भोजपुर में महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय “महादेव” महोत्सव का समापन
भोपाल
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा जिला प्रशासन—रायसेन के सहयोग से महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर मंदिर परिसर, भोजपुर में आयोजित तीन दिवसीय महादेव महोत्सव का समापन रविवार को हुआ। इस अवसर पर तीन सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं, जिसमें पहली प्रस्तुति सुशीला त्रिपाठी एवं साथी, भोपाल द्वारा लोकगायन, सुअमिता खरे एवं साथी, भोपाल द्वारा महादेव केंद्रित समूह नृत्य एवं सुरक्षा श्रीवास्तव एवं साथी, मुम्बई द्वारा भक्ति संगीत की प्रस्तुति दी गई। कलाकारों का स्वागत एसडीएम रायसेन चंद्रशेखर श्रीवास्तव एवं मंदिर के महंत पवन गिरी ने किया।
शीतल शाम और आध्यात्मिक वातावरण में सांस्कृतिक स्वर—छंद ने कला रसिकों को आत्मिक आनंद से भर दिया। प्रस्तुतियों का सिलसिला शुरू हुआ लोकगायन से, जिसमें सुशीला त्रिपाठी एवं साथी, भोपाल ने लोक की परंपराओं में महादेव के प्रति आस्था को स्वरों में प्रस्तुत किया। उन्होंने सर्वप्रथम भोला सजाए लाए पालकी…. दादरा प्रस्तुत किया। इसके बाद राग पीलू में कहरवा पेश किया, जिसके बोल थे भोला सजी के चले हैं….। प्रस्तुति को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मोरे अंगना मा आय भोलेनाथ…., फागुन शिव बउराने…., कितहू देखव ओ मेरी सखिया…., मांगू में वरदान भोला तोरे मंदिर मा…. की प्रस्तुति से श्रोताओं को भक्ति रस में भिगो दिया। उन्होंने प्रस्तुति का समापन कहरवा गाकर किया, जिसके बोल थे मईया झूले झूलना….। सुशीला त्रिपाठी के साथ हारमोनियम पर मांगीलाल ठाकुर, की—बोर्ड पर पंकज राव, बांसुरी पर सुमित प्रजापति, तबले पर तरुण यादव, ढोलक पर मोहित ठाकुर, परकशन पर शुभम नायक और सह—गायिका में सुराजकुमारी वर्मा और सुभूमि शर्मा ने साथ दिया।
इसके बाद शिव केंद्रित नृत्य प्रस्तुति की बेला आई, जिसमें सुअमिता खरे एवं साथी, भोपाल द्वारा प्रस्तुति दी गई। पहली प्रस्तुति अंगिकाम अभिनय दर्पण का प्रारंभिक श्लोक थी, जिसकी रचना आचार्य नंदकेश्वर ने की है और यह भगवान शिव को समर्पित प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में दिखाया कि शिव को भारतीय शास्त्रीय नृत्य के सभी रूपों में नटराज के रूप में पूजा जाता है। अंगिकम में सभी चार अभिनय भगवान शिव के व्यक्तित्व के माध्यम से दर्शाया गया है- सम्पूर्ण ब्रह्मांड उनका शरीर है। दूसरी प्रस्तुति शिव तांडव स्रोतम रही, जिसमें शिव जी का वर्णन कुछ इस प्रकार था जिन्होंने जटारूपी अटवी से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुए प्रवाह से पवित्र किये गये गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारणकर, डमरू के डम-डम शब्दों से मण्डित प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया, वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें। इसकी संगीत परिकल्पना पद्मशोवना नारायण की थी। तीसरी प्रस्तुति रुद्राष्टकम् का सारांश रही। यह रचना स्वामी तुलसीदास की पंद्रहवीं शताब्दी की है। भगवान शिव को वैदिक भगवान रुद्र के रूप में जाना जाता है। इस नृत्य में आठ में से चार सर्गों (छंदों) को लिया गया था। वह प्रतिपादन जो भगवान से जुड़े गुणों, कर्मों, विशेषताओं और रूपांकनों का वर्णन करता है शिव।
अंतिम दिन की तीसरी प्रस्तुति भक्ति एवं सुगम गायन की रही। भक्ति संगीत आत्मा से फूंटता है और परमात्मा से मिलन कराता है। ऐसा ही कुछ नजारा देश की सुप्रसिद्ध गायिका सुरक्षा श्रीवास्तव एवं साथी, मुम्बई द्वारा भक्ति संगीत की प्रस्तुति में देखने को मिला। उन्होंने अपने गायन की शुरुआत सुबह सुबह ले शिव…. से की। इसके बाद बजा बजा रमतूला…., तोड़ के बंधन…. पायो जी मैंने राम रतन…. और चंदन सा बदन…. से आध्यात्मिक अनुभूतियों से भर दिया। प्रस्तुति में आगे सुगम संगीत का सिलसिला चला, जिसका आगाज आने वाला पल…. से हुआ। अगले क्रम में पल पल दिल के पास…., जिंदगी प्यार का गीत…., दमा दम मस्त कलंदर…. की सुरीली प्रस्तुति से शमां बांध दिया। इसके बाद सुप्रसिद्ध गजल गायक पंकज उधास को समर्पित घुंगरू टूट गए…. गीत प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी सुरमई प्रस्तुति का समापन तू माने या न माने…. से किया।