अविश्वास पर कांग्रेस पीछे हटने के मूड नहीं,जानकारों से ली जाएगी सलाह
भोपाल
विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस अब चुप नहीं बैठेगी। वह इस मामले को लेकर कांग्रेस कानूनी सलाह भी लेगी। इस पर कांग्रेस में तेजी से विचार हो रहा है। कांग्रेस इस पर विधानसभा के नियम प्रक्रिया के जानकारों से भी सलाह ले रही है। कांग्रेस इस मामले पर अब पीछे हटने के मूड में नहीं हैं। इसलिए इस पर हर बिंदु पर वह विचार कर रही है।
सूत्रों की मानी जाए तो विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ उसके द्वारा दी गई सूचना को स्वीकार नहीं किया गया तो वह कैसे इस मुद्दे पर आगे विधानसभा अध्यक्ष को घेर सकती है। इसे लेकर कांग्रेस में शुक्रवार से ही मंथन चल रहा है। जिसमें यह भी तय हुआ कि इस मामले में कानूनी राय भी ली जाए।
24 दिन की है पूरी प्रक्रिया
दरअसल विधानसभा के नियमानुसार अध्यक्ष को लेकर दिए गए अविश्वास संकल्प के 14 दिन के भीतर परीक्षण कर सदन में इस प्रस्ताव को विचार के लिए रखा जा सकता है। यदि प्रस्ताव पर विचार हुआ और यह स्वीकार हुआ तो इसके दस दिन के भीतर चर्चा करवाना होगी। जबकि विधानसभा का सत्र 27 मार्च तक का है। ऐसे में इस प्रस्ताव को लेकर अध्यक्ष क्या निर्णय लेंगे। इस पर विपक्ष की नजर है।
यदि इस प्रस्ताव पर निर्णय कांग्रेस की मंशा अनुरूप नहीं आया तो वह कानूनी सलाह के आधार पर आगे की कार्यवाही में जा सकती है। इसके लिए संविधान विशेषज्ञों से भी कांग्रेस के नेता चर्चा करेंगे। इसके साथ ही कांग्रेस के कुछ विधायक विधानसभा नियम प्रक्रिया के जानकारों से भी सलाह करेगी। कांग्रेस के विधायकों भी सदन के अंदर इस मामले को 13 मार्च से फिर उठाएं।
गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि जीतू पटवारी का निलंबन का प्रस्ताव हमने किया था। उन्हें अविश्वास प्रस्ताव लाता था तो हमारे खिलाफ लाते, लेकिन वे ला रहे हैं अध्यक्ष के खिलाफ। मिश्रा ने आरोप लगाया कि यह कांग्रेस की गुटबाजी का कारण है। उन्होंने कहा कि विधानसभा से निलंबन का मूल है सस्ती लोकप्रियता के लिए सदन को गुमराह करना। जीतू पटवारी हाथ नचवा-नचवा कर बोलते हैं, हाथ उठवा- उठवा कर बोलते हैं। इसके पीछे उनका कारण यही रहता है कि वे कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष से आगे कैसे आएं। हमने निलंबन का प्रस्ताव किया। अविश्वास लाते तो हमारे खिलाफ लाते,
लेकिन ला रहे है अध्यक्ष के खिलाफ। उन्होंने कहा कि जीतू पटवारी के निलंबन पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मौन रहना और विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर कमलनाथ और आधे विधायकों के हस्ताक्षर नहीं करने से यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस में फूट है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से कांग्रेस से वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा हो रही है उससे कांग्रेसी भी समझ रहे हैं कि 2023 के चुनाव में परिणाम क्या होना है। उन्होंने कहा कि कमलनाथ की तानाशाही में कांग्रेस पीस रही है।