विधानसभा चुनाव में जनहित पार्टी बिगाड़ेगी भाजपा-कांग्रेस का गणित
भोपाल में संपन्न हुई जनहित पार्टी की बैठक, पांच सूत्री एजेंडा कार्यक्रम तय
भोपाल। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव से पूर्व भारतीय जनता पार्टी की जीत को सार्थकता प्रदान करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराज़गी अब खुलकर सामने आ गई है। सरकार बनने के बाद से हांसिए पर चले गए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और इंदौर सहित भोपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक रहे अभय जैन सहित भाजपा को शीर्ष तक पहुंचाने वाले कार्यकर्ताओ ने की घोषणा कर दी है। जिसका पहला अधिवेशन एवं प्रदेश भर से आए पदाधिकारियों की बैठक राजधानी भोपाल में संपन्न हुई।
देश के कोने-कोने से भोपाल पहुंचे आरएसएस के पूर्व प्रचारक और स्वयंसेवकों ने जनहित पार्टी के नाम से राजनीतिक पार्टी का गठन किया है। भोपाल में हुई बैठक में इसके पांच सूत्रीय एजेंडा तय किए गए हैं। इन्हीं पांच बिंदुओं के आधार पर जनहित पार्टी मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार को आगामी चुनाव में घेरेगी और अपनी शक्ति और सामर्थ्य से इंदौर भोपाल सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेगी।
आरएसएस के पूर्व प्रचारक अभय जैन ने कहा कि देश की जनता आज एक स्वच्छ राजनीति की ओर देख रही है और नेता आज जनता से जुड़े मुद्दों को उठाना भूल गए हैं। भाजपा की ही बात की जाए तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान
विचारकों ने जिन विचारों पर पार्टी की स्थापना की थी वह विचार आज भाजपा में कहीं भी नजर नहीं आते हैं। हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के इन्हीं विचारों का अक्षरशः पालन करेंगे और राजनीति में एक नया उदाहरण पेश करेंगे।
इन विचारों को लेकर जनता के बीच जाएंगे जनहित पार्टी के जनप्रतिनिधि-
शिक्षा: हर बालक देश की पूंजी है, इसे संवारें…. प्रतिभा अनुसार योग्यता पाना प्रत्येक का अधिकार है… शिक्षा समाज का दायित्व है। जन्म से मानव पशुवत पैदा होता है, शिक्षा और संस्कार से वह समाज का अभिन्न घटक बनता है। जो काम समाज के अपने हित में हो उसके लिए शुल्क दिया जाए, यह तो उल्टी बात है। पेड़ लगाने और सींचने के लिए हम पेड़ से पैसा नहीं लेते क्योंकि वह हमारी जिंदगी हैं। पैसे देकर शिक्षित होने वाला बचपन से ही व्यक्तिवादी बनता है और समाज की अवहेलना करता है। भारत में १९४७ से पूर्व सभी देशी राज्यों में कहीं भी शिक्षा का शुल्क नहीं लिया जाता था, उच्चतम शिक्षा तक निशुल्क थी। गुरुकुलों में तो भोजन व रहने की व्यवस्था भी होती थी।
स्वास्थ्य: जन्मा हुआ हर नागरिक देश की संपति है, इनका जीवन बचाएं। चिकित्सा के लिए पैसा देना पड़े यह अचंभे की बात है। चिकित्सा भी निशुल्क होना चाहिए हमारे यहां पहले चिकित्सा के लिए भी पैसा नहीं लिया जाता था। आजकल तो कई मंदिरों में भी जाने के लिए पैसा देना पड़ता है।
दंडनीति: कहां जाएं लोग, पुलिस या न्यायलय…. ७० प्रतिशत लोग अन्याय सहन करते है, कोर्ट क्यों नहीं जाते। न्यायालय से न्याय दिलाने की पहली जिम्मेदारी पुलिस की होती है, जिसपर भरोसा नहीं है, वकील महंगे हैं तथा न्यायलय में केसों का अम्बार है। पेशी पर जाओ, तारीख बढ़ती रहती है। न तो क्षीणदंड होना चाहिए और न उग्रदण्ड होना चाहिए बल्कि मृदुदण्ड होना चाहिए। दंड से ही जनता को नियंत्रित करने से धर्म की हानि होती है।
अर्थव्यवस्था: प्रत्येक को काम अर्थव्यवस्था का सिद्धांत होना चाहिए…
भुभुक्षिता किं न करोति पापम् – चाणक्य
भूखा आदमी कोई भी पाप कर सकता है।
अर्थव्यवस्था में व्यक्ति: मनुष्य, श्रम और मशीन में समन्वय ही अर्थव्यवस्था का उद्देश्य है। धन के अधिकाधिक सम वितरण की आवश्यकता है। प्रत्येक को श्रम का अवसर देना सरकार का दायित्व है । आधिकाधिक उपभोग का सिद्धांत ही मनुष्य के दुखों का कारण है। भारत में न्यूनतम उपभोग को या संयमित उपभोग को आधार माना गया है। प्रत्येक को काम अर्थव्यवस्था का आधारभूत लक्ष्य होना चाहिए। आज एक ओर १० वर्ष का बालक और ७० वर्ष का बूढ़ा काम में जुटा हुआ है और दूसरी ओर २५ वर्ष का नौजवान बेकारी से ऊबकर आत्महत्या कर रहा है। मशीन मानव का सहायक है, प्रतिस्पर्धी नहीं । यदि मशीन मानव का स्थान लेकर उसे भूखा मारे तो वह यंत्र के आविष्कार के उद्देश्य के विपरीत होगा। निर्जीव मशीन इसके लिए दोषी नहीं है, बुराई उस अर्थव्यवस्था की है। जिसमें विवेक लुप्त हो जाता है। विज्ञान एवं तकनीक का उपयोग प्रत्येक देश को अपनी परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए। खाली मशीन केवल पूंजी खाती है परंतु मनुष्य बेकार हो तो प्रतिदिन खाना चाहिए ही यह तो विकेंद्रित अर्थव्यवस्था से ही संभव है।
जिम्मेदार कार्यपालिका: हम सरकार तो बदल सकते है, सरकारी काम का तरीका नहीं
राजा कालस्य कारणम्
परिस्थिति का दोषी शासक होता है।
शांति पर्व महाभारत: जिम्मेदार कार्यपालिका सांसद या विधायिका कानून बनाती है कार्यपालिका यानी सरकार शासन तंत्र कानून नहीं बनती परंतु कानून के अनुसार देश चले यह जिम्मेदारी उसी पर होती है आज भी हम कह सकते हैं कार्यपालिका का लक्ष्य कारणम् अर्थात आज जो भी बुराइयां दिख रही हैं उसमें कार्यपालिका की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है अतः नेता को अपने आचरण का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
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अभय जैन : 9981641219
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