श्रीराम की खड़ाऊं रखकर यहीं से भरत ने संभाला था 14 साल अयोध्या का राज
अयोध्या
पवित्र नगरी अयोध्या में एक तरफ भव्य राम मंदिर बन रहा है, तो दूसरी तरफ राम से जुड़े अन्य पौराणिक स्थलों को भी सजाया संवारा जा रहा है। केंद्र और यूपी सरकार की कई योजनाओं से धार्मिक स्थलों का विकास किया जा रहा है। इसी कड़ी में राजा राम के अनुज भरत की तपोस्थली नंदीग्राम भरतकुंड में भी विकास की नई किरणें दिखाई दे रही हैं I बीते मई माह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हुई जनसभा के बाद प्रशासन भरतकुंड के सुंदरीकरण की घोषणा कर गए I
यहीं खड़ाऊं रख चलाया राजकाज
सप्तपुरियों यानि सात पवित्र नगरी में प्रथम स्थान पर मानी जाने वाली अयोध्या से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर सुल्तानपुर मार्ग पर स्थित भरतकुंड (मिनी गया) का सदियों से विशेष महत्व रहा है। जनपद के विकास खंड मसौधा में स्थित नंदीग्राम (भरतकुंड) मर्यादा पुरुषोत्त्म भगवान श्रीराम के अनुज भरत की तपोभूमि हैं। यहीं वह कूप है, जिसमें 27 तीर्थों का जल है। नंदीग्राम, भरतकुंड के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान राम के भाई भरत ने राम के वनवास से लौटने के लिए तपस्या की। मान्यता है कि राम जब 14 वर्ष के वनवास के लिए राजपाट छोड़कर चले, तो भरत उनको मनाने गए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने पिता के वचन से बंधे थे। लौटना स्वीकार नहीं किया लेकिन अपनी खड़ाऊं यानी चरण पादुका उनको सौंप दी। नंदीग्राम में भरत श्रीराम की की खड़ाऊं को प्रतीक के तौर लेकर अयोध्या का राजपाट चलाने लगे। 14 वर्ष बनवास खत्म कर जब राम अयोध्या वापस लौटे तो यहीं पर भरत से मिले।
पूर्वजों का रघुकुल के वंशजों ने यहीं किया पिंडदान
पिता के पिंडदान के लिए नंदीग्राम में कुंड का निर्माण कराया गया था, जिसे भरतकुंड के रूप में माना गया। यहीं पर भरत और महावीर हनुमान की मुलाकात हुई और एक दूसरे को गले लगाया था। यह एक शांतिपूर्ण और निर्मल जगह है। भगवान विष्णु का बाये पांव का गयाजी (बिहार) में तो दाहिने पांव का चरण चिह्न यहीं गयावेदी पर है। भरतकुंड के दूसरे छोर पर स्थित गया वेदी पर पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण करने के लिए गया (बिहार) जाने से पूर्व यहां पिंडदान की अनिवार्यता होने के कारण हिंदू धर्म में इस स्थान का बड़ा महत्व है। भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ क पिंडदान यहीं किया था। मान्यता है कि भरतकुंड में किया पिंडदान, गया तीर्थ के समान फलदायी है। प्रथा गयाजी से पहले भरतकुंड में पिंडदान की है इसीलिए भरतकुंड को 'मिनी गया' का दर्जा है। तभी से यहां पिडदान की परंपरा है। यही वजह है कि पितृपक्ष में भरतकुंड आस्था का केंद्र होता है। देश भर से जुटने वाले श्रद्धालु अपने पुरखों का पिंडदान कर मोक्ष की कामना करते हैं।
अनोखे नंदी जी बढ़ाते हैं शोभा
यहीं पर भगवान शंकर का मंदिर है जिसमें नंदीजी मंदिर के बाहर देख रहे हैं। आमतौर पर नंदीजी भगवान शंकर की तरह मुंह किए रहते हैं, लेकिन यहां नंदीजी का सिर शिवलिंग की तरफ से मंदिर से बाहर की ओर है। यहां एक ऐसा पेड़ है जिसकी डालियां एक दूसरे का लपेटती हैं। यहां के पुजारी कहते हैं कि वृक्ष की डालियों को ध्यान से देखेंगे तो आपको देवताओं की तस्वीर दिखाई देगी। मान्यता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए अनुज भरत 27 तीर्थों का जल लेकर आए थे, जिसे आधा चित्रकूट के एक कुंए में डाला था, बाकी भरतकुंड स्थित कुएं में। यह कुआं आज भी मौजूद है। जिसके पानी की गंगा के पानी से तुलना की जाती है। यहां के पुजारी का दावा है कि सालों साल पानी रखें, कभी कीटाणु नहीं पड़ेगा। पुजारी कहते हैं कि यहां भगवान शिव भी आया करते थे।