि स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में दिया जाए।