नित्या ने महिला एकल एसएच6 श्रेणी के बैडमिंटन मुकाबले में जीता कांस्य पदक
नित्या ने महिला एकल एसएच6 श्रेणी के बैडमिंटन मुकाबले में जीता कांस्य पदक
दीप्ति जीवनजी महिलाओं की 400 मीटर टी20 दौड़ के फाइनल में पहुंची
सुमित अंतिल को भालाफेंक एफ64 में स्वर्ण, पैरालम्पिक खिताब बरकरार रखने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी बने
पेरिस
भारत की पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी नित्या ने महिला एकल एसएच 6 श्रेणी के मुकाबले में इंडोनेशिया की रीना मार्लिना को 2-0 से हराकर कांस्य पदक जीता। सोमवार देर रात खेले गये मुकाबले में नित्या ने इंडोनेशिया खिलाड़ी को 21-14, 21-6 से हराकर पेरिस पैरालिंपिक 2024 में भारत को 15वां पदक दिलाया। भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी नित्या ने रीना मार्लिना को 23 मिनट तक चले मुकाबले में हराया। यह नित्या का पहला पैरालंपिक है। इस पदक के साथ ही बैडमिंटन स्पर्धा में पदकों की संख्या पांच पहुंच गई है। मैच के बाद नित्या ने कहा, “मैं अपनी भावनाएं जाहिर नहीं कर पा रही हूँ। यह मेरा सबसे अच्छा पल रहा। मैंने उसके (रीना) खिलाफ 9-10 बार खेला है, लेकिन उसे कभी नहीं हराया है। अपने पिछले अनुभव के कारण जब मैं खेल में आगे थी तब मैंने खुश होने की बजाय स्वयं को मानसिक रूप से तैयार करते हुए खेल पर ध्यान केंद्रित किया।”
दीप्ति जीवनजी महिलाओं की 400 मीटर टी20 दौड़ के फाइनल में पहुंची
भारतीय एथलीट दीप्ति जीवनजी महिलाओं की 400 मीटर टी20 दौड़ के फाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया है। सोमवार देर रात हुए मुकाबले में दीप्ति जीवनजी ने अपनी हीट में 55.45 सेकंड के समय के साथ पहला स्थान हासिल करते हुए फाइनल के लिए क्वालीफाई किया। मंगलवार रात 1038 बजे दीप्ति फाइनल स्पर्धा में दौड़ेगी।
सुमित अंतिल को भालाफेंक एफ64 में स्वर्ण, पैरालम्पिक खिताब बरकरार रखने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी बने
स्टार भालाफेंक खिलाड़ी सुमित अंतिल पैरालम्पिक खिताब बरकरार रखने वाले पहले भारतीय पुरूष और देश के दूसरे खिलाड़ी बन गए जिन्होंने एफ64 वर्ग में 70.59 मीटर के रिकॉर्ड के साथ पेरिस पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीता।
सोनीपत के 26 वर्ष के विश्व रिकॉर्डधारी सुमित ने अपना ही 68.55 मीटर का पैरालम्पिक रिकॉर्ड बेहतर किया जो उन्होंने तीन साल पहले तोक्यो में बनाया था।
उनका विश्व रिकॉर्ड 73.29 मीटर का है।
इससे पहले निशानेबाज अवनि लेखरा अपना पैरालम्पिक खिताब बरकरार रखने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी। सुमित और अवनि के अलावा भारतीय पैरालम्पिक समिति के मौजूदा अध्यक्ष देवेंद्र झाझडिया ने 2004 एथेंस और 2016 रियो ओलंपिक में एफ46 भालाफेंक में स्वर्ण पदक जीता था।
सुमित ने 2023 और 2024 विश्व पैरा चैम्पियनशिप के अलावा हांगझोउ एशियाई पैरा खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था।
उन्होंने दूसरा ही थ्रो 70.59 मीटर का फेंका। इसके अलावा पहला थ्रो 69.11 मीटर और पांचवां 69.04 मीटर का फेंका था और ये थ्रो भी उनके पिछले पैरालम्पिक रिकॉर्ड से बेहतर थे।
वह हालांकि 75 मीटर को नहीं छू सके जो पेरिस खेलों से पहले उनका लक्ष्य था।
श्रीलंका के दुलान के को रजत और आस्ट्रेलिया के माइकल बूरियन को कांस्य पदक मिला। भारत के संदीप 62.80 मीटर के साथ चौथे और संदीप संजय सागर 58.03 मीटर के साथ सातवें स्थान पर रहे।
एफ64 वर्ग में वे खिलाड़ी होते हैं जिनके पैरों में विकार होता है जो कृत्रिम पैरों के साथ खेलते हैं या उनके पैरों की लंबाई में फर्क होता है।
सुमित ने 2015 में एक मोटर बाइक दुर्घटना में अपने बायें पैर के घुटने से नीचे का हिस्सा गंवा दिया था। दिल्ली के रामजस कॉलेज के छात्र सुमित पहलवानी करते थे लेकिन दुर्घटना के बाद उन्हें खेल छोड़ना पड़ा।
उनके गांव के एक पैरा एथलीट ने 2018 में उन्हें पैरा खेलों में भाग लेने के लिये कहा।
उन्होंने पटियाला में 2021 में भारतीय ग्रां प्री सीरिज तीन में सक्षम खिलाड़ियों के वर्ग में तोक्यो ओलंपिक चैम्पियन नीरज चोपड़ा के साथ भाग लिया। वह 66.43 मीटर के साथ सातवें स्थान पर रहे जबकि नीरज ने 88.07 मीटर के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़कर स्वर्ण जीता था।
इससे पहले भारत के योगेश कथुनिया ने पुरुषों की एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ सोमवार को यहां रजत पदक जीता।
कथुनिया ने इससे पहले तोक्यो पैरालंपिक में भी इस स्पर्धा का रजत पदक जीता था।
इस 27 साल के खिलाड़ी ने अपने पहले प्रयास में मौजूदा सत्र का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 42.22 मीटर की दूरी तय की।
ब्राजील के क्लॉडनी बतिस्ता डॉस सैंटोस ने अपने पांचवें प्रयास में 46.86 मीटर की दूरी के साथ इन खेलों का नया रिकॉर्ड कायम करते हुए पैरालंपिक में स्वर्ण पदक की हैट्रिक पूरी की।
यूनान के कंन्स्टेंटिनो तजौनिस ने 41.32 मीटर के प्रयास के साथ कांस्य पदक जीता।
एफ 56 वर्ग में भाग ले वाले वाले खिलाड़ी बैठ कर प्रतिस्पर्धा करते है। इस वर्ग में ऐसे खिलाड़ी होते है जिनके शरीर के निचले हिस्से में विकार होता है और मांसपेशियां कमजोर होती है।
कथुनिया नौ साल की उम्र में ‘गुइलेन-बैरी सिंड्रोम’ से ग्रसित हो गये थे। यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें शरीर के अंगों में सुन्नता, झनझनाहट के साथ मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और बाद में यह पक्षाघात (पैरालिसिस) का कारण बनता है।
वह बचपन में व्हीलचेयर की मदद से चलते थे लेकिन अपनी मां मीना देवी की मदद से वह बाधाओं पर काबू पाने में सफल रहे। उनकी मां ने फिजियोथेरेपी सीखी ताकि वह अपने बेटे को फिर से चलने में मदद कर सके।
कथुनिया के पिता भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। कथुनिया ने दिल्ली के प्रतिष्ठित किरोड़ीमल कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक किया है।
भारत की प्रीति पाल ने रविवार को ट्रैक और फील्ड में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास रच दिया था। वहीं निषाद कुमार ने पुरूषों की ऊंची कूद टी47 वर्ग में लगातार दूसरा रजत पदक जीता।
कुमार नितेश को स्वर्ण, तुलसीमति, सुहास ने रजत और मनीषा ने कांस्य पदक जीता
