औपनिवेशिक विरासत है एहतियातन हिरासत कानून, दुर्लभतम मामलों में ही हो इस्तेमाल: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भारत में एहतियातन हिरासत कानून एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसके दुरुपयोग की काफी संभावना है। एसी ने कहा कि इसका इस्तेमाल दुर्लभतम मामलों में ही किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को ऐसे कानूनों से उत्पन्न होने वाले मामलों का अत्यधिक सावधानी के साथ विश्लेषण करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में ही सरकार का शक्ति के इस्तेमाल पर नियंत्रण व संतुलन बना रहेगा।
जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने सोने की तस्करी के एक मामले में आरोपी एक व्यक्ति के हिरासत आदेश को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा, 'भारत में एहतियातन हिरासत कानून एक औपनिवेशिक विरासत है और इसके दुरुपयोग की बड़ी संभावना है। सरकार को मनमाना अधिकार प्रदान करने की क्षमता रखने वाले कानूनों की सभी परिस्थितियों में गंभीरता से समीक्षा की जानी चाहिए। केवल दुर्लभतम मामलों में ही इनका उपयोग किया जाना चाहिए।'
चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब
दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर अपराधों में जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर भी सुनवाई की। अदालत ने इस मामले में केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए सोमवार को चार हफ्ते का वक्त दिया। जस्टिस के. एम. जोसेफ और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को पहले यह पता लगाने की जरूरत है कि गंभीर अपराध क्या हैं। पीठ ने इस संबंध में केंद्र के जवाब दाखिल नहीं करने पर गौर करते हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल संजय जैन से जरूरी कार्य करने को कहा।
पीठ ने कहा, 'सबसे पहले यह पता करने की जरूरत है कि गंभीर अपराध क्या हैं। इसे परिभाषित करना होगा। हम इस पर जुलाई में सुनवाई करेंगे।' दरअसल, जनहित याचिका में दावा किया गया कि विधि आयोग की सिफारिशों और अदालत के पूर्व के निर्देशों के बावजूद केंद्र व चुनाव आयोग ने इस सिलसिले में कदम नहीं उठाए हैं। इसमें कहा गया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले 539 उम्मीदवारों में करीब 233 (43 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की चुनावी हलफनामे में घोषणा की थी।