इंडो-पैसिफिक रीजन को साधने में जुटा भारत, PM मोदी ने की 12-चरणीय पहल की शुरुआत
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पापुआ न्यू गिनी में 21 मई को आयोजित हुए भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग (एफआईपीआईसी) शिखर सम्मेलन के 12 चरणों की पहल का अनावरण किया। दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच क्षेत्र में तटस्थ और रचनात्मक एजेंडे पर भारत की सकारात्मक भागीदारी न केवल प्रशांत द्वीप देशों (पीआईसी) के साथ विकास सहयोग की प्रवृत्ति स्थापित करेगी, बल्कि भू-राजनीतिक तनाव को भी कम करेगी। इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता ने इस क्षेत्र में उसके आधिपत्यवादी इरादों को लेकर संदेह पैदा कर दिया है जैसा कि दक्षिण चीन सागर में देखा गया है।
भारत ने इन मुद्दों पर दिया जोर
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा सुझाई गई अधिकांश पहल पूरी तरह से विकास और कल्याणकारी प्रकृति की हैं, न कि रणनीतिक हिस्सेदारी बनाने की। जैसा कि चीन जैसे देशों के कार्यक्रमों में देखा जाता है। इन 12 चरणों की पहलों में एफआईपीआईसी एसएमई विकास परियोजना, सरकारी भवनों के लिए सौर परियोजना, पेयजल के लिए विलवणीकरण इकाइयां, समुद्री एम्बुलेंस की आपूर्ति, डायलिसिस इकाइयां स्थापित करना, 24×7 आपातकालीन हेल्पलाइन, जन औषधि केंद्र, योग केंद्र आदि शामिल हैं। प्रशांत द्वीप समूह के देशों के साथ भारत के जुड़ाव में सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे और सामुदायिक विकास परियोजनाओं के निर्माण दोनों शामिल हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग, आईटी और डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग इसके लिए एक प्रमुख फोकस क्षेत्र रहा है।
भारत ने पीआईसी को विकास सहायता की आवश्यकता पर दिया जोर
भारत का मानना है कि सतत विकास के क्षेत्र सहित दुनिया की विकास गाथा तब तक अधूरी रहेगी जब तक इस यात्रा में पीआईसी को शामिल नहीं किया जाता। इन देशों को अपनी विकास क्षमता को साकार करने के लिए पूंजी और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। इसलिए भारत ने पीआईसी को विकास सहायता की आवश्यकता पर जोर दिया है और इस उद्देश्य के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग में भाग लिया है।
विश्व की समृद्धि में विश्वास रखता है भारत
बता दें कि भारत विश्व की साझी समृद्धि में विश्वास रखता है। इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने विकासशील देशों को विकास सहायता प्रदान करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ 2017 में एक भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष की स्थापना की थी, जिसमें सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) और छोटे द्वीप विकासशील राज्यों पर विशेष ध्यान दिया गया। इस फंड से विशेष रूप से उनकी सतत विकास परियोजनाओं को लाभ मिल सकता है।