दुनियाभर में हर साल एक अरब टन से ज्यादा खाना बर्बाद हो जाता है : रिपोर्ट
- वर्षभर में हर व्यक्ति औसतन 79 किलो खाना बर्बाद कर देता है.
- दुनियाभर में सालाना 1 अरब टन से ज्यादा अनाज बर्बाद होता है.
- जबकि, दुनिया में अब भी करीब 80 करोड़ लोग भूखे ही सोते हैं.
संयुक्त राष्ट्र
ये तीन आकंड़े चौंकाते हैं. और ये दिखाते हैं कि जहां एक ओर लोगों को पेट भरने लायक खाना नहीं मिल रहा है, वहां हर साल खाने की इतनी ज्यादा बर्बादी हो रही है.
ये सारी जानकारी संयुक्त राष्ट्र की 'फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024' में सामने आई है. इसमें 2022 के आंकड़े लिए गए हैं. इसमें बताया गया है कि 2022 में दुनियाभर में सालभर में 1.05 अरब टन अनाज बर्बाद हो गया था.
रिपोर्ट में बताया गया है कि खाने की बर्बादी सिर्फ अमीर या बड़े देशों तक ही सीमित नहीं है. बल्कि, छोटे और गरीब देशों में भी लगभग उतनी ही बर्बादी हो रही है. हालांकि, शहरों की तुलना में गांवों में खाने की बर्बादी कम है. उसकी एक वजह ये भी है कि शहरों की तुलना में गांवों में पालतू जानवर ज्यादा होते हैं और खाना उनमें बंट जाता है. इस कारण शहरों के मुकाबले गांवों में खाना उतना बर्बाद नहीं होता.
रिपोर्ट की 5 बड़ी बातें…
- – 19 फीसदी खाना बर्बादः 2022 में सालभर में 1.05 अरब टन खाना बर्बाद हो गया. यानी, जितना खाना लोगों के लिए उपलब्ध था, उसमें से 19 फीसदी बर्बाद हो गया. इस हिसाब से सालभर में 1 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 84 लाख करोड़ रुपये का खाना बर्बाद हो गया.
- – परिवारों में ज्यादा बर्बादीः खाने की सबसे ज्यादा बर्बादी परिवारों में हैं. 63.1 करोड़ टन यानी 60 फीसदी खाना परिवारों में ही बर्बाद हुआ. 29 करोड़ टन खाना फूड सर्विस सेक्टर और 13 करोड़ टन रिटेल सेक्टर में बर्बाद हुआ.
- – हर व्यक्ति ने 79 किलो खाना बर्बाद कियाः 2022 में औसतन दुनियाभर में हर व्यक्ति ने 79 किलो खाना बर्बाद किया. अमीर देशों के मुकाबले गरीब देशों में महज 7 किलो खाने की बर्बादी कम हुई.
- – लगभग 80 करोड़ लोग भूखेः खाने की ये बर्बादी तब है, जब दुनियाभर में 78.3 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सो जाते हैं. इतना ही नहीं, दुनियाभर में इंसानों की एक तिहाई आबादी पर भी खाद्य संकट मंडरा रहा है.
- – खाने की बर्बादी का क्लाइमेट पर असरः खाने की बर्बादी की वजह से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 8 से 10 फीसदी तक बढ़ गया है. रिपोर्ट में सामने आया है कि जिन देशों की जलवायु गर्म है, वहां खाने की बर्बादी ठंडे देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है.
भारतीय कितना खाना बर्बाद करते हैं?
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि हर साल हर भारतीय औसतन 55 किलो खाना बर्बाद कर देता है. इस हिसाब से भारतीय परिवारों में सालाना 7.81 करोड़ टन से ज्यादा अनाज बर्बाद हो जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पड़ोसी मुल्कों में खाने की सबसे ज्यादा बर्बादी चीन में होती है. चीन में हर व्यक्ति सालभर में औसतन 76 किलो खाना बर्बाद करता है. इस हिसाब से वहां सालभर में परिवारों में 10.86 करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है.
पाकिस्तान में वैसे तो हर व्यक्ति सालाना औसतन 130 किलो खाना बर्बाद करता है, लेकिन वहां सालभर में 3.07 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है.
इसी तरह बांग्लादेश में 1.41 करोड़ टन, अफगानिस्तान में 52.29 लाख टन, नेपाल में 28.31 लाख टन, श्रीलंका में 16.56 लाख टन और भूटान में 15 हजार टन से ज्यादा खाना हर साल बर्बाद हो जाता है.
इस समस्या का हल क्या?
दुनियाभर में हर व्यक्ति सालभर में औसतन 79 किलो खाना बर्बाद कर देता है. अगर ये खाना बर्बाद न हो, तो किसी जरूरतमंद का पेट भर सकता है.
हालांकि, कई देशों में खाने की बर्बादी में कमी लाने के तरीकों पर काम हो रहा है. ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मेक्सिको और साउथ अफ्रीका सहित कुछ देशों में खाने की बर्बादी में कमी आई है. 2007 के बाद से जापान में खाने की बर्बादी में एक तिहाई की कमी आई है. जबकि, ब्रिटेन में 18 फीसदी तक कमी आ चुकी है.
ग्लोबल फूडबैंकिंग नेटवर्क की सीईओ लिसा मून ने 'द गार्डियन' को बताया कि खाने की बर्बादी को कम करने के लिए फूड बैंक के साथ मिलकर काम किया जा सकता है.
उन्होंने बताया कि खाने की बर्बादी को कम करने के लिए फूड बैंकिंग अनूठा मॉडल है. क्योंकि फूड बैंक न सिर्फ मैनुफैक्चरर्स, किसानों, रिटेल सेलर और फूड सर्विस सेक्टर के साथ मिलकर काम करते हैं, बल्कि वो ये भी सुनिश्चित करते हैं कि ये खाना जरूरतमंद तक पहुंचे.
इतना ही नहीं, कुछ स्टडीज में ये भी सामने आया है कि अगर लोगों से खाने के कचरे को अलग से इकट्ठा करने को कहा जाता है, तो उनकी आदत में सुधार आता है और वो खाने की कम बर्बादी करते हैं. क्योंकि इससे उन्हें समझ आता है कि वो जितना खरीदते या बनाते हैं, उसका कितना बड़ा हिस्सा बर्बाद हो रहा है.