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कैसे लगेगा खालिस्तान समर्थकों पर अंकुश : ज्ञानेन्द्र रावत

नई दिल्ली  
आजकल कनाडा हो या अमेरिका में खालिस्तान समर्थकों ने उत्पात मचा रखा है। हालात इस बात के सबूत हैं कि वहां बीते दिनों खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों से स्थिति न केवल बिगड़ती जा रही है बल्कि यों कहें कि वहां के हालात दिन व दिन खतरनाक होते जा रहे हैं। वहां के स्थानीय प्रशासन ही नहीं, समूची दुनिया की चिंता की असली वजह भी यही है। कारण यह कि यदि इस पर जल्दी लगाम नहीं लगी तो इसके दूरगामी परिणाम काफी भयावह हो सकते हैं। वैदेशिक मामलों के जानकारों की चिंता का अहम कारण यही है। इस मामले में वहां की सरकारों की विवशता की असली वजह यह भी है कि यदि वह कड़ाई से इस समस्या को हल करने का प्रयास करती हैं तो उसे वहां के नागरिक अधिकारों के खिलाफ माना जायेगा जबकि हकीकत यह है कि ऐसे संगठन और उनसे जुड़े लोग अक्सर सरकारों की इस कमजोरी का लाभ उठाते हुए इस तरह की आतंकी गतिविधियों को अंजाम देकर सरकारों के लिए मुसीबत पैदा करते हैं। ताजा घटना अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास की है जहां न केवल तोड़फोड़ की गयी बल्कि उसमें आग भी लगा दी गयी। दूसरी वारदात कनाडा की है जहां खालिस्तान समर्थकों ने दो भारतीय राजनयिकों की तस्वीर वाले पोस्टर लगाये। दरअसल खालिस्तान समर्थक भारतीय राजनयिकों को पिछले दिनों कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की एक गुरुद्वारा में गोली मारकर की गयी हत्या का दोषी मान रहे हैं। इससे पहले ब्रैम्पटन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी झांकी निकालने की घटना हुई थी। इसके दृश्य सोशल मीडिया पर आने के बाद भारत ने कनाडा को चेताया था। भारत ने उस समय कनाडा सरकार से तुरंत कार्रवाई की मांग करते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आतंक और चरमपंथियों को शरण देना बंद करना चाहिए। यह प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है।
 
गौरतलब यह है कि सैनफ्रांसिस्को में भारतीय दूतावास में की गयी तोड़फोड़ और आगजनी की वारदात का एक फोटो व वीडियो शेयर किया गया था। उसके साथ निज्जर की हत्या से जुड़ी समाचार पत्रों की कतरने भी शामिल की गयी थीं। हकीकत यह भी है कि इससे कोई जान-माल का नुकसान तो नहीं हुआ और लगाई आग पर भी तुरंत काबू पा लिया गया। साथ ही सभी दूतावास के कर्मचारियों को भी कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन यह घटना निःसंदेह बेहद गंभीर और शर्मनाक है। फिर कनाडा में भारतीय राजनयिकों की इस तरह तस्वीर को प्रचारित करना खतरनाक तो है ही, वह इसलिये भी निंदनीय है कि इससे द्विपक्षीय सम्बंधों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे एक संप्रभु राष्ट्र की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है। यही वह अहम कारण है कि भारत सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है और कनाडा के हाई कमिश्नर को समन किया है। कनाडा के अधिकारियों ने राजनयिकों की सुरक्षा का वायदा किया है। उनके अनुसार कनाडा में जो हुआ है, उसमें वहां के पूरे समुदाय कहें या कनाडा की सहमति नहीं है। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी सरकार से भी कड़ी कार्रवाई की मांग की है। संतोष इस बात का है कि इन घटनाओं पर कनाडा और अमेरिकी सरकार ने फिलहाल कार्रवाई की बात कही है। असलियत यह है और दुखदायी भी कि ऐसी घटनाओं पर दोनों ही देश की सरकारों का रवैय्या अभीत बेहद निराशाजनक रहा है और आजतक दोनों ही सरकारें इस बाबत कोई भी कार्रवाई करने में नाकाम साबित हुयी हैं। इस मामले में आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देश भी हैं जिनके भारत के साथ बेहद नजदीकी और मधुर सम्बन्ध हैं । जिसके बावजूद वहां की सरकारें इस प्रकार की गतिविधियों पर काबू नहीं पा सकी है। अमृत पाल सिंह का प्रकरण इसका जीता जागता सबूत है। हकीकत में अमृतपाल सिंह धर्म की आड़ में सीधे-सीधे कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा था। उसके बावजूद वहां की सरकारों की चुप्पी समझ से परे है। यही विचार का विषय है।

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