भारत के कुमार नितेश ने सोमवार को यहां पुरुष एकल एसएल3 में अपना पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीता जबकि सुहास यथिराज और तुलसीमति ने क्रमश: एसएल 4 और एसयू 5 वर्ग में रजत पदक जीते जिससे सोमवार को भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों ने चार पदक अपनी झोली में डाले।
मनीषा रामदास ने महिला एकल एसयू 5 वर्ग में कांस्य पदक जीतकर भारतीय पैरा बैडमिंटन के लिये इस दिन को यादगार बना दिया।
हरियाणा के 29 साल के नितेश ने फाइनल में कड़े मुकाबले में अपने मजबूत डिफेंस और सही शॉट चयन की मदद से तोक्यो पैरालंपिक के रजत पदक विजेता ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को एक घंटे और 20 मिनट चले मुकाबले में 21-14 18-21 23-21 से हराया।
वर्ष 2009 में रेल दुर्घटना में बायां पैर गंवाने वाले नितेश ने मैच के बाद कहा, ‘‘मैं इस तरह के हालात में इससे पहले उससे हार चुका हूं और आज वही गलती नहीं दोहराना चाहता था। मैं खुद से लगातार यही कहता रहा।’’
वहीं सुहास यथिराज ने पैरालम्पिक खेलों में लगातार दूसरी बार रजत जीता जो पुरूष एकल एसएल4 स्पर्धा के फाइनल में फ्रांस के लुकास माजूर से सीधे गेम में हार गए। 2007 बैच के आईएएस अधिकारी 41 वर्ष के सुहास को एकतरफा मुकाबले में 9.21, 13.21 से पराजय झेलनी पड़ी।
तोक्यो पैरालम्पिक में तीन साल पहले भी लुकास ने ही सुहास को हराया था। बायें टखने में विकार के साथ पैदा हुए सुहास एसएल4 वर्ग में खेलते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मिश्रित भाव आ रहे हैं। एक तरफ तो रजत जीता है लेकिन दूसरी तरफ स्वर्ण से चूक गए। मैं देशवासियों से माफी मांगना चाहता हूं।’’
महिला एकल एसयू5 वर्ग के फाइनल में बाइस साल की शीर्ष वरीय तुलसीमति को चीन की गत चैंपियन यैंग कियू शिया के खिलाफ 17-21 10-21 से हार के साथ रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
बाएं हाथ में जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुई तुलसीमति ने कहा, ‘‘मैं रजत पदक से खुश हूं लेकिन थोड़ा निराश भी हूं कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर सकी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने बहुत सारी गलतियां कीं। मुझे पहला गेम जीत लेना चाहिए था। मैंने ड्रिफ्ट और फिर कुछ सहज गलतियों के कारण एक-दो अंक गंवाए जिससे उसे बढ़त मिल गई।’’
उन्नीस साल की दूसरी वरीय मनीषा ने डेनमार्क की तीसरी वरीय कैथरीन रोसेनग्रेन को 21-12 21-8 से हराकर कांस्य पदक जीता। मनीषा एर्ब पाल्सी के साथ पैदा हुई थी जिसके कारण उनका दाहिना हाथ प्रभावित है।
मनीषा ने कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूं। मैं सातवें आसमान पर हूं। कल मैं वाकई बहुत निराश थी। मैं इससे उबर नहीं पाई। आज जब से मैं उठी हूं, मैं अब भी मैच के बारे में सोच रही हूं। कल कुछ गलतियां करने के कारण मैं गुस्से में थी इसलिए मैंने आज कोर्ट पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया। लेकिन मेरे लिए यह काफी नहीं है, मैं पदक का रंग बदलने के लिए अगले चार साल तक कड़ी मेहनत करूंगी।’’
एसएल3 वर्ग के खिलाड़ियों के शरीर के निचले हिस्से में अधिक गंभीर विकार होता है और वह आधी चौड़ाई वाले कोर्ट पर खेलते हैं।
एसयू5 वर्ग उन खिलाड़ियों के लिए है जिनके ऊपरी अंगों में विकार है। यह खेलने वाले या फिर दूसरे हाथ में हो सकता है।
