जगदलपुर
78 साल पहले जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिराए जाने से जापान के दो लाख चालीस हजार लोगों की मौत हुई थी। सब नष्ट होने से जापान की कमर टूट गई। उस वक्त भारत ने बैलाडीला का 40 लाख टन लौह अयस्क देकर जापान को बड़ी मदद की थी। इससे स्टेपलर, नेलकटर, मोटर गाड़ियों का इंजन, इलेक्ट्रानिक सामान बनाकर जापान विश्व में फिर सुदृढ़ हुआ। जापानी मानते हैं कि उनकी मजबूत रीढ़ में बैलाडीला का ही लोहा है।
बोस ने खोजा बैलाडीला में अयस्क
19 वीं सदी के अंत में ख्यातिप्राप्त भूगर्भशास्त्री पीएन बोस खनिजों की खोज करते बैलाडीला पहुंचे थे। उन्हें यहां मिला उच्च कोटि का लौह अयस्क। तत्पश्चात वर्ष 1934 – 35 में भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के डा. क्रुकशंक ने बैलाडीला इलाके का सर्वेक्षण कर भूगर्भीय मानचित्र बनाया और ऐसे 14 अयस्क भंडारों को चिन्हित किया।
जापान के कारखानों में ताला
वर्ष 1945 में 6 और 9 अगस्त को अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिराया। जिससे जापान तबाह हो गया। वहां के उद्योग धंधे ठप हो गए। इस्पात कारखानों में ताला जड़ने की नौबत आ गई थी। उस दौरान लौह अयस्क पर अध्ययन कर रहे टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रो.एउमेउरा ने जापान के इस्पात मिलों के संगठन को बैलाडीला के उच्च कोटि के लौह अयस्क की जानकारी दी।
भारत से किया समझौता
वर्ष 1957 में उनका प्रतिनिधि मंडल मि.असादा के नेतृत्व में भारत पहुंच विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण किया। उनके अध्ययन और संतुष्टि से ही भारत और जापान के बीच समझौते की बुनियाद रखी गई थी। मार्च 1960 में भारत सरकार एवं जापानी इस्पात मिलों के संगठन के मