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बिहार में उत्तराधिकारी उतारने वाले हैं लालू प्रसाद यादव; क्यों रोहिणी का नाम इतनी तेजी से उभरा, जानें जरूरत

पटना.

आगे क्या होगा, यह वक्त बताएगा। लेकिन, लोगों की जुबान पर एक बात तेजी से आ रही है कि कहीं इस सदी की शुरुआत में जो हुआ था, वही फिर तो नहीं होने वाला है। क्योंकि, लालू परिवार की एक नई किरदार का राजनीति में पदार्पण होगा- ऐसा माहौल बनाया जा रहा है। राष्ट्रीय जनता दल के कोर वोटरों को जैसे थर्मामीटर लगाकर देखा जा रहा है कि वह इसे कैसे लेते हैं। हां, नाम है रोहिणी आचार्या का। सीमांचल में जब लालू प्रसाद यादव ने रैली में वर्चुअल तरीके से हाजिरी बनाई थी, तब भी रोहिणी का नाम लिया था।

इस महीने की शुरुआत में पटना के गांधी मैदान में सशरीर हाजिर हुए तो भी रोहिणी आचार्या का नाम लिया। और, अब रोहिणी आचार्या की राजनीतिक सक्रियता वाली कुछ तस्वीरें भी अलग-अलग स्तर से वायरल की जा रही है, ताकि रिस्पांस देखा जाए।

पीएम मोदी ने उठाया था परिवार का मुद्दा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में नई सरकार के गठन के बाद दो बार राज्य का दौरा किया और दोनों ही बार परिवारवाद के लिए राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को निशाने पर रखा। पीएम मोदी को लालू ने जवाब दिया कि उनके पास परिवार नहीं है। इसपर देशभर में भाजपा ने अभियान चलाया और खास नेताओं से लेकर आम भाजपा कार्यकर्ताओं ने खुद को पीएम मोदी का परिवार बताया। पीएम मोदी के उस परिवार के जवाब में राजनीतिक प्रेक्षकों को लग रहा था कि लालू कुछ बैकफुट पर जाएंगे। लेकिन, हो कुछ उलटा रहा। लालू परिवार से अब एक नए सदस्य के रूप में रोहिणी आचार्या को लांच पैड पर लाने वाले हैं।

रोहिणी आचार्या क्यों जरूरी, कितना फायदा
चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि "परिवार में अब दो ही विकल्प नजर आ रहे हैं- एक तो रोहिणी हैं और दूसरी राजश्री यादव। चारा घोटाला से लेकर लैंड फॉर जॉब तक में लालू प्रसाद यादव, पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा भारती, बेटे तेजस्वी यादव पर आंच साफ दिख रही है। ऐसे में तेजस्वी यादव की पत्नी राजश्री यादव विकल्प बन सकती थीं, लेकिन वह राजनीतिक रूप से उतनी जवाबदार नहीं हैं। ऐसे में रोहिणी आचार्या का सामने आना चौंकाने वाला नहीं है। जहां तक तेज प्रताप यादव का सवाल है तो उनपर अमूमन कम ही जिम्मेदारी दी जाती है। वह घोटाले में भी चर्चित नहीं हैं और परिवार की राजनीतिक विरासत भी उनके ऊपर नहीं सौंपी गई है। बड़े होने के बावजूद वह डिप्टी सीएम नहीं बने, बल्कि तेजस्वी बने। ऐसे में समझना बहुत मुश्किल नहीं कि क्यों रोहिणी आचार्या का नाम आगे आ रहा है। अगर लालू, राबड़ी, तेजस्वी, मीसा… सब ईडी-सीबीआई के फेर में फंस जाते हैं तो निश्चित तौर पर परिवार से सामने रोहिणी होंगी।"

इतिहास हर तरह की गवाही देता है, शेष भविष्य जानें
दरअसल, जब बच्चे छोटे थे तो लालू प्रसाद यादव ने खुद जेल जाने की स्थिति में अपनी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। राबड़ी देवी बिहार की पहली और इकलौती महिला सीएम के रूप में दर्ज हैं। राबड़ी जब सीएम बनी थीं, तब भी विपक्ष ने चर्चा उठाई थी कि क्यों और कैसे? लेकिन, तब भी लालू प्रसाद यादव की पार्टी में कोई विरोध नहीं था। इस दौरान राबड़ी देवी के दोनों भाई सुभाष यादव और साधु यादव भी सक्रिय राजनीति में रहे। जनप्रतिनिधि भी बने और खूब चर्चित भी रहे। बच्चे जब बड़े हुए तो कई कारणों से सुभाष-साधु इस परिवार से अलग हो गए। इसके बाद मीसा भारती की राजनीतिक एंट्री हुई और फिर लालू-राबड़ी के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव व तेजस्वी यादव की। भ्रष्टाचार के आरोपों में तेज प्रताप ही अबतक बचे हैं, बाकी यह सभी उस जद में आ चुके हैं। ऐसे में परिवार से नए किरदार के रूप में रोहिणी आचार्या की एंट्री का माहौल अब बन रहा है। रोहिणी अपने पिता को किडनी दान देकर जनता की नजरों में महान हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भारतीय जनता पार्टी के दिग्गजों पर विदेश में रहते हुए भी सोशल मीडिया के जरिए हमले में सबसे आगे रही हैं। ऐसे में अब कुछ ही दिनों की बात है कि लालू अपना उत्तराधिकारी विकल्प सामने रख देंगे।

Pradesh 24 News
       
   

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