सुकांत कदम के पास कांस्य जीतने का मौका था लेकिन वह पुरूष एकल एसएल 4 वर्ग में कांस्य पदक के प्लेआफ मुकाबले में इंडोनिशया के तीसरी वरीयता प्राप्त फ्रेडी सेताइवान से 17.21, 18.21 से हार गए।
बिस्तर से पैरालम्पिक पोडियम तक प्रेरणास्पद है नितेश का सफर :
जब नितेश 15 वर्ष के थे तब उन्होंने 2009 में विशाखापत्तनम में एक रेल दुर्घटना में अपना बायां पैर खो दिया था लेकिन वह इस सदमे से उबर गए और पैरा बैडमिंटन को अपनाया।
नितेश की यह जीत सिर्फ निजी उपलब्धि नहीं है बल्कि इस जीत के साथ एसएल3 वर्ग का स्वर्ण पदक भारत के पास बरकरार रहा। तोक्यो में तीन साल पहले जब पैरा बैडमिंटन ने पदार्पण किया था तो प्रमोद भगत ने इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता था।
साथी पैरा बैडिंटन खिलाड़ी प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली के अथक समर्पण से प्रेरित होकर, नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू किया।
आईआईटी मंडी से स्नातक नितेश ने इससे पहले बेथेल के खिलाफ सभी नौ मैच गंवाए थे और उन्होंने सोमवार को ग्रेट ब्रिटेन के खिलाड़ी के खिलाफ पहली जीत दर्ज की।
नितेश ने कहा, ‘‘प्रमोद भैया प्रेरणास्रोत रहे हैं। ना केवल इसलिए कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं, बल्कि इसलिए भी कि वह एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं विराट कोहली को भी प्रशंसक हूं क्योंकि जिस तरह से उन्होंने खुद को एक फिट खिलाड़ी में बदल लिया है। वह 2013 से पहले कैसे हुआ करते थे और अब वह कितने फिट और अनुशासित हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने इस तरह से नहीं सोचा था। मेरे दिमाग में विचार आ रहे थे कि मैं कैसे जीतूंगा। लेकिन मैं यह नहीं सोच रहा था कि जीतने के बाद मैं क्या करूंगा।’’
फाइनल मुकाबला धीरज और कौशल का परीक्षण था जिसमें दोनों खिलाड़ियों ने बहुत ही कठिन रैलियां खेली। शुरुआती गेम में लगभग तीन मिनट की 122 शॉट् की रैली भी थी।
नितेश ने अपने रिवर्स हिट, ड्रॉप शॉट और नेट पर शानदार खेल से बेथेल को पूरे मैच में परेशान किया।
नितेश के लिए यह जीत वर्षों की कड़ी मेहनत और दृढ़ता का परिणाम था। दुर्घटना के बाद बिस्तर पर पड़े रहने से लेकर पैरालंपिक पोडियम पर शीर्ष पर खड़े होने तक का सफर उनके अदम्य साहस का प्रमाण है।
नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए रक्षा बलों में शामिल होने का सपना देखा था। हालांकि दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया।
नितेश ने फरीदाबाद में 2016 के राष्ट्रीय खेलों में पैरा बैडमिंटन में पदार्पण किया जहां उन्होंने कांस्य पदक जीता। वैश्विक स्तर पर भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 2022 में एशियाई पैरा खेलों में एकल में रजत सहित तीन पदक जीते।
जुझारूपन की मिसाल हैं तुलसीमति :
तुलसीमति जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुई थी जिसके कारण उनके बाएं हाथ में अंगूठा नहीं था। उन्हें हाथ और बांह में सुन्नपन, झुनझुनी और कमजोरी के साथ-साथ मांसपेशियों के पतले होने का सामना करना पड़ा।
दुर्घटना में लगी गंभीर चोट के कारण उनकी चुनौतियां और भी बढ़ गईं जिससे उनके बाएं हाथ की गतिशीलता सीमित हो गई।
