कांग्रेस को तीन राज्यों में मिलीं सिर्फ 8 सीटें, नागालैंड में जीरो पर; मेघालय में 21 से 5 पर लुढ़की
नई दिल्ली
त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव में भाजपा समेत कई दलों को फायदा हुआ है। त्रिपुरा में तो भाजपा की अपने दम पर फिर सरकार बन गई है, जबकि नागालैंड में वह एनडीपीपी के साथ सत्ता में आएगी। इसके अलावा मेघालय में भी एनपीपी संग वह सरकार बनाने जा रही है। इस तरह पूर्वोत्तर भारत में भी उसके अच्छे दिन जारी हैं। लेकिन कांग्रेस की गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है बल्कि बढ़ती ही जा रही है। इन तीन राज्यों के चुनाव का हासिल उसके लिए यह है कि वह महज 8 सीटों पर ही सिमट गई है। इनमें भी नागालैंड में तो उसकी एक भी सीट नहीं आई है। इसके अलावा त्रिपुरा में 3 और मेघालय में 5 सीटें ही हासिल हुई हैं। किसी भी राज्य में वह सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा भी नहीं बनने जा रही। राहुल गांधी की 5 महीने की भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी ऐसी स्थिति बनना उसके लिए चिंताजनक है। कांग्रेस की 2018 में इन तीन राज्यों में कुल मिलाकर 21 सीटें थीं, जो अकेले मेघालय से थीं। यहां कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और उसके 5 ही विधायक रह गए हैं। इसकी वजह यह है कि राज्य के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवार के सदस्य मुकुल संगमा ने पार्टी छोड़ दी है। हालांकि त्रिपुरा में कांग्रेस खाता खोलने में सफल रही है, जहां 2018 में उसका पूरी तरह से सफाया हो गया था।
2013 में कांग्रेस ने जीती थीं 47 सीटें, अब 8 पर अटकी
तीनों राज्यों को मिलाकर कांग्रेस की 2018 में 21 सीटें थीं। वहीं 10 साल पहले यानी 2013 की बात करें तो कांग्रेस की इन तीनों राज्यों में 47 सीटें थीं। इनमें भी सबसे ज्यादा सीटें उसके पास मेघालय में थीं और 29 सीटों के साथ वह सत्ता में थी। वहीं सीपीएम को भले ही सत्ता मिली थी, लेकिन कांग्रेस भी 10 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल थी। नागालैंड में तो कांग्रेस इस बार भी जीरो है और 2018 में भी शून्य पर ही थी। हालांकि 2013 में उसके पास यहां 8 सीटें थीं। साफ है कि बीते 10 सालों से लगातार वह नुकसान झेल रही है।
यही नहीं कांग्रेस की यह स्थिति असम, अरुणाचल और मणिपुर जैसे राज्यों में भी है। इन तीनों राज्यों में भी अब बीजेपी सरकार है। कांग्रेस के लिए यह हालात चिंताजनक हैं। एक तरफ वह उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार जैसे बड़े राज्यों में वजूद के लिए जूझ रही है तो वहीं छोटे राज्यों में भी अब उसके आगे अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। वहीं भाजपा ने ओडिशा, बंगाल और केरल से लेकर पूर्वोत्तर तक में अपनी छाप छोड़ी है, जहां कभी उसका आधार नहीं था। लेकिन बीते 10 सालों में भाजपा ने इन इलाकों में तेजी से अपना विस्तार किया है।