रायपुर
राज्यपाल रमेश बैस जब भी छत्तीसगढ़ आते हैं आखिर चर्चा क्यों छिड़ जाती है..? किसी समय छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा के कद्दावर नेता रहे रमेश बैस लगातार लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे.केन्द्र में कई मर्तबे मंत्री रहे,लेकिन राज्य बनने के बाद उन्हे मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पार्टी ने पसंद नहीं किया।
अटल-आडवाणी का समय गुजरने के बाद जब मोदी-शाह का प्रभुत्व पार्टी में चला तो कुछ समय तक वे भी हाशिये में रखे गए। इस बीच जब पन्द्रह साल का भाजपा राज बुरी तरह ध्वस्त हुआ,और छत्तीसगढिय़ावाद का जोर दिखा तब पार्टी के भीतर रमेश बैस की तरफ उम्मीद के रूप में देखा जाने लगा था कि केन्द्र ने उन्हे राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर जिम्मेदारी सौंपते हुए राज्य से बाहर कर दिया। वे झारखंड व त्रिपुरा के राज्यपाल रहे। अब उन्हे औद्योगिक राज्य महाराष्ट्र का अहम जिम्मा दिया गया है,ऐसे समय में जब शिव सेना का विभाजन हुआ और भाजपा पुन: सत्ता में लौटी। जबकि बात उनके गृहराज्य छत्तीसगढ़ की करें तो भाजपा साढ़े चार साल पहले जहां थी आज भी वहीं नजर आ रही है। दरअसल इतनी सारी बातें इसलिए आ रही है कि जब भी बैस छत्तीसगढ़ आते हैं एक राजनेता की तरह स्वागत,सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों व आम लोगों का शिष्टाचार मेल जोल,उनकी सादगी व सरल व्यवहार की पहचान व शिष्टता है।
पारिवारिक व सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए इस बार भी वे प्रवास पर हैं तब मीडिया ने फिर से उन्हे कुरेदा लेकिन संवैधानिक पद की मयार्दा का ध्यान रखते हुए ही उन्होने बात की,हां इतना जरूर कह गए कि पार्टी ने उन्हे बहुत कुछ दिया है,जो भी जिम्मेदारी पार्टी आगे तय करेगी वे करने तैयार हैं। एक खास बात यह भी कि उनके पारिवारिक व धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेने के लिए राज्य भाजपा के अधिकांश लोग पहुंचे। चूंकि छह माह बाद विधानसभा का चुनाव है इसलिए फिर चर्चा छिड़ गई है कि क्या बैस जी की सक्रिय राजनीति में वापसी होगी,तब जबकि भूपेश बघेल के अक्खड़ छत्तीसगढिय़ापन से भाजपा निपट नहीं पा रही है। भाजपा के पुराने नेता पार्टी को एक नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में क्या बैस जी सर्वस्वीकार हो सकते हैं? लेकिन तय तो पार्टी को करना है। वैसे राजनीति में कुछ भी संभव है।