पूर्वी चंपारण का ‘सैनिक’ ग्राम, देश की सीमा पर तैनात गांव के 101 जवान
पूर्वी चंपारण
पूर्वी चंपारण जिले का रामगढ़वा प्रखंड का बंधुबरवा गांव। यहां के कण-कण में राष्ट्रभक्ति का अद्भुत जज्बा है। गांव के बच्चों में 10-12 साल की उम्र से ही सेना में जाने का जज्बा दिखने लगता है। आज इस गांव के 101 युवा देश की विभिन्न सीमाओं पर तैनात हैं। लगभग हर घर से कोई न कोई सेना में सेवा दे रहा है। कारगिल में हुई लड़ाई में गांव के पूर्व सरपंच गिरिशनंदन पांडे के पुत्र आलोक पांडेय शहीद हुए थे।
सैनिकों का गांव बंधुबरवा
चार वार्ड में बसे बंधुबरवा गांव की आबादी करीब 2100 है। अब तक गांव के 141 लोग सेना से जुड़ चुके हैं। इनमें से 40 रिटायर हो गए हैं। सेवानिवृत सैनिक अब गांव में खेतीबाड़ी के साथ युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं। सभी पूरी शिद्दत से किशोरों को सेना में जाने की तैयारी कराते हैं। चुने जाने के लिए जरूरी बारीकियां सिखाते हैं। गांव के शिक्षक स्वर्गीय सियाराम सिंह के पौत्र व अनिल सिंह के पुत्र सुधांशु कुमार ने बीतजे दिनों एनडीए पास कर सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर योगदान किया है। उसकी ट्रेनिंग पुणे में चल रही है।
यशवंत ने वाजपेयी की गाड़ी चलाई थी
यहां के निवासी सूबेदार मेजर पद से सेवानिवृत्त हुए यशवंत सिंह देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा एनसीसी परेड की सलामी लेते वक्त उस गाड़ी के चालक रहे। सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर श्री सिंह बताते हैं कि गांव से सेना में इतने लोगों के जाने के बापवजूद यहां छात्रों को सेना भर्ती की तैयारी करने के लिए एक भी मैदान नहीं है। इस वजह से गांव के लड़के नहर के किनारे दौड़ लगाकर तैयारी करते हैं। गांव के लोगों ने जनप्रतिनिधियों और अफसरों से मांग की है कि गांव में एक मैदान की व्यवस्था करा दी जाए ताकि यहां के युवाओं को सुविधा हो।
गांव में जाने का नहीं है पक्का रास्ता
गांव वालों की एक और पीड़ा है। अब तक गांव में जाने के लिए अच्छा रास्ता नहीं बन सका है। बरसात के समय जब सैनिक छुट्टी में गांव आते हैं तो रास्ते में इतना कीचड़ रहता है कि उन्हें सामान माथे पर रखकर आना पड़ता है। गांव के लोगों का कहना है कि यह बहुत छोटा काम है। जिला प्रशासन इसे आसानी से करवा सकता है। इतने सैनिक देने वाले गांव को इससे मान मिलेगा।