रायपुर
छत्तीसगढ़ के किसानों में प्राकृतिक तथा जैविक खेती के संबंध में समझ विकसित करने तथा राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ाने के लिए आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार सेवाएं निदेशालय में छत्तीसगढ़ सरकार तथा प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन संस्था के छत्तीसगढ़ चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में प्राकृतिक खेती पर एक दिवसीय कार्यशाला सह विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ राज्य कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा ने की। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल, अपर संचालक उद्यानिकी श्री भूपेन्द्र पाण्डेय तथा अपर संचालक कृषि श्री एस.सी. पदम विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि बदलते वैश्विक कृषि पारिस्थितिकी परिदृश्य में प्राकृतिक खेती आज समय की मांग बन चुकी है। उन्होंने कहा कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन तथा कृषि के संसाधनों की बढ़ती लागत को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि किसान प्राकृतिक तथा जैविक खेती को अपनाएं। हरित क्रान्ति के पश्चात रसायन प्रधान कृषि के कारण उर्वरकों और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग के कारण उत्पादन लागत में वृद्धि हुई तथा मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। इसे देखते हुए प्राकृतिक खेती का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।
उन्होंने किसानों से आव्हान किया कि वे आवश्यकतानुसार प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए आगे आएं। मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने प्राकृतिक तथा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाएं हैं। राज्य सरकार द्वारा संचालित नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी अभियान के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है। राज्य की लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि पर गौठान स्थापित किये गये हैं जहां लगभग 20 लाख क्विंटल से अधिक वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। किसानों को देशी बीजों के उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है तथा प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में नौ लाख एकड़ कृषि भूमि में समन्वित खेती की जा रही है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने इस अवसर पर कहा कि आधुनिक कृषि में प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती का समावेश आवश्यक है। जैविक खेती से फलों तथा अन्य खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ती है तथा मिट्टी का स्वास्थ सुधरता है। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा मोदीपुरम और आंध्रप्रदेश में आयोजित प्राकृतिक खेती के प्रयोगों से यह स्पष्ट है कि यदि सही तरीके से प्राकृतिक खेती की जाए तो इससे रासायनिक खेती के बराबर या उससे अधिक उत्पादन मिल सकता है। किसानों को अपर संचालक उद्यानिकी श्री भूपेन्द्र पाण्डेय, अपर संचालक कृषि श्री एस.सी. पदम तथा निदेशक विस्तार सेवाएं डॉ. अजय वर्मा ने भी संबोधित किया तथा प्राकृतिक खेती का महत्व समझाया।
कार्यशाला में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन संस्था द्वारा प्राकृतिक तथा जैविक खेती की संभावनाओं पर संक्षिप्त प्रस्तुति दी गई तथा छत्तीसगढ़ में इस दिशा में अब तक किये गए कार्यां की प्रगति, संभावनाओं तथा अनुभवों को किसानों के साथ साझा किया गया। तकनीकी सत्र के दौरान कृषि विभाग के अधिकारियों, कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों एवं प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसानों द्वारा भी विचार व्यक्त किये गये तथा अनुभव साझा किये गये। इस अवसर पर प्राकृतिक तथा जैविक कृषि करने वाले प्रगतिशील किसानों का सम्मान भी किया गया।