उत्तराखंड में अवैध मजारों को हटाने का छह महीने का दिया अलीमेटम – CM धामी
नैनीताल
उत्तराखंड के जिम कार्बेट में मजारों की बढ़ती संख्या से सरकार एक्शन में आ गई है. प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि अवैध अतिक्रमण जहां भी होगा उसे सख्ती से हटाएंगे. हमने सभी को कहा है कि ऐसी जगहों से खुद ही अतिक्रमण हटा लें, अन्यथा सरकार हटाएगी. साथ ही सीएम ने आगे कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड (UCC) पर भी काफी काम हो गया है और हमारी कमेटी उस पर अंतिम मसौदे को तैयार करने के लिए आगे बढ़ रही है. इस पर कार्य अगले 2-3 महीनों में पूरा हो जाएगा.
उत्तराखंड का जिम कार्बेट नेशनल पार्क चर्चा में आ गया है. इसकी वजह पार्क के टाइगर नहीं, बल्कि बाघों के संरक्षण के लिए बने देश के सबसे पुराने नेशनल पार्क में मजारों की आई बाढ़ है. दरअसल, जिस जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में आप जंगली जानवरों को देखने के लिए जाते हैं, अब वहां जानवर कम और मजारें ज्यादा दिखती हैं.
जिम कॉर्बेट पार्क में अंदर करीब 1 किलोमीटर की दूरी तय करते ही आपको आपको मजारें दिखनी शुरू हो जाएंगी. इन मजारों पर चादरें चढ़ी हुई हैं. बाकायदा रंग-रोगन किया गया है. इसका मतलब यहां पर लोगों की आवाजाही होती है, जबकि ये एक रिजर्व क्षेत्र है. बिना अनुमित के यहां पर आवाजाही मना है. इसके बाद भी लोग यहां पहुंच रहे हैं.
जिम कार्बेट जाने वाले लोगों का दावा है कि साल 2000 के आस-पास ये मजारें बनना शुरू हुईं. पहले एक बनी और अब ये संख्या देखते ही देखते 50 तक पहुंच गई है. वहीं, उत्तराखंड में अब तक ऐसी एक हज़ार से ज्यादा मज़ारों को चिन्हित किया जा चुका है, जो वन विभाग या सरकार की दूसरी जमीनों पर अवैध कब्जा करके बनाई गई हैं और इनमें से अब तक 102 मज़ारों को सरकार ध्वस्त भी कर चुकी है.
जब इन मज़ारों पर बुलडोज़र चलाया गया और वहां इनकी जांच गई तो पता चला कि इन मज़ारों में जो कब्र बनी हुई हैं, उनमें से कई में मृत व्यक्ति के अवशेष नहीं हैं. यानी कब्र है और उस कब्र की एक मज़ार भी बनी हुई है. लेकिन उस कब्र में मानव अवशेष नहीं है.
जबकि मज़ार का अर्थ, उस स्थान से है, जहां किसी व्यक्ति की कब्र या समाधि होती है. मज़ार अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसमें ज़ा-र का मतलब होता है.. किसी से मिलने के लिए जाना. सरल शब्दों में कहें तो मज़ार किसी सूफी संत या पीर बाबा की उस कब्र को कहते हैं, जहां लोग ज़ियारत करने के लिए आते हैं. और ज़ियारत का अर्थ होता है.. उक्त जगह या समाधि के दर्शन करने आना.
यानी इसका सीधा मतलब ये है कि इन अवैध मज़ारों का निर्माण दो मकसद से किया गया है:-
पहला मकसद है- सरकारी ज़मीनों पर अतिक्रमण करना
और दूसरा- समाज के धार्मिक ढांचे पर भी अतिक्रमण कर लेना.
धर्म की आड़ में चलाए जा रहे इस मज़ार जेहाद को समझने के लिए उत्तराखंड में ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर तफ्तीश की और इस दौरान हम सबसे पहले नैनीताल ज़िले में पहुंचे. नैनीताल की रामनगर तहसील में आने वाले Jim Corbett National Park और एक टाइगर रिज़र्व एरिया है. यहां के जंगलों की ज़मीन उत्तराखंड के वन विभाग के अंतर्गत आती है और कानून कहता है कि यहां जंगलों के किसी भी क्षेत्र में कोई धार्मिक स्थल नहीं बनाया जा सकता और ना ही किसी तरह का कोई अतिक्रमण हो सकता है.
लेकिन जब हमारी टीम रामनगर के इसी टाइगर रिज़र्व एरिया में पहुंची तो हमें ये पता चला कि इस क्षेत्र में एक दो नहीं, बल्कि कई मज़ारें बनी हुई हैं. और इनमें कुछ मज़ारें तो ऐसी हैं, जो पिछले 10 से 15 वर्षों में बनीं. और ये मज़ारें देखने पर आपको काफी विशाल नज़र आएंगी. आरोप है कि इसी तरह से इन अवैध मज़ारों के आसपास पहले ईंटें इकट्ठा करके रखी जाती हैं. और फिर बाद में धीरे-धीरे सरकारी ज़मीन पर निर्माण किया जाता है. और यहां सबसे बड़ी चुनौती ये है कि इस तरह के अतिक्रमण को हमारे देश में अतिक्रमण माना ही नहीं जाता.
इसके अलावा इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इन अवैध और नकली मज़ारों पर हर साल भीड़ जुटाई जाती है, ताकि प्रशासन इन अवैध मज़ारों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई ना कर सके.
अब इस सवाल पर आते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में ये 'मज़ार जिहाद' कैसे हो रहा है? और इसका बड़ा कारण क्या है? तो इसका बड़ा कारण है- उत्तराखंड की तेज़ी से बदलती Demography. भारत के जिन दो राज्यों में मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ी है, उनमें असम के बाद उत्तराखंड दूसरे स्थान पर है.
वर्ष 2001 से 2011 के बीच उत्तराखंड में मुसलमानों की आबादी में दो प्रतिशत की वृद्धि हुई. जबकि इसी समय अवधि में हिन्दुओं की आबादी वहां दो प्रतिशत कम हो गई और इस दौरान उत्तराखंड में अतिक्रमण भी बहुत ज्यादा हुआ.
वर्ष 2001 में उत्तराखंड की कुल आबादी 84 लाख थी, जिनमें 10 लाख मुसलमान थे. लेकिन आज उत्तराखंड की कुल आबादी 1 करोड़ 15 लाख है, जिनमें 16 लाख मुसलमान हैं. यहां खतरनाक बात ये है कि उत्तराखंड की आबादी में ये जो असंतुलन आया है, उसकी वजह से वहां अतिक्रमण बढ़ा है.
आपको याद होगा कि पिछले दिनों हल्द्वानी में जब रेलवे अपनी जमीन से अवैध कब्जों को हटाना चाहता था तो इस पर काफी राजनीति हुई थी और ये कहा गया था कि इस जमीन पर अतिक्रमण करने वाले ज्यादातर लोग एक विशेष समुदाय से हैं, इसलिए ये कार्रवाई की जा रही है और तब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया था और शीर्ष अदालत ने भी हल्द्वानी में बुलडोज़र चलाने पर रोक लगा दी थी.