उत्तरप्रदेशराज्य

तीन तलाक और समान नागरिक संहिता पर बरेलवी उलेमा पीएम मोदी के साथ? जानिए क्‍या बोले

बरेली
तीन तलाक, पसमांदा मुसलमान, एक कानून और समान नागरिक संहिता को लेकर मंगलवार को भोपाल में दिए प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के बयान का बरेलवी उलेमा ने समर्थन किया है। किस भाषण पर उलेमा क्या बोले पढ़िए।

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन बरेलवी ने कहा है कि तीन तलाक एक साथ नहीं देना चाहिए। एक साथ तीन तलाक देने पर पैगम्बरे इस्लाम ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। तलाक देने का सही तरीका ये है कि तीन तलाक, तीन तोहर यानी तीन महीने में दी जानी चाहिए। एक तलाक एक महीने में, दूसरा तलाक दूसरे महीने में दिया जाए। इसमें शरीयत की मंशा यह है कि मियां-बीवी  में ताल्लुकात बने रहें। उनके दरमियान देखा गया है बहुत सारे लोग रिश्तेदार, नातेदार, दोस्त लोग आपस में बातचीत करके मामले को निपटा देते हैं। तो तलाक तक मियां-बीवी का रिश्ता बना रहेगा और अगर हालात तब्दील नहीं होते हैं, बीवी अपने बर्ताव में सुधार नहीं पैदा करती है तो तीसरे महीने में तीसरा तलाक दे दिया जाता है।

अगर तीन तलाकें मुकम्मल हो गईं तो मियां-बीवी का रिश्ता खत्म हो गया। अब यह दोनों लोग अजनबी रह गए। यही सिस्टम तमाम मुस्लिम देशों में भी लागू है। हम तमाम मुसलमानों को यही तरीका बताते हैं मगर लोग नासमझी के कारण एक साथ में तीन तलाक दे देते हैं। जिसका खामियाजा बीवी के साथ पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है।

मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों की बात कही है। यह बात प्रधानमंत्री की दुरुस्त है कि पिछले सालों यह देखा गया है कि जिन-जिन राजनीतिक पार्टियों की हुकूमत रही उन्होंने पसमंदा मुसलमानों की तरक्की के लिए कोई काम नहीं किया। जब चुनाव आता है तो वे लोग मुसलमानों से लोकलुभावने वादे करते हैं। फिर जब सत्ता में आ जाते हैं तो किए हुए वादे भूल जाते हैं। इसी वजह से अब तक पसमंदा मुसलमानों की तरक्की नहीं हो पाई। मैं प्रधानमंत्री से गुजारिश करता हूं कि वे पसमंदा मुसलमानों के लिए जो सोच रहे हैं उसको प्रैक्टिकल तौर पर कर के दिखाएं। पसमांदा मुसलमानों की तालीमी आर्थिक शैक्षिक उत्थान के लिए कुछ बुनियादी काम कर दें।

मौलाना ने कहा जहां तक समान नागरिक संहिता की बात है तो लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने अभी तक कोई खाका या ड्राफ्ट पेश नहीं किया है। इसलिए इस पर बहुत कुछ कहना मुश्किल है। अगर समान नागरिक संहिता में शरीयत का ख्याल रखा गया तो मुसलमान समर्थन करेगा।

 

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