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भारत अब डॉलर नहीं रुपये में कर रहा व्यापार, दुनिया के कई देश पेमेंट को तैयार

नई दिल्ली  
डॉलर के मुकाबले रुपये में विदेशों में कारोबार का दायरा आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है। भारत ऐसे देशों के साथ भारतीय रुपये में व्यापार करने को तैयार है जो डॉलर की कमी या मुद्रा की विफलता का सामना कर रहे हैं। वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

विदेश व्यापार नीति 2023 की घोषणा के दौरान उन्होंने कहा कि सरकार रुपये में भुगतान की प्रणाली को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। वाणिज्य सचिव ने बताया कि भारतीय रुपये को वैश्विक मुद्रा बनाने के उद्देश्य के साथ एफटीपी में बदलाव किए गए हैं जिससे कि उसमें विदेशी व्यापार लेनदेन संभव हो सकें। विशेषज्ञों के मुताबिक रुपये में कारोबार से निश्चित तौर पर भारत का निर्यात बढ़ेगा। इससे देश की उत्पादन क्षमता में भी इजाफा होना तय है। हालांकि, आयात और निर्यात के बीच में अंतर के तौर पर जो रकम फंसेगी उसका किस मुद्रा में निपटारा किया जाएगा यह अभी भी सवाल बना हुआ है।

पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने बताया कि रुपये के साथ कारोबार देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों के ही तहत संभव हैं। भारत में अब तक जितने भी इस तरह के करार हुए हैं उनमें दो देशों के बीच ही मुद्रा में कारोबार की शर्तें तय की गई हैं। मौजूदा समय में ऐसा रुस और ईरान के साथ है। इन देशों के साथ भारत जो भी निर्यात करता है उस मुद्रा के बराबर तेल भी आयात किया जाता है। अगर इसका दायरा और देशों के साथ बढ़ाया जाएगा तो देखना होगा कि हम वहां से निर्यात के पैमाने पर आयात क्या और कितना करते हैं।

भारत भी अगर ऐसे समझौते करने की तरफ आगे बढ़ रहा है तो उसे भी शुरू में ऐसे ही देशों के साथ समझौता करना होगा जिन्हें हमारी जरूरत ज्यादा होगी। साथ ही निर्यात के साथ साथ आयात की भी व्यवस्था हो इसकी भी पड़ताल करनी पड़ेगी ताकी भारत के निर्यात के एवज में मिलने वाली रकम फंसे नहीं। अगर भारत किसी भी देश को बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहा है और उस मुकाबले वहां से आयात नहीं हो रहा है तो ऐसे में भारत की रकम फंसने की आशंका है। ऐसे में जरूरी है कि यह व्यवस्था जरूर पुख्ता की जाए।
उत्पादन संग रोजगार के अवसर बढ़ेंगे

आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र कुमार मिश्रा ने हिन्दुस्तान से बाचतीच में कहा कि अगर रुपये में ही किसी देश के साथ कारोबार होता है तो हमारे लिए यह डॉलर पर निर्भरता को कम करेगा। इससे विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अच्छी बनी रहेगी। वहीं हमारा निर्यात भी बढ़ेगा जो जाहिर तौर पर देश में उत्पादन बढ़ाएगा और रोजगार सृजन में भी मददगार रहेगा।

 

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