समान नागरिक संहिता पर सियासत तेज, दलों के समर्थन और विरोध के सुर तेज
नई दिल्ली
देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू किए जाने को लेकर सक्रियता के साथ-साथ सियासत तेज हो गई है। इस मुद्दे पर मानसून सत्र के दौरान संसद में विधेयक लाए जाने की अटकलों के बाद राजनीतिक दलों के समर्थन और विरोध के सुर भी तेज हो गए हैं। पिछले तीन दिनों से यूसीसी को लेकर अचानक सक्रियता बढ़ी है। 27 जून को प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में अपने कार्यक्रम के दौरान जोरदार तरीके से नागरिक संहिता की पैरवी की थी। इसके बाद विपक्षी खेमे के प्रमुख दल आम आदमी पार्टी ने इसका सशर्त समर्थन करने का ऐलान कर विपक्ष को अचरज में डाल दिया है।
विधि आयोग पहले ही परामर्श शुरू कर चुका है। 13 जुलाई तक लोगों की प्रतिक्रिया मांगी गई है। इसी बीच न्याय महकमे से जुड़ी संसदीय समिति ने भी इस मुद्दे पर तीन जुलाई को बैठक बुला ली है। शुक्रवार को चौथे दिन उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित जस्टिस रंजना प्रसाद देसाई की समिति ने ऐलान किया है कि राज्य के लिए नागरिक संहिता का मसौदा तैयार कर लिया गया है। इसे जल्द सौंपा जाएगा। चार दिनों में अचानक बढ़ी सक्रियता को देखा जाए तो तो संकेत साफ है कि केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लागू करने की तैयारी में है। इसके बाद से ही मानसून सत्र में इस लाए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। हालांकि, इस बात की पुष्टि आधिकारिक रूप से नहीं हुई है।
केरल के मुख्यमंत्री और माकपा नेता पिनारी विजयन ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे को केंद्र का चुनावी एजेंडा बताते हुए इसे लागू नहीं करने की अपील की है। लेकिन, इस बीच शिवसेना के एकनाथ शिंदे वाले गुट ने उम्मीद के अनुरूप समर्थन किया है। परन्तु उद्धव ठाकरे गुट इसका विरोध नहीं कर रहा है, बल्कि यह संभावना है कि यह गुट भी इसका समर्थन कर सकता है। वजह यह बताई जा रही है कि बाला साहेब ठाकरे समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे, इसलिए उद्धव की पार्टी के लिए इसका विरोध करना मुश्किल होगा।
जानकारों के अनुसार, समान नागरिक संहिता में उन कानूनों में एकरूपता लाई जा सकती है, जो लोगों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हैं। लेकिन, इसमें परंपराओं में कोई हस्तक्षेप किए जाने की संभावना नहीं है। मूलत: विवाह, तलाक, विरासत, संपत्ति का अधिकार, बहुविवाह जैसे मामलों से बने कानूनों में समानता लाई जा सकती है।
उत्तराखंड सरकार की समिति का कार्य पूरा हो चुका है तथा मसौदा प्राप्त होने के बाद वहां कानून बनाने की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। यह भी संभावना है कि उत्तराखंड का कानून दूसरे राज्यों के लिए एक मॉडल के रूप में भी पेश किया जा सकता है। यह संभावना इसलिए भी है, क्योंकि पूर्व में केंद्र सरकार की तरफ से यह संकेत दिए गए थे कि केंद्रीय स्तर पर इसे लागू करना संभव नहीं है, राज्य सरकार पर ही नागरिक संहिता लागू हो सकती है।