पहले शिंदे vs उद्धव, अब चाचा बनाम भतीजा; महाराष्ट्र में BJP के ‘ऑपरेशन स्प्लिट’ से अब कहां MVA, कितनी बची ताकत?
नई दिल्ली
महाराष्ट्र में रविवार को तेजी से बदले सियासी घटनाक्रम में महाविकास अघाड़ी की प्रमुख घटक पार्टी एनसीपी दो फाड़ हो गई। शरद पवार की अगुवाई वाली इस पार्टी में उनके ही 63 वर्षीय भतीजे अजित पवार बगावत करते हुए एकनाथ शिंदे की सरकार में उप मुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ आठ और एनसीपी विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली है। दावा किया जा रहा है कि एनसीपी के 53 विधायकों में से 40 अजित पवार के साथ हैं। जूनियर पवार के इस गेम से चाचा की अगुवाई वाली एनसीपी कमजोर हो गई है। अब चाचा और भतीजे के बीच पार्टी पर कब्जे की लड़ाई तेज होगी। इस बीच अजित पवार ने दावा किया है कि पार्टी के अधिकांश विधायक उनके साथ हैं, इसलिए पार्टी और पार्टी सिंबल पर उनका हक है। अगले साल महाराष्ट्र में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में पार्टी पर कब्जे की लड़ाई अहम बन गई है।
महाविकास अघाड़ी की स्थिति
288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद से महाविकास अघाड़ी में कुल 121 विधायक रह गए थे। अब अजित पवार के 40 विधायकों के दावे के बाद उसकी ताकत सिर्फ 81 विधायकों तक सिमट गई है। दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों से बचने के लिए अजित पवार को कम से कम 36 विधायकों की जरूरत है। हालाँकि, NCP के पास अभी भी संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत सभी बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए कदम उठाने की शक्ति है।
अब NDA की ताकत क्या
एनसीपी में अजित के बड़े विद्रोह के बाद भाजपा नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), के पास अब 205 विधायक हो गए हैं। पहले एनडीए खेमे में 165 विधायक थे। विधानसभा में शेष बची दो सीटें असदुद्दीन औवेसी की AIMIM के पास हैं।
शिंदे सरकार के एक साल पूरे
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने तीन दिन पहले ही एक साल पूरे कर लिए हैं। सरकार की पहली वर्षगांठ के मौके पर ही अजित पवार का विद्रोह सामने आया है। यह कदम महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (MVA) के लिए एक और झटका है, जो पहले से ही शिवसेना में विभाजन को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई से जूझ रही है। चार साल के दौरान अजित पवार तीसरी बार उप मुख्यमंत्री बने हैं। इससे पहले वह 15 वर्षों के कांग्रेस-एनसीपी शासनकाल में भी उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं।