यूएनएससी की ‘कार्यप्रणाली में बड़े सुधार’ की भारत की मांग बिल्कुल उचित है : कंबोज
संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की ‘‘कार्यप्रणाली में बड़े सुधार’’ की भारत की मांग बिल्कुल सही है क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को वैश्विक फैसले लेने से दूर रखा जाता है।
कई वर्षों से सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग करने वालों में भारत अग्रणी है। राजदूत ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता पाने का हकदार है। वर्तमान में यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्य-चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका हैं। एक स्थायी सदस्य को ही किसी मूल प्रस्ताव पर वीटो का अधिकार होता है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा, ‘‘भारत संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले शुरुआती संस्थापक सदस्य देशों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर 26 जून, 1945 को सैन फ्रांसिस्कों में हस्ताक्षर किए गए थे। इसके 77 साल बाद जब हम यह देखते हैं कि समूचे अफ्रीकी और लातिन अमेरिका महाद्वीपों के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रिया से दूर रखा जा रहा है तो कार्यप्रणाली में सुधार की हमारी मांग बिल्कुल उचित है।’’
कंबोज ने परिषद के स्थायी सदस्य रूस की अध्यक्षता में ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों की रक्षा के माध्यम से प्रभावी बहुपक्षवाद’ के विषय पर आयोजित सुरक्षा परिषद की खुली बहस को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भले ही प्रभावी बहुपक्षवाद बना रहे लेकिन ‘‘हम इस बहुपक्षीय प्रणाली की अक्षमता से अवगत हैं जो समकालीन चुनौतियों चाहे वह कोविड-19 महामारी हो या मौजूदा यूक्रेन संघर्ष, को हल करने में यह विफल रहा है।’’
कंबोज ने कहा, ‘‘इसके अलावा, आतंकवाद, कट्टरपंथ, जलवायु न्याय और जलवायु कार्रवाई, विघटनकारी राज्येतर कारक, ऋण और कई भू-राजनीतिक विवाद वैश्विक शांति एवं सुरक्षा को लगातार कम कर रहे हैं।’’ उन्होंने तीन अहम प्रश्नों को रेखांकित किया और कहा कि बहस में इन मुद्दों का समाधान निकाला जाना चाहिए। भारत ने सवाल किया कि क्या ‘‘प्रभावी बहुपक्षवाद’’ को इस तरह के चार्टर का बचाव करके बरकरार रखा जा सकता है, जो ‘‘193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र में महज पांच देशों को अन्य देशों के बरक्स खड़ा करता है और उन पांच देशों में से प्रत्येक को शेष 188 सदस्य देशों की सामूहिक इच्छा को अनदेखा करने की शक्ति प्रदान करता है’’।
उन्होंने चीन और रूस का जिक्र करते हुए पूछा, ‘‘क्या संयुक्त राष्ट्र के इस चार्टर का बचाव कर वाकई में इस तरह से ‘प्रभावी बहुपक्षवाद’ को बढ़ावा दिया जा सकता है जहां इसके स्थायी सदस्य देश अपना नाम तक नहीं बदल सकते हैं?’’ संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में चीन के लिए अब भी ‘चीनी गणराज्य’ इस्तेमाल किया जाता है जो अब आधिकारिक रूप से ‘द पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के नाम से जाना जाता है जबकि रूस के लिए अब भी ‘यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स’ इस्तेमाल किया जाता है।