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INS शिवाजी को मिला 1971 वॉर हीरो का ‘वीर चक्र’, दिवंगत वाइस एडमिरल चौधरी को मिला था पदक

नईदिल्ली

भारतीय नौसेना के प्रमुख तकनीकी प्रशिक्षण प्रतिष्ठान, आईएनएस शिवाजी (INS Shivaji) को 1971 युद्ध के नायक रहे दिवंगत वाइस-एडमिरल बेनॉय रॉय चौधरी को दिया गया मूल 'वीर चक्र' हासिल हुआ है. आईएनएस शिवाजी के विशिष्ट अध्यक्ष-मरीन इंजीनियरिंग, वाइस-एडमिरल दिनेश प्रभाकर ने सोमवार को पुणे शहर से लगभग 60 किमी दूर लोनावाला में स्थित प्रशिक्षण स्थल पर आयोजित एक समारोह में नौसेना की ओर से वाइस-एडमिरल चौधरी के परिवार के सदस्यों पदीप्त बोस और गार्गी बोस से वीर चक्र प्राप्त किया. 

'वीर चक्र' युद्धकाल में सैन्य वीरता के लिए दिया जाने वाला पुरस्कार है. यह पुरस्कार युद्ध के दौरान जमीन, हवा या समुद्र में किसी सैन्यकर्मी द्वारा दिखाई गई बहादुरी और साहस के लिए प्रदान किया जाता है. वाइस-एडमिरल बेनॉय रॉय चौधरी नौसेना के एकमात्र टेक्निकल ऑफिसर हैं जिन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वाइस-एडमिरल चौधरी की वीरता 52 साल पहले भारत-पाक युद्ध के दौरान ​दिखी थी, जब वह आईएनएस विक्रांत पर एक इंजीनियर अफसर के रूप में तैनात थे. 

जब बीच समुंदर में फंस गया INS विक्रांत

पाकिस्तान के साथ युद्ध के बीच भारतीय नौसेना के विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत के बॉयलरों में से एक ने काम करना बंद कर दिया था, जबकि अन्य तीन बॉयलर भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे थे. तब बेनॉय रॉय चौधरी ने चीफ इंजीनियर के रूप में अपनी टीम के साथ बॉयलरों की मरम्मत का जिम्मा संभाला था. आईएनएस विक्रांत के बॉयलरों में इस्तेमाल होने वाले कलपुर्जों के निर्माण की जिम्मेदारी एक ब्रिटिश कंपनी के जिम्मे थी, जिसे मूल उपकरण निर्माता (Original Equipment Manufacturers) कहा जाता है.

 

बेनॉय चौधरी ने दिखाया था अदम्य साहस

युद्ध के बीच बॉयलरों की मरम्मत के लिए ब्रिटिश कंपनी से उपकरण प्राप्त करना संभव नहीं था. तब बेनॉय रॉय चौधरी ने अपनी टीम के साथ ब्रिटिश ओईएम (मूल उपकरण निर्माताओं) से किसी भी संभावित सहायता के बिना बेस पोर्ट से दूर समुद्र में आईएनएस विक्रांत के बॉयलरों की मरम्मत का काम किया. उन्होंने अपना दिमाग लगाकर डेक पर मौजूद उपकरणों और कलपुर्जों की सहायता से ही इस दिक्कत को ठीक किया.  इन मरम्मत कार्यों में बॉयलर के चारों ओर स्टील बैंड को ठीक करना, अधिक जोखिम वाले सुरक्षा वॉल्व्स की सेटिंग, बॉयलर रूम को मानव रहित छोड़कर दूर से निगरानी करने समेत कई अन्य तकनीकी उपाय शामिल थे.

वीरतापूर्ण कार्य के लिए मिला था 'वीर चक्र'

इन कार्यों के लिए न केवल तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता थी, बल्कि अपने लोगों को जोखिम से भरे कार्य करने हेतु भरोसा दिलाने के लिए लीडरशिप की भी आवश्यकता थी. युद्ध के दौरान बेनॉय रॉय चौधरी का योगदान हर तरह से महत्वपूर्ण था. तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल एसएम नंदा ने उन्हें 'एक उत्कृष्ट अभियंता' (An Engineer Par Excellence) की उपाधि दी थी. बेनॉय रॉय चौधरी को 1971 के युद्ध में  उनकी बहादुरी, देशभक्ति, समर्पित सेवा भाव और वीरतापूर्ण कार्यों के लिए उन्हें  'वीर चक्र' प्रदान किया गया था. अगर बेनॉय रॉय चौधरी ने समय रहते यह जरूरी मरम्मत कार्य पूरा नहीं किया होता तो भारतीय नौसेना आईएनएस विक्रांत का इस्तेमाल नहीं कर पायी होती.

युद्ध में विक्रांत ने निभाई निर्णायक भूमिका

साल 1971 के युद्ध में भारत की जीत में आईएनएस विक्रांत की भूमिका निर्णायक साबित हुई थी. यह युद्ध पोत पूर्वी मोर्चे के समुद्री अभियानों की धुरी बन गया. आईएनएस विक्रांत पर तैनाम भारतीय नौसेना के फाइटर जेट्स ने पूर्वी पाकिस्तान के शहरों चटगांव, कॉक्स बाजार, खुलना, चालना और मोंगला के बंदरगाहों पर भारी बमबारी की. इसके परिणाम स्वरूप पाकिस्तान अपने हवाई क्षेत्र, बिजली घरों, वायरलेस स्टेशनों, ईंधन भंडारों, बंदरगाह और अन्य बुनियादी ढांचों का इस्तेमाल नहीं कर सका. दुश्मन की नौसेना, छोटी गन बोट्स आगे बढ़ने में असहाय हो गईं. इस तरह आईएनएस विक्रांत ने समुद्र में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान का गला घोंट दिया. 

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