रायपुर.
देश में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सभी सियासी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वैसे तो यह ताकत सभी विधानसभा क्षेत्रों में लगाई जा रही है, लेकिन सभी सियासी दलों को अंदाजा है कि इन पांच राज्यों में अगर दलित और आदिवासियों को अपने पक्ष में कर लिया गया, तो सत्ता उनके पास ही होगी। दरअसल राजनीतिक दलों के पास ऐसा सोचने और इस समुदाय के लोगों को अपने पक्ष में करने के पीछे सबसे बड़ा कारण बीते चुनावों के नतीजे हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2018 में जिस राज्य में दलित और आदिवासी का बंपर वोट जिस राजनीतिक दल को मिला, सत्ता की चाबी उसको ही मिली। 2013 के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह ट्रेंड सत्ता पाने के लिए बना रहना बेहद जरूरी है। क्योंकि 2013 में सत्ता पाने वाली भाजपा ने 2018 के चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में इस समुदाय पर अपना अधिकार खो दिया था।
सियासी आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अगर दलित और आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में कर लिया गया, तो राज्य में सत्ता एक तरह से उसी की हो जाती है। आंकड़ों के मुताबिक पांच राज्यों में विधानसभा की 679 सीटें हैं। इन सभी सीटों में 240 सीटें ऐसी हैं, जो दलित और आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटें हैं। आंकड़ों के मुताबिक पांचों राज्यों की तकरीबन ऐसी 35 फ़ीसदी सीटें आरक्षित कोटे में आती हैं। राजनीतिक विश्लेषक बृजेश शुक्ला का कहना है कि 2018 के चुनाव में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इन सभी सुरक्षित सीटों पर तकरीबन दो तिहाई कब्जा कर कांग्रेस ने सत्ता की चाबी पाई थी। यही वजह है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में सभी राजनीतिक दलों का पूरा फोकस दलित और आदिवासियों पर ही ज्यादा से ज्यादा केंद्रित है। क्योंकि यही सुरक्षित सीटें विधानसभा के चुनाव की दशा और दिशा पूरी तरह से बदल देती हैं।
राजस्थान में सुरक्षित सीटों पर जीत से मिलती है सत्ता
राजस्थान में कुल 200 विधानसभा की सीटें हैं। इसमें तकरीबन तीस फीसदी सीटें यानी 59 सीटें सुरक्षित कैटेगरी में आती हैं। राजस्थान की आबादी में 17 फीसदी दलित और 13 फीसदी आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हैं। इसी आधार पर सुरक्षित की गई यहां की 34 सीटें एससी और 25 सीटें एसटी कोटे में सुरक्षित हैं। 2013 के चुनावी परिणाम के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी ने इन 59 सीटों में से 45 सीटें अपने खाते में जीत के तौर पर दर्ज की थीं। जबकि इसी चुनावी साल में कांग्रेस को इन सुरक्षित सीटों पर महज 7 सीटें ही जीत पाई थी। चुनावी परिणाम बताते हैं कि 2018 में जब चुनाव हुए, तो कांग्रेस ने 59 सीटों में से 34 सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया। जबकि भारतीय जनता पार्टी सिर्फ इक्कीस सुरक्षित सीटें ही जीत सकी।