इसके बावजूद तुलसीमति के खिलाड़ी के सफर की शुरुआत पांच साल की उम्र में हुई और सात साल की उम्र तक वह पूरी तरह से बैडमिंटन में डूब गई।
आईएएस अधिकारी सुहास का दूसरा रजत :
सुहास यथिराज खेल के साथ पढाई में भी अव्वल रहे हैं। बायें टखने में विकार के बावजूद उन्होंने कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में डिग्री लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की परीक्षा उत्तीर्ण की।
कोरोना महामारी के दौरान वह गौतम बुद्ध नगर के डीएम थे और इससे पहले प्रयागराज के डीएम भी रह चुके हैं। इस समय वह उत्तर प्रदेश सरकार में युवा कल्याण और प्रांतीय रक्षक दल के सचिव और महानिदेशक हैं।
शीतल देवी और राकेश कुमार ने तीरंदाजी मिश्रित टीम कांस्य जीता
पेरिस, 03 सितंबर (वेब वार्ता)। भारतीय तीरंदाज शीतल देवी और राकेश कुमार की जोड़ी ने सोमवार को यहां पेरिस पैरालम्पिक की मिश्रित टीम कंपाउंड ओपन तीरंदाजी स्पर्धा के सेमीफाइनल में हारने की निराशा से उबरते हुए इटली के मातेओ बोनासिना और एलेओनोरा सारती को 156.155 से हराकर कांस्य पदक जीत लिया।
भारत के लिये पैरालम्पिक में तीरंदाजी का पदक इससे पहले सिर्फ हरविंदर सिंह ने तीन साल पहले तोक्यो में (कांस्य) जीता था।
भारत को जीत तब मिली जब 17 वर्ष की शीतल का शॉट रिविजन के बाद अपग्रेड कर दिया गया। चार तीर बाकी रहते भारतीय जोड़ी एक अंक से पिछड़ रही थी लेकिन आखिर में संयम के साथ खेलते हुए जीत दर्ज की।
इससे पहले सेमीफाइनल में भारतीय जोड़ी शूटआफ में ईरान की फातिमा हेमाती और हादी नोरी से हार गई थी।
भारतीय जोड़ी फाइनल में जगह बनाने के करीब पहुंच गई थी लेकिन ईरानी टीम की शानदार वापसी और एक जज द्वारा स्कोर के रिविजन के बाद उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
स्कोर 152.152 से बराबर होने के बाद मुकाबला शूटआफ में गया। ऐसा लग रहा था कि भारतीय जोड़ी ने जीत दर्ज कर ली है जब ईरानी टीम ने चौथे तीर पर नौ स्कोर किया हालांकि जज ने समीक्षा के बाद उसे 10 करार दिया। इससे मुकाबला शूटआफ तक गया।
शूटआफ में दोनों टीमों ने परफेक्ट स्कोर किया लेकिन फातिमा का तीर बीचोंबीच लगा जिससे ईरानी टीम ने फाइनल में जगह बनाई।
इससे पहले शीतल और राकेश ने क्वार्टर फाइनल में तियोडोरा ऑडी आयुदिया फेरेलिन और केन स्वेगुमिलांग की इंडोनेशिया की जोड़ी को आसानी से 154-143 से हराया।
मिश्रित कंपाउंड ओपन वर्ग में शीतल और राकेश की शीर्ष वरीय जोड़ी ने सेमीफाइनल तक के सफर के दौरान शानदार फॉर्म दिखाई।
शीतल का जन्म 2007 में फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ जन्मजात विकार के साथ हुआ था जिसके कारण उसके अंग अविकसित रह जाते हैं। इस बीमारी के कारण उसके हाथ पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए।
39 वर्षीय राकेश को रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी और 2009 में इससे उबरने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि अब उन्हें जीवन भर व्हीलचेयर पर रहना होगा जिससे वे अवसाद में चले गए और यहां तक कि उन्होंने आत्महत्या करने के बारे में भी सोचा।
रविवार को राकेश पुरुषों के कंपाउंड ओपन वर्ग के कांस्य पदक मुकाबले में चीन के ही जिहाओ से एक अंक से हार गए थे।