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ईरान के चाबहार को छोड़ भारत की नजर अब ग्रीस के इस बंदरगाह पर, कारण जान लें

एथेंस
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के आखिर में दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद ग्रीस की आधिकारिक यात्रा करेंगे। पीएम मोदी की इस यात्रा को भारत-ग्रीस संबंधों में मील का पत्थर बताया जा रहा है। 1983 के बाद पीएम मोदी ग्रीस जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे। इससे पहले इंदिरा गांधी ग्रीस दौरे पर गईं थीं। पीएम मोदी की ग्रीस यात्रा के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। इसे भूमध्य सागर में भारत की बढ़ती दिलचस्पी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले कुछ साल से भारतीय नौसेना भूमध्य सागर में अपने युद्धपोतों और पनडुब्बियों की रणनीतिक तैनाती भी कर रही है। इसके अलावा भारत का यूरोपीय देशों से होने वाले व्यापार में भी ग्रीस एक गेटवे के तौर पर काम कर सकता है।

ग्रीस के पीरियस बंदरगाह पर भारत की नजर

बताया जा रहा है कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान भारत के शिपमेंट को तेजी से यूरोपीय देशों में पहुंचाने के रास्ते पर भी चर्चा हो सकती है। भारत का लक्ष्य अपने शिपमेंट को तेजी से यूरोप भेजने के लिए चाबहार बंदरगाह के बजाय अपने पीरियस बंदरगाह के उपयोग का पता लगाना है। पीरियस बंदरगाह भूमध्य सागर के किनारे बसा हुआ है। अगर भारतीय मालवाहक जहाज भारत के पश्चिमी तट से अदन की खाड़ी, लाल सागर और स्वेज नहर के रास्ते भूमध्य सागर में प्रवेश करे तो पीरियस यूरोपीय देशों के सबसे नजदीकी बंदरगाह साबित हो सकता है। ग्रीस से भारतीय माल अल्बानिया, मेसेडोनिया और बुल्गारिया के रास्ते बाकी यूरोपीय देशों तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

चीन के कब्जे में है पीरियस बंदरगाह

ग्रीस के पीरियस बंदरगाह पर वर्तमान में चीन का कब्जा है। इस बंदरगाह का अधिकांश स्वामित्व चीनी शिपिंग कंपनी COSCO के पास है। 2020 में COSCO के पास पीरियस बंदरगाह की 67 फीसदी हिस्सेदारी थी। ऐसे में चीनी कंपनी से इस बंदरगाह को हथियाना भारत के लिए मुश्किल कदम हो सकता है। हालांकि, कई भारतीय कंपनियां भी अलग-अलग देशों में बंदरगाहों का संचालन करती हैं, जिन्हें ऐसे काम का बड़ा अनुभव है। इजरायल के हाइफा बंदरगाह की बोली को भला कोई कैसे भूल सकता है। इस बंदरगाह के स्वामित्व के लिए भारत की एक प्रमुख कंपनी ने ऐसी बोली लगा दी, जिसे दुनिया की कोई भी कंपनी टक्कर नहीं दे सकी थी। ऐसे में अगर ग्रीस और भारत चाह दें तो पीरियस बंदरगाह से चीनी कंपनी का बोरिया-बिस्तर समेटा जा सकता है।

चाबहार बंदरगाह से फायदा क्यों नहीं हो रहा

भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को यूरोपीय देशों में भारतीय शिपमेंट के गेटवे के रूप में विकसित किया है। इसके अलावा चाबहार को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के काट के रूप में देखा जा रहा था। भारत की रणनीति चाबहार के जरिए अफगानिस्तान तक सड़क और रेलमार्ग के जरिए कनेक्टिविटी बढ़ाने की थी। हालांकि, अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे ने भारत की इस परियोजना को जबरदस्त नुकासन पहुंचाया है। इसके बावजूद भारत यह उम्मीद कर रहा था कि चाबहार का इस्तेमाल यूरोप में व्यापार के लिए किया जा सकता है। लेकिन, ताजा भू-राजनीतिक हालात ने भारत के इस सपने पर भी पानी फेर दिया है।

चाबहार के सामने क्या मुश्किल खड़ी हुई

भारत, ईरान से होकर आर्मेनिया के जंगेजुर कॉरिडोर के रास्ते यूरोपीय देशों तक अपने माल को पहुंचना चाहता था। अब ताजा हालात यह हैं कि अजरबैजान हर कीमत पर आर्मेनिया के जंगेजुर कॉरिडोर पर कब्जे की कोशिश कर रहा है। चूंकि, अजरबैजान की सेना आर्मेनिया के मुकाबले काफी ताकतवर है, ऐसे में भारत अपनी भारी-भरकम निवेश को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है। अगर जंगेजुर कॉरिडोर अजरबैजान के हाथ लगता है तो भारत के लिए चाबहार को इस्तेमाल करने की वजह खत्म हो जाएगी। इस कारण भारत पहले से ही विकल्प के तौर पर ग्रीस के पीरियस बंदरगाह को लेकर बातचीत करने की कोशिश में जुटा है।

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