सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत और जवाबदेह बनाओ– स्वास्थ्य सेवाओं का बेलगाम व्यवसायीकरण और निजीकरण बंद करो
नई दिल्ली
देश भर से 13 राज्यों के प्रतिनिधि, विभिन्न नेटवर्क और अन्य नागरिक समाज संगठनों के साथी सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और एकजुटता जाहिर करने के लिए गांधी पीस फाउंडेशन, नई दिल्ली में इकट्ठे हुए। जम्मू कश्मीर के साथी राही रियाज ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने आए देश अलग अलग हिस्सों से आए साथियों के स्वागत के साथ इस सम्मेलन की शुरुआत की। सम्मेलन के आयोजन और उसकी भूमिका के बारे में बात रखते हुये अमूल्य निधि ने कहा की सार्वजनिक स्वास्थ्य आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है और हमे वर्तमान में स्वास्थ्य में निजीकरण को रोकने के साथ ही जिला अस्पतालों को बचाने, मजदूरों के स्वास्थ्य के साथ तमाम वंचित वर्गों के स्वास्थ्य अधिकारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठित और साझा प्रयास की अत्यंत आवश्यकता है।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर अपने विचार रखते हुये प्रोफेसर इमराना कदीर ने कहा कि मौजूदा जन-विरोधी, कॉर्पोरेट संचालित स्वास्थ्य एजेंडा, लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के प्रति जरूरी संवेदनशीलता के अभाव और आर्थिक लूट-खसोट वाली नीति का परिचायक है जिसका सबसे बुरा प्रभाव देश की करोड़ों दलित-वंचित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, विकलांग एवं आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों को झेलना पड़ रहा है। स्पष्ट है कि यह एक लोक कल्याणकारी राज्य द्वारा अपने दायित्वों और संवैधानिक जवाबदेही से पल्ला झाड़ने का प्रयास है।
जन स्वास्थ्य के एजेंडे की इस निरंतर अनदेखी का भयावह परिणाम कोविड-19 महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर दिखा जब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की कमजोरी, अक्षमता और चुनौतियों से कुशलतापूर्वक निबटने में कमी स्पष्ट रूप से सामने आई। सरकार द्वारा समय पर पर्याप्त सहायता मुहैया कराने में विफलता और ऐसे कठिन संकट के दौर में भी निजी क्षेत्र की महंगी और मुनाफा केंद्रित स्वास्थ्य सेवाओं के कारण कई लोग बिना इलाज के मर गए। इस भयावह मंजर को याद दिलाते हुए वक्ताओं ने कहा कि अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट और मेडिकल इमरजेंसी के वक्त भी निजी क्षेत्र द्वारा अवांछित मुनाफे के लिए तत्कालीन हालात का फायदा उठाना निजी क्षेत्र की परोपकारी स्वास्थ्य नीति की कलई खोल देती है और सरकारी-निजी गठजोड़ (पीपीपी) को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों के स्वाभाविक परिणाम की तरफ इशारा करती है। सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर किया जा रहा 1.9% बजट खर्च कतई अपर्याप्त है। स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के मुद्दे पर संजीव सिन्हा में उत्तर प्रदेश में जिला अस्पतालों के निजीकरण की जनविरोधी प्रयास के बारे बात रखी और कहा कि नीति आयोग ने राज्यों को जिला अस्पतालों के निजीकरण करने का निर्देश दिया है। वहीं एस आर आज़ाद ने मध्यप्रदेश में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए जिला अस्पतालों के निजी हितधारकों के देने के सरकार प्रयास को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए घातक कदम बताया। कुलदीप चाँद ने पंजाब मे स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी स्थिति अनुभव साझा किए। वक्ताओं ने आगे कहा कि सरकार अब बीमा आधारित स्वास्थ्य मॉडल की ओर बढ़ रही है, जिसका लक्ष्य 2025 तक निजी बीमा कवरेज को 30% तक बढ़ाना है, जबकि राज्य द्वारा संचालित अस्पतालों को मजबूत करने की बजाय उन्हें बीमा-आधारित संस्थाओं में बदला जा रहा है, जैसा कि चेन्नई में देखा गया है।
डॉ वंदना प्रसाद ने कहा कि स्वास्थ्य केंद्र का नाम आरोग्य मंदिर करना गलत है और स्वास्थ्य सामाजिक निर्धारकों में रोजी, रोटी, मकान, पर्यावरण के साथ साथ शांति, न्याय और डर भी आज महत्वपूर्ण मुद्दा है। जया वेलंकर ने महिला हिंसा और महिलाओं के विभिन्न मुद्दों को स्वास्थ्य के व्यापक मुद्दों के साथ जोड़कर कार्य करने की करने की जरूरत पर जोर दिया।
स्वास्थ्य के अधिकार सत्र में बसंत हरयाणा और अनिल गोस्वामी ने राजस्थान के स्वास्थ्य अधिकार कानून, गोरंग महापात्रा ने स्वास्थ्य अधिकार कानून देश के हर राज्य में बनाकर लागू करने की बात रखी तथा महजबीन भट ने जम्मू कश्मीर में स्वास्थ्य की परिस्थितियों पर अपनी बात रखी। दिनेश एबरोल ने स्वास्थ्य, दवा नीति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उदाहरण देते हुये दवाओं के पेटेंट जेनेरिक दवाओं और सबके लिए गुणवत्तापूर्ण सस्ती दवाओं की वकालत की और कहा कि सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार कि ज़िम्मेदारी है। मजदूरों के स्वास्थ्य अधिकार और सुरक्षा के मुद्दे पर जगदीश पटेल ने नीति, कानून और जमीनी स्तर पर मजदूरों के स्वास्थ्य के मुद्दे पर संघर्ष को मजबूत करने की बात कही। अमितावा गुह ने स्कीम वर्कर के सामाजिक सुरक्षा, वेतन, काम की परिस्थितियों पर कई उदाहरण दिये और आईएलओ कन्वेन्शन लागू करने की बात कही। डॉ जी डी वर्मा ने सिलिकोसिस पीड़ितों के संदर्भ में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के पीड़ितों की स्थिति पर विचार रखे। सिलिकोसिस पीड़ित संघ के दिनेश रायसिंग ने सिलिकोसिस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और देश भर के लाखों मजदूरों के हक की बात कही।
प्रोफेसर रितु प्रिया ने कहा कि स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों के प्रति जिम्मेदार और जवाबदेह होना चाहिए और समुदाय की भागीदारी से कार्य के मॉडल विकसित करने की बात कही। इस सम्मेलन में 13 राज्यों के प्रतिनिधियों, विभिन्न साथी संस्थाओं, नेटवर्क संगठन के प्रतिनिधि और वंचित समुदाय के साथियों ने अपनी बात रखी। आज के इस सम्मेलन में एक घोषणापत्र जारी किया गया। साथ ही सभी ने मिलकर तय किया कि प्रथम चरण में 10 राज्यों के 100 जिलों में स्वास्थ्य आंदोलन को मजबूत किया जाएगा।