स्वार विधानसभा उपचुनाव में सटीक रहा शफीक पर दांव, आजम खान का आखिरी किला भी ढहा
रामपुर
पहले रामपुर शहर और अब स्वार सीट भी सत्तादल ने सपा के राष्ट्रीय महासचिव मोहम्मद आजम खान के हाथों से छीन ली। भाजपा ने अपना दल (एस) के प्रत्याशी शफीक अहमद अंसारी पर दांव खेलकर आजम का आखिरी किला भी ढहा दिया। यहां से आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम लगातार दो बार रिकार्ड मतों से विजयी हुए थे।
रामपुर में आजम और सपा एक-दूसरे के पर्याय हैं या यूं कहें कि यहां सपा ही आजम और आजम की सपा है। सपा के प्रत्याशियों के चयन से लेकर अंदरूनी तमाम मामलों में रामपुर में आजम का निर्णय ही सपा में सर्वमान्य रहता है। यहां प्रत्याशियों का ऐलान हमेशा ही आजम करते हैं। लेकिन, सूबे में योगी सरकार आने के बाद से मुश्किलों में घिरे आजम का सियासी रसूख तो कमजोर पड़ा ही, सियासी किला भी एक-एक कर ढह गया। आजम खुद 2019 में रामपुर के सांसद चुने गए थे लेकिन, आजम के इस्तीफा के बाद 2022 में हुए उप चुनाव में भाजपा के घनश्याम लोधी सांसद बन गए, आजम को करारा झटका मिला। इसके बाद सजायाफ्ता होने पर आजम की विधायकी चली गई, बीते वर्ष नवंबर-दिसंबर में हुए उप चुनाव में आकाश सक्सेना ने आजम का दुर्ग ढहाकर पहली बार रामपुर की पथरीली जमीन पर कमल खिला दिया। इसके बाद मुरादाबाद के चर्चित छजलैट प्रकरण में अब्दुल्ला आजम सजायाफ्ता हो गए, लिहाजा स्वार सीट पर उप चुनाव हुआ तो सत्तादल ने मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी शफीक अहमद अंसारी पर दांव लगाया और आजम का अंतिम दुर्ग भी ढहा दिया। मालूम हो कि स्वार सीट लगातार दो बाद से सपा के पास थी।
दो बार लगातार जीते अब्दुल्ला
आजम खां के बेटे अब्दुल्ला आजम इस सीट से लगातार दो बार विजयी हुए। वह सबसे पहले 2017 में विधायक चुने गए। लेकिन, 16 दिसंबर 2019 को हाईकोर्ट ने कम उम्र में चुनाव लड़ने का दोषी ठहराते हुए अब्दुल्ला का निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद 2022 के चुनाव में भी सपा ने अब्दुल्ला आजम पर दांव खेला। इस बार भी अब्दुल्ला ने जीत दर्ज करायी लेकिन, मुरादाबाद की एमपी-एमएलए कोर्ट से सजा होने के बाद दोबारा अब्दुल्ला की विधायकी छिन गई।
स्वार को रास नहीं आयी सपा
स्वार विस सीट पर तीन बार सपा विजयी हुई लेकिन, तीनों ही बार सपा के विधायक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। वर्ष 2007 में नवाब काजिम अली खां सपा के टिकट पर यहां से विधायक चुने गए थे लेकिन, सूबे में बसपा की सरकार आने पर उन्होंने सपा से त्याग पत्र दे दिया और दोबारा चुनाव लड़े। इसके बाद 2017 और 2022 में दो बार अब्दुल्ला विधायक बने लेकिन, वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।