लू के थपेड़ों में इंसानों के साथ अर्थव्यवस्था भी झुलस रही, बढ़ती गर्मी के साथ चुनौतियां बढ़ेंगी
नई दिल्ली
लू के थपेड़े इंसानों की सेहत के साथ-साथ दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी झुलसा रहे हैं। अमेरिका के डार्टमाउथ कॉलेज की एक रिपोर्ट के अनुसार लू की लहर (Heat Wave) से काम के घंटे, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र को होने वाली क्षति दुनिया पर भारी पड़ रही है। वर्ष 1990 से 2013 के बीच लू से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 16 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है। अनुमान है कि 2025 के अंत तक ये क्षति दोगुनी हो जाएगी। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के अनुसार वर्ष 1980 से 2000 के बीच 32 यूरोपीय देशों को 7100 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था।
गर्म हवाओं से देश को भी क्षति
अंतरराष्ट्रीय संस्था क्लाइमेट ट्रांसपैरेंसी के अनुसार 2021 में लू से देश की अर्थव्यवस्था को 15,900 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था। ये क्षति देश की 5.4 फीसदी जीडीपी के बराबर है। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में भीषण गर्मी से 75 फीसदी कामगार प्रभावित हो सकते हैं। वर्ष 2030 तक गर्मी 3.4 करोड़ लोगों की नौकरी के लिए खतरा बन सकती है।
लू का कृषि क्षेत्र पर बुरा असर
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार लू की लहर से खेत पर काम के घंटों में नौ फीसदी तक की कमी होगी। वर्ष 1995 में ये आंकड़ा छह फीसदी था। विशेषज्ञों का अनुमान है कि गर्म हवाओं के कारण जब कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा तो पैदावार घटेगी। इसका सीधा असर गांवों से लेकर शहरों तक अर्थव्यवस्था की धीमी चाल के रूप में देखने को मिलेगा।
जान की दुश्मन बन रही है लू
डब्ल्यूईएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1998 से 2017 के बीच दुनियाभर में 1.66 लाख लोगों की जान जा चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वर्ष 2003 में यूरोप में अकेले लू की लहर से 70 हजार लोगों की मौत हो गई थी। चिंता की बात ये है कि बीते वर्ष 2000 से 2016 के बीच दुनियाभर में 12.5 करोड़ लोग लू की चपेट में आए थे।
विश्व की 70% आबादी प्रभावित
काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की 70 फीसदी आबादी की लू की लहर से बुरी तरह प्रभावित होगी। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत में अकेले इससे दो करोड़ लोगों का जीवन प्रभावित होगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार दुनिया के सबसे गर्म स्थानों में रहने वाले 280 करोड़ लोगों के पास ही एयर कंडिशन है।
पलायन का खतरा होगा गंभीर
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएसआरसी) के अनुसार दुनियाभर में मौसम की मार से बचने के लिए 2050 तक 100 से 300 करोड़ लोग अपना घर छोड़ देंगे। दुनिया के अलग-अलग देशों में रहने वाले प्रवासी दुनिया की अर्थव्यवस्था में तीन ट्रिलियन डॉलर का योगदान देते हैं। मौसम चक्र में बदलाव और नौकरियों के संकट से अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौती बनेगी।
जीवन बचाने को पलायन मजबूरी
1.वर्ष 2030 तक दुनिया में 15 करोड़ लोग मौसम के कारण पलायन को मजबूर
2.मध्यपूर्व और उत्तर अफ्रीकी क्षेत्रों में लू का प्रकोप दुनिया में सबसे ज्यादा रहेगा
3.लू और भीषण गर्मी के कारण दुनियाभर में पीने के पानी का संकट गहराएगा
4.पानी के अभाव में 50 करोड़ से अधिक लोगों का पलायन 2050 तक दुनिया में
5.गरीब मुल्कों में कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित, 10 फीसदी को खाना मुश्किल
बढ़ती गर्मी के साथ चुनौतियां बढ़ेंगी
1.गर्मी में लगातार बढ़ोतरी से कोल्ड चेन का चक्र टूटने से खाद्यान को नुकसान
2.देश में चार फीसदी खाद्यान को रखने के लिए कोल्ड चेन, इससे नया खतरा
3.गर्मी बढ़ने के साथ श्रमिकों के काम करने की क्षमता घटने से उत्पादकता गिरेगी
4.दवाओं और टीकों को सुरक्षित रखना चुनौती होगी, नए मानक और सुधार जरूरी
5.गर्मी बढ़ने से बीमारियों का बोझ बढ़ेगा जिससे दवा का खर्च 50 फीसदी बढ़ेगा