देश

जी-20 की साझा घोषणा पत्र की राह में रूस बड़ी अड़चन, आलिपोव ने कहा- यूक्रेन के अलावा सभी मुद्दों पर आम सहमति

 नई दिल्ली
 भारत अपनी तरफ से जी-20 के सभी मित्र देशों को मनाने में जुटा हुआ है कि किसी तरह से 10 सितंबर, 2023 को शिखर सम्मेलन में साझा घोषणा पत्र जारी करने को लेकर सहमति बन जाए। लेकिन अभी तक जो संकेत आ रहे हैं उससे साफ हो रहा है कि भारत की इस कोशिश की राह में सबसे बड़ी अड़चन मित्र देश रूस ही है।

यूक्रेन विवाद की वजह से रूस किसी भी सूरत में साझा घोषणा पत्र में कोई भी ऐसी बात शामिल करने के खिलाफ है जो उसके कूटनीतिक हितों के खिलाफ जाता हो। इस बात के संकेत मास्को में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी दिए और नई दिल्ली में रूस के राजदूत डेनिस आलिपोव ने भी दिए। भारत की अगुवाई में जी-20 के तहत अभी तक जितनी भी मंत्रिस्तरीय बैठकें हुई हैं उनमें से किसी भी एक में आम सहमति से साझा घोषणा पत्र जारी नहीं हो सका है।

रूस के रूख को चीन का समर्थन

रूस के रूख को चीन का समर्थन मिलता है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पहले ही नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से मना कर चुके हैं, उनकी जगह विदेश मंत्री लावरोव रूस की टीम का नेतृत्व करेंगे। जबकि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के आने की संभावना भी नहीं है। शुक्रवार को यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में राजदूत आलिपोव ने जब यह पूछा गया कि किसी साझा घोषणा पत्र की कितनी संभावना है तो उन्होंने कहा कि जी-20 की बाली घोषणापत्र (दिसंबर-2022) में यूक्रेन को लेकर जो पाराग्राफ है उसे बदलने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि यूक्रेन विवाद के अलावा अन्य सभी मुद्दों पर आम सहमति है। उन्होंने यह दोहराया कि रूस भारत की अध्यक्षता का पूरा समर्थन करता है और जिन मुद्दों को भारत की तरफ से प्रमुखता से उठाया गया है उसे सफल होना देखना चाहता है लेकिन यह संकेत भी दे दिया कि साझा घोषणा पत्र पर रूस अपने रूख पर अडिग है और जब तक यूक्रेन का मुद्दा हटाया नहीं जाएगा तब तक रूस के रूख में कोई बदलाव नहीं होगा।

यूक्रेन के मुद्दे पर रूस की स्थिति साफ

इसके ठीक पहले रूस के विदेश मंत्री ने मास्को में एक समारोह में साफ तौर पर कहा कि अगर यूक्रेन के मुद्दे पर रूस की स्थिति को सही तरीके से प्रदर्शित नहीं किया जाता है तो रूस किसी भी घोषणापत्र के लिए तैयार नहीं होगा। जी-20 संगठन के नियम के अनुसार, जब तक हर मुद्दे पर सभी सदस्य देशों की सहमति नहीं हो, तब तक उसे साझा घोषणा पत्र नहीं माना जा सकता।

यही वजह है कि आम सहमति नहीं बन पाने की वजह से भारत में मंत्रिस्तरीय बैठकों के बाद जो प्रपत्र जारी किये गये हैं उन्हें साझा घोषणा पत्र नहीं बल्कि अध्यक्ष की तरफ से जारी प्रपत्र बताया जा रहा है। इस प्रपत्र में इस बात का उल्लेख होता है कि किन मुद्दों पर चीन और रूस की तरफ से आपत्ति जताई गई है। इसमें इस बात का जिक्र होता है कि यूक्रेन पर रूस की तरफ से हमला किया गया है और उसे इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए।
 

मध्य अक्टूबर में संसद-20 बैठक का आयोजन

भारत को पहली बार जी-20 बैठक की अध्यक्षता का मौका मिला है। भारत ने इसके लिए बहुत ही महत्वाकांक्षी एजेंडा बना कर उस पर काम भी किया है। डिजिटल इकोनामी के विस्तार, गरीब देशों को ऋण से मुक्ति दिलाने, अफ्रीकी देशों को इस समूह में सदस्यता दिलाने, विकासशील देशों के मुद्दों को उठाने पर भारत ने काफी काम किया है, जिसे अन्य सभी देशों का समर्थऩ हासिल हुआ है। लेकिन यूक्रेन विवाद का साया जी-20 की हर बैठक में देखने को मिला है।

दुनिया की कुल इकोनामी जी-20 देशें की हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है। दुनिया के कुल कारोबार का 75 प्रतिशत इन्हीं देशों के पास है। भारत अगले महीने संसद-20 नाम से बैठक का आयोजन करेगा। यह आयोजन 12 से 14 अक्टूबर तक होगा। इसमें जी-20 देशों के पीठासीन अधिकारी और आमंत्रित राष्ट्र विचार-विमर्श में भाग लेंगे। भारत नए संसद भवन में जी-20 देशों की संसद के अध्यक्षों की मेजबानी करेगा।
 

वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार की जरूरत : गुटेरेस

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अगले सप्ताह भारत यात्रा पर रहेंगे। गुरुवार को गुटेरेस ने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को उत्सर्जन में कमी लाने में तेजी लाने की जरूरत है। साथ ही वैश्विक वित्तीय संस्थानों, नियमों और रूपरेखाओं के सुधार पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, ताकि उन्हें आज की स्थितियों के अनुकूल बनाया जा सके।
 

Pradesh 24 News
       
   

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button