बेतिया में राम-सीता ने परिणय सूत्र में बंधने पर किया था महायज्ञ; पटजिरवा में माता सीता ने खोला था डोली का पट
बेतिया.
बिहार के बेतिया में श्रीराम और सीता ने परिणय सूत्र में बंधने के बाद पहला महायज्ञ किया था। बताया जाता है कि परिणय सूत्र में बंधने के बाद पहला महायज्ञ जिले के बैरिया प्रखंड के प्रसिद्ध सिद्धपीठ पटजिरवा धाम में किया था। पटजिरवा से श्रीराम और सीता का गहरा संबंध है। श्रीराम और सीता के परिणय सूत्र में बंधने के बाद अयोध्या जाने के दौरान बारात पटजिरवा में रुकी थी। यहां माता सीता ने डोली का पट खोला था, जिससे इसका नाम पटखुला भी पड़ा जो अब सिद्धपीठ पटजिरवा धाम के नाम से प्रसिद्ध है।
जानकारी के अनुसार, अयोध्या में हो रही भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पटजिरवा के लोग भी काफी उत्साहित हैं। पिछले कई दिनों से पटजिरवा धाम और आसपास के घरों में रामधुन बज रही है। शनिवार को यहां भव्य रैली निकाली गई। इसके साथ ही 22 जनवरी को यहां पर अखंड भंडारे के आयोजन के साथ भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया।
सिद्धपीठ पटजिरवा धाम पुस्तक के रचयिता सुनील दूबे बताते हैं कि श्रीराम की बारात लौटने के समय मिथिला नरेश जनक ने हर 13 कोस पर तालाब खुदवाकर वहां बारात के पड़ाव की व्यवस्था की थी। मिथिला क्षेत्र में बारात का अंतिम पड़ाव पटजिरवा में गंडकी के तट पर पड़ा था। सिद्धपीठ पटजिरवा देवी स्थान विकास समिति के अध्यक्ष दरोगा पटेल, समाज सेवा समिति के अध्यक्ष नगीना चौधरी, पूजा समिति के अध्यक्ष अरुण साह, संयोजक अशोक कुमार और स्थानीय पुजारी लालबाबू मिश्र ने बताया कि सतयुग में जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया और श्रीहरि ने अदृश्य सुदर्शन से उनके शरीर के 51 खंड किए तो पटजिरवा से बांसी में जाकर श्रीराम ने गंडकी नदी में स्नान किया था।
पावन नारायणी के तट पर स्थित पटजिरवा के आसपास के गांवों के नाम श्रीराम के बारात के पड़ाव पर पड़े हैं। स्थानीय लालबाबू मिश्र बताते हैं कि जहां श्रीराम ने माता सीता के साथ विश्राम किया था उस जगह का नाम श्रीनगर, जहां मांडवी, उर्मिला व श्रुतिकृति ठहरीं और जहां कई दिनों तक मंगलाचरण होता रहा उसका नाम मंगलपुर, जहां श्रीराम और सीता ने पूजा यज्ञ किया उसका नाम पूजहां, जहां बारात के घोड़े आदि ठहराए गए वह घोड़हिया, जहां बारात के रथों को रखा गया था वह रथहा अपभ्रंश नाम रनहा, जहां श्रीराम ने गंडकी में स्नान किया वह रामघाट, महाराज दशरथ ने जहां सूर्य उपासना की उस जगह का नाम सूर्यपुर, जहां अयोध्या के ध्वज पताखे के साथ पड़ाव द्वार बनाए उस जगह का नाम पतरखा है। यहीं से बांसी में जाकर श्रीराम ने गंडकी में स्नान किया था। माता सती के पैरों के कुछ अंश यहां गिरे जिससे पीपल की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है कि माता के पैर गिरने से भी इसका नाम पदगिरा पड़ा था। कालांतर में पुत्रों के जन्म के बाद ही उनकी मौत हो जाने पर नेपाल नरेश ने यहां पर यज्ञ किया था। उसके बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई और वह जीवित रह गया।