राजनीति

चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस के लिए क्षत्रपों की ‘लोकल पकड़’ बनेगी गेमचेंजर

भोपाल

विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को जहां एक-एक सीट पर ताकत लगाना होगी। इस बार दोनों ही दलों के दिग्गज नेताओं क्षेत्र अनुसार भी अपनी ताकत दिखाना होगी। तब ही सत्ता की राह आसान होगी। हालांकि अपने-अपने अंचल में सक्रिय रहने के साथ ही इन नेताओं को पूरे प्रदेश में दौरा करना होगा। सबसे ज्यादा प्रचार का जिम्मा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांगेस से कमलनाथ के ऊपर होगा।

जबकि भाजपा से वीडी शर्मा, नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय भी पूरे प्रदेश में दौरे करेंगे। दोनों ही दलों के पास सीटों का अंतर महज 31सीटों का है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस को जहां भोपाल और नर्मदापुरम संभाग के साथ ही विंध्य के रीवा और शहडोल संभाग में दम दिखाना होगी। सत्ता की चाबी किसी भी अंचल से भारी जीत का अंतर किसी भी दल को दे सकता है। इसमें पिछले चुनाव और उपचुनाव के बाद भाजपा की सबसे ज्यादा बढ़त विंध्य क्षेत्र में थी, वहीं ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ में लगभग बराबरी का मामला था। भोपाल और नर्मदापुरम संभाग ने कांग्रेस को झटका दिया था।

अजय, अरुण, कमलेश्वर पर जिम्मा, वीडी का भी रहेगा जोर  
इस चुनाव में दोनों ही दलों पिछले चुनाव में कमजोर रहे अंचलों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। ताकि उनकी सीटें बढ़ सकें। इसके चलते कांग्रेस जहां विंंध्य और बुंदेलखंड पर ज्यादा फोकस करेगी। इन दोनों क्षेत्रों की 56 सीटों में से पिछले चुनाव और उपचुनाव में कांग्रेस के पास 13 सीटें ही हैं। जबकि भाजपा के पास यहां पर 41 सीटें हैं। बुंदेलखंड में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का लोकसभा क्षेत्र आता है। इसलिए उन पर यहां की सीटों को बरकरार रखने के साथ सीटें बढ़ाने का जिम्मा है। वहीं कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को यहां पर जिम्मेदारी सौंपी है। वे पिछले कई दिनों से इस क्षेत्र में सक्रिय है। हालांकि यह क्षेत्र उनका नहीं हैं। वहीं विंध्य में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को सीटें बढ़ाने की जिम्मेदारी है। कमलेश्वर को इसी के चलते सीडब्ल्यूसी और स्क्रीनिंग कमेटी जैसी महत्वपूर्ण समितियों में जगह मिली है। ताकि उनका कद बढ़ाने का फायदा कांग्रेस को विंध्य में मिल सके।

विजयवर्गीय भाजपा में और भूरिया-जीतू को कांग्रेस में दिखाना होगी ताकत
मालवा और निमाड़ में 66 सीटें हैं। यहां पर अभी कांग्रेस के 30 और भाजपा के 33 विधायक हैं। यानि स्थिति बराबरी की है। इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या भी खासी है। इसलिए यहां पर कांग्रेस ने कांतिलाल भूरिया को आगे किया है। ओबीसी भी इस क्षेत्र में खासे हैं। जिन्हें मैनेज करने के लिए जीतू पटवारी सक्रिय हैं। इस बार कांग्रेस यहां पर सीट बढ़ाने का प्रयास करेगी। इधर भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतार कर मालवा-निमाड़ की सीटों पर उनका प्रभाव होने का फायदा उठाने का प्रयास किया है।

इधर नाथ, वहां पटेल, फग्गन
इसी तरह महाकौशल की 38 सीटों में से कांग्रेस के कब्जे में अभी 25 सीटें हैं, जबकि भाजपा यहां पर महज 13 सीटों पर ही है। भाजपा इस क्षेत्र पर फोकस दे रही है। इसके चलते ही उसने यहां से ओबीसी के बड़े लीडर प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर से चुनाव में उतारा है। वहीं आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते को भी इस क्षेत्र से पार्टी ने चुनाव में उतारा है। इन दोनों  नेताओं पर इस बार यहां की सीटें बढ़ाने की चुनौती रहेगी। जबकि कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इसी क्षेत्र से हैं तो वे भी इसी प्रयास में रहेंगे कि उनके अंचल से किसी भी हालत में पार्टी के विधायक कम न हो।

सिंधिया-तोमर के मुकाबले दिग्विजय
इधर ग्वालियर-चंबल में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा की सीट बढ़ाने का जिम्मा होगा। यहां पर भाजपा के पास 16 और कांग्रेस के पास 17 सीटें हैं। वहीं यहां पर कांग्रेस के पास कोई बढ़ा नेता नहीं हैं, इसलिए दिग्विजय सिंह को इस क्षेत्र में सक्रिय किया जाएगा, उनकी पुरानी पारंपरिक सीट राघोगढ गुना जिले में आती है, गुना इसी अंचल का हिस्सा है। इसी तरह भाजपा का गढ़ माने जाने वाले मध्य क्षेत्र में दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी सक्रिय रहेंगे। राजगढ़ और भोपाल दोनों जिले इसी क्षेत्र का हिस्सा हैं, दोनों लोकसभा क्षेत्र से दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं सुरेश पचौरी का भी भोपाल, रायसेन और होशंगाबाद में खास प्रभाव है।

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