राजनीति

CM से मंत्री तक मराठा, राजनीति में रहा दबदबा; फिर भी क्यों है गुस्सा और आरक्षण की मांग

मुंबई
मराठा समुदाय के लोगों के लिए आरक्षण की मांग एकनाथ शिंदे सरकार के लिए जी का जंजाल बनती जा रही है। मनोज जारांगे पाटिल और उनके समर्थक अपना विरोध प्रदर्शन रोकने के लिए राजी नहीं है। तो अब राज्य सरकार सर्वदलीय बैठक से इस मुद्दे का हल निकालने की कोशिश कर रही है। साथ ही प्रदर्शनकारियों से शांत रहने की अपील भी कर रही है। उग्र प्रदर्शन में लोग विधायक-मंत्रियों के घर-दफ्तर फूंक चुके हैं। पुणे-बेंगलुरु राजमार्ग पर ट्रैफिक भी अवरुद्ध कर दिया गया। इन घटनाओं ने आंदोलन को हिंसक रूप दे दिया है। सवाल यह है कि आंदोलनकारी इस बार मराठी राजनेताओं से इतना क्यों उखड़े हुए हैं? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सीएम शिंदे से लेकर कैबिनेट के कई मंत्री मराठा समुदाय से आते हैं। अब तक राज्य पर हुकूमत करने वाले 60 फीसदी मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं।

मराठा कोटे के लिए चल रहा संघर्ष महाराष्ट्र के कई जिलों में उग्र रूप ले चुका है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मराठा आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा करने और समाधान निकालने के लिए आज एक सर्वदलीय बैठक कर रहे है। कारण साफ है- विरोध लगातार बढ़ रहा है। इस बीच, शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने उनकी पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे, अन्य छह सांसदों और 16 विधायकों को बैठक में आमंत्रित नहीं करने का आरोप लगाया है।

मराठी राजनेताओं से नाराजगी की वजह
राजनीतिक टिप्पणीकार और मुंबई विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर सुरेंद्र जोंधले का मानना है कि पुरानी परंपराओं से हटकर इस बार प्रदर्शनकारियों में अपने ही समुदाय के नेताओं के प्रति जबरदस्त गुस्सा है। वर्षों तक मराठा समुदाय का महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा रहा है। महाराष्ट्र में 60 फीसदी मराठी मुख्यमंत्री रह चुके हैं और इसी समुदाय के अधिकतर लोग कैबिनेट और विधानसभा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

रोजगार के अवसरों में पिछड़ापन
सीएम एकनाथ शिंदे से लेकर उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों के मराठा समुदाय से आने के बाद भी समुदाय के लोगों में गुस्सा है। इसकी वजह यह है कि मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठों की एक बड़ी संख्या खेती पर निर्भर रही है और जो कमजोर हो गई है। खेती अब फायदा का सौदा नहीं है और खेतिहर समुदाय होने के चलते रोजगार के अवसरों में पिछड़ापन दिखता है। यही वजह है कि मराठा समुदाय अब आरक्षण की मांग कर रहा है।

अपनों का धोखा
कई वर्षों से मराठा समुदाय की राजनीति हिन्दुत्व और जाति के इर्द-गिर्द रही है। यशवंतराव चव्हाण, वसंतदादा पाटिल, शरद पवार, विलासराव देशमुख, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चौहान और अब मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे। ये वो नाम हैं, जिन्होंने राज्य में मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली। ये सभी मराठा समुदाय से आते हैं। पूर्व विधायक और राजनीतिक पर्यवेक्षक कुमार सप्तर्षि के अनुसार, मराठी युवाओं को अब अहसास हो गया है कि उनके अपने ही नेता उनसे धोखा कर रहे हैं। यही वजह है कि अब बड़ी संख्या में लोग अपने ही समुदाय के नेताओं के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। वहीं, आर्थिक मोर्चे की बात की जाए तो मराठा वो विभाजित समुदाय है, जिसमें या तो भूमिहीन किसान आते हैं या अभी आंदोलन के केंद्र मराठावाड़ क्षेत्र के छोटे तबके के किसान। मराठा कोटे के लिए चल रहे आंदोलन के मुख्य चेहरे मरोज जारांगे पाटिल इसी गैर प्रतिष्ठान वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। सरकार के खिलाफ लामबंद मनोज पाटिल को उन्हीं युवाओं का साथ मिल रहा है, जिनकी सामाजिक और राजनीतिक हिस्सेदारी शून्य है।

 

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