देश

चांद पर ‘शिव शक्ति’ पॉइंट, लाखों किमी दूर सतहों पर कौन रखता है नाम; क्या प्रक्रिया

नई दिल्ली
चंद्रयान 3 ने जहां लैंडिंग की है, उस जगह का नाम 'शिव शक्ति' कहा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को यह बात कही। इसके बाद से ही नामकरण को लेकर बहस शुरू हो गई है। सवाल है कि आखिर हमारे घर से लाखों किलोमीटर की दूरी पर मौजूद चांद की सतह पर जगहों का नामकरण कैसे होता है। साथ ही इस प्रक्रिया का अधिकार किसके पास है?

प्रधानमंत्री ने घोषणा की, 'चंद्रयान-3 का मून लैंडर जिस स्थान पर उतरा था, उसे अब 'शिव शक्ति' के नाम से जाना जाएगा। उन्होंने कहा, 'शिव में मानवता के कल्याण का संकल्प समाहित है और शक्ति से हमें उन संकल्पों को पूरा करने का सामर्थ्य मिलता है। चंद्रमा का यह 'शिव शक्ति' प्वाइंट हिमालय के कन्याकुमारी से जुड़े होने का बोध कराता है।'

कैसे होता है नामकरण?
आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, साल 1919 में स्थापित इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) खगोलीय पिंडो या सेलेस्टियल ऑब्जेक्ट्स का नामकरण करती है। इस नोडल एजेंसी के पास कई टास्क फोर्सेज हैं। इनमें एग्जिक्यूटिव कमेटी, डिविजन, कमिशन और वर्किंग ग्रुप्स शामिल हैं। दुनियाभर के कई बड़े खगोलविद इनका हिस्सा होते हैं।

किसी ग्रह या सैटेलाइट सर्फेस का नामकरण को लेकर बताया जाता है, 'जब किसी ग्रह या सैटेलाइट की पहली तस्वीरें सामने आती हैं, तो विशेषताओं के नामकरण के लिए नई थीम चुनी जाती है और कुछ खासियतों के नामों का प्रस्ताव दिया जाता है।' आमतौर पर यह काम IAU की टास्क फोर्स करती है, जो मिशन टीम के साथ मिलकर काम कर रही है।

नियमों को मानने के बाद IAU की WGPSN यानी वर्किंग ग्रुप फॉर प्लेनिटेरी सिस्टम नॉमेक्लेचर इन मामलों में नामों पर मुहर लगाती है। बाद में WGPSN के सदस्य वोट करते हैं और प्रस्तावित नामों को आधिकारिक मान्यता दे दी जाती है। साथ ही इनका इस्तेमाल नक्शों या प्रकाशनों के लिए होने लगता है।

 

Pradesh 24 News
       
   

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button