महिला वोटर्स को पार्टियां मान रहीं तुरुप का इक्का ! MP से कर्नाटक, दिल्ली, हिमाचल तक कैश वाली योजनाओं की कहानी
नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने महिलाओं को लेकर एक वादा किया था. यह वादा था हर परिवार की महिला मुखिया को हर महीने 500 और 1000 रुपये देने का. ममता की पार्टी ने बड़ी जीत के साथ बंगाल में लगातार तीसरी बार सरकार बना ली. ममता सरकार ने साल 2021 में ही लक्ष्मी भंडार नाम से योजना लागू कर सामान्य वर्ग की महिलाओं को 500 और एससी-एसटी वर्ग की महिलाओं को 1000 रुपये हर महीने देना शुरू भी कर दिया. यह महिलाओं के लिए डायरेक्ट कैश बेनिफिट की शुरुआत थी.
ममता के इस दांव को दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने पंजाब में, कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में सफलतापूर्वक आजमाया. लेकिन इसे बड़ा कैनवास दिया मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पूर्ववर्ती सरकार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने. सत्ता संभालने के बाद से ही महिला मतदाताओं पर फोकस कर लाडली लक्ष्मी जैसी योजनाएं लेकर आए शिवराज ने यह बताया कि इस तरह की योजनाएं कैसे लागू की जा सकती हैं और इनका चुनावों में क्या इम्पैक्ट पड़ सकता है?
मध्य प्रदेश में कैसे गेमचेंजर बनी लाडली बहना?
मार्च 2023 में तत्कालीन सीएम शिवराज ने लाडली बहना नाम से योजना शुरू करने का ऐलान किया और 21 साल से अधिक उम्र की लाभार्थियों के खाते में योजना के तहत एक हजार रुपये की पहली किश्त 10 जून को भेज भी दी. नवंबर में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए और महिला मतदाताओं ने बीजेपी को लाडली बना रिटर्न गिफ्ट दे दिया. मध्य प्रदेश चुनाव में बीजेपी को 230 में से 163 विधानसभा सीटों पर जीत मिली. लाडली बहना योजना को गेमचेंजर माना गया. सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी और कांग्रेस के बीच महिला वोट की वजह से बड़ा गैप आया.
बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं को 12 हजार रुपये सालाना देने का वादा किया और पार्टी सत्ता में वापसी करने में सफल रही. महिला मतदाताओं को बीजेपी का साइलेंट वोटर माना जाता है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भी महिलाओं की भूमिका का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि नारी शक्ति ये ठानकर निकली है कि वह बीजेपी का परचम लहराएगी. इन चुनावों में महिलाओं और बहन-बेटियों ने बीजेपी को खूब आशीर्वाद दिया है.
दिल्ली सरकार के दांव के पीछे क्या?
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 2022 के पंजाब चुनाव में एक वादा किया था. केजरीवाल ने सूबे में सरकार बनने पर 18 साल से अधिक उम्र की सभी महिलाओं और अविवाहित युवतियों को एक हजार रुपये हर महीने देने का वादा किया था. आम आदमी पार्टी को पंजाब की कुल 117 में से 92 सीटों पर जीत के साथ प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश मिला. सरकार बने करीब दो साल होने को आए लेकिन सूबे में केजरीवाल की यह गारंटी अभी धरातल पर नहीं उतर सकी है.
विरोधी पार्टियां पंजाब में अधूरे इस वादे को लेकर आम आदमी पार्टी पर लगातार हमले बोल रही थीं. अब केजरीवाल सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली में मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना लागू करने का ऐलान कर दिया है तो इसे विरोधियों के हमले की धार कुंद करने की रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है. दिल्ली की वित्त मंत्री आतिशी ने अपने बजट भाषण में इस योजना के लिए 2000 करोड़ रुपये का प्रावधान करने की घोषणा की और कहा कि 18 साल से अधिक उम्र की हर महिला को एक हजार रुपये हर महीने दिए जाएंगे.
हिमाचल सरकार क्यों लाई प्यारी बहना योजना?
सियासी रार के लिए सुर्खियों में चल रहे हिमाचल की सरकार ने भी एक अप्रैल से महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने का ऐलान कर दिया है. इसके लिए सरकार इंदिरा गांधी प्यारी बहना योजना शुरू करेगी. सीएम सुखविंदर सिंह सु्क्खू ने घोषणा की है कि 18 साल से अधिक उम्र की महिलाओं और युवतियों को हर महीने 1500 रुपये दिए जाएंगे. कांग्रेस ने हिमाचल के बाद हुए कर्नाटक के चुनाव में महिलाओं को हर महीने दो हजार रुपये देने का वादा किया था जिसे सिद्धारमैया सरकार लागू भी कर चुकी है. हिमाचल में यह वादा अधूरा था. राज्यसभा चुनाव में विधायकों की क्रॉस वोटिंग के बाद बागी तेवर दिखा रहे विक्रमादित्य सिंह ने भी चुनावी वादे पूरे नहीं करने को लेकर सुक्खू सरकार पर हमला बोला था.
लोकसभा चुनाव भी करीब हैं और विधायकों के, विक्रमादित्य गुट के बागी तेवरों की वजह से सुक्खू सरकार के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल भी मंडरा रहे हैं. ऐसे में हिमाचल सरकार के इस ऐलान को वादे पूरे करने वाली सरकार की इमेज सेट करने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. एक दूसरा पहलू यह भी है कि हिमाचल भी उन राज्यों में शामिल है जहां 2019 में महिलाओं का वोटर टर्नआउट पुरुषों के मुकाबले अधिक रहा था. हिमाचल, बिहार और ओडिशा समेत करीब 10 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों में महिला वोटर्स का टर्नआउट पुरुषों से अधिक रहा था.
महिलाओं पर फोकस क्यों?
हिमाचल प्रदेश में तब कुल 38 लाख 1 हजार 793 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था. इनमें 19 लाख 37 हजार 392 महिलाओं ने वोट किया था. 18 लाख 64 हजार 386 पुरुषों ने मतदान किया था. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल 2014 के आम चुनाव से ही महिलाओं का वोटर टर्नआउट चुनाव दर चुनाव बढ़ रहा है. 2014 के आम चुनाव में वोटर टर्नआउट 55 करोड़ के करीब रहा था जिसमें 26 करोड़ महिलाएं थीं. 2019 के चुनाव में कुल 62 करोड़ वोट पड़े थे जिसमें करीब 30 करोड़ महिलाएं थीं.
बीजेपी संसद से पारित महिला आरक्षण बिल, उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन और जनधन खाते जैसी योजनाओं के सहारे अपने साइलेंट वोट बैंक महिलाओं के बीच सियासी जमीन मजबूत करने में जुटी है तो वहीं विपक्षी पार्टियां इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में. यही वजह है कि डायरेक्ट कैश बेनिफिट के साथ ही सस्ते गैस सिलेंडर पर जोर दे रही हैं जो सीधे-सीधे महिलाओं को प्रभावित करते हैं. 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस ने न्याय योजना का वादा किया था. इसके तहत पार्टी ने सत्ता में आने पर 20 फीसदी अत्यंत गरीब परिवारों की न्यूनतम आय 12 हजार रुपये हर महीने सुनिश्चित करने की बात कही थी. तब यह दांव फेल रहा था. अब महिलाओं के लिए कैश बेनिफिट के दांव का मतदाताओं पर कितना प्रभाव पड़ता है, यह चुनाव नतीजे ही बताएंगे.