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छत्तीसगढ़ के सुगंधित चावल दुबराज को मिला GI टैग, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ेगी डिमांड

रायपुर

 छत्तीसगढ़ के बासमती नाम से प्रसिद्ध ‘नगरी दुबराज’ को GI मिल गया है। ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और राज्य सरकार की मेहनत रंग लाई।ये दुबराज राज्य की दूसरी फसल होगी जिसके पास जीआई टैग होगा। इसके साथ ही दुबराज अब ब्रांड नेम हो गया। इसका फायदा नगरी के लोगों को मिलेगा। 2019 से अबतक केवल सरगुजा जिले के ‘जीराफूल’ चावल के पास जीआई टैग था।

जीआई टैग भारत सरकार की ओर से दिया जाता है। यह उन चीजों के लिए दिया जाता है, जो बहुत खास होती है और किसी क्षेत्र विशेष में पैदा होती है या बनाई जाती है। इंदिरा कृषि विश्वविद्यालय लंबे समय से नगरी दुबराज के GI टैग के लिए कोशिश कर रहा था। अधिकारियों का कहना था कि नगरी दुबराज राज्य की पहचान है। लेकिन यह बातें भी सामने आई थी कि कई लोग इस धान के नाम का उपयोग कर रहे थे और धान बेच रहे थे।

 इस वजह से यहां के किसानों को ज्यादा फायदा नहीं मिल पा रहा था। दुबराज में कई तरह की खूबियां हैं। यह यहां की धरोहर जैसी है। इस लिहाज से जीआई टैग के लिए इसका प्रस्ताव भेजा गया था। दुबराज को नगरी के लोगों ने सहेजकर रखा है। अब जीआई मिलने के बाद इसके उत्पादन को लेकर वहां के लोगों के अधिकार सुरक्षित हो जाएंगे। वे ही अब इस नगरी दुबराज के नाम से इसे पैदा कर सकेंगे और बेच सकेंगे।

 जिला धमतरी के नगरी दुबराज उत्पादक महिला स्व-सहायता समूह’मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह’ को नगरी दुबराज हेतु जीआई टैग प्रदान किया गया है। अब कोई दूसरा इस नाम का उपयोग नहीं करेगा। ऐसा करने पर उनपर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। अब किसान अच्छे से इसकी खेती करेंगे, इस वजह से इसके विलुप्त होने का डर नहीं होगा। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने नगरी दुबराज को जी.आई. टैग मिलने पर कृषक उत्पादक समूह को बधाई और शुभकानाएं दी हैं।

जानिए इसकी खासियत

दुबराज छत्तीसगढ़ का एक सुगंधित चावल है। जिसके छोटे दाने है और जो खाने में नरम है। ये एक देशी किस्म है। इसकी ऊंचाई छह फूट तक चली जाती है। जिसके कारण उत्पादन कम होता था। इसमें सुधार कर ऊंचाई कम की गई। पकने की अवधि 150 दिन थी, अब 125 पर आ गई है। दरअसल नगरी दुबराज का उत्पत्ति स्थल सिहावा के श्रृंगी ऋषि आश्रम क्षेत्र को माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रृंगी ऋषि आश्रम का संबंध राजा दशरथ द्वारा संतान प्राप्ति के लिए आयोजित पुत्रेष्ठि यज्ञ और भगवान राम के जन्म से जुड़ा हुआ है। कई शोध पत्रों में दुबराज चावल का उत्पत्ति स्थल नगरी सिहावा को ही बताया गया है।

33 किस्में, अलग क्षेत्रों में नाम भी खास

 छत्तीसगढ़ में सुगंधित चावल की 33 किस्में हैं। इनमें बादशाह भोग- बस्तर, चिंदी कपूर – रायगढ़, चिरना खाई-बस्तर, दुबराज-रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, बिलासपुर, महासमुंद, जांजगीर, कोरबा, कांकेर, गंगाप्रसाद-राजनांदगांव, कपूरसार-रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कुब्रीमोहर-रायपुर, दुर्ग, लोक्तीमांची-बस्तर, मेखराभुंडा-दुर्ग, समोदचीनी-बिलासपुर, सरगुजा, शक्कर चीनी-सरगुजा, तुलसीमित्र-रायगढ़, जीराफूल-सरगुजा प्रमख हैं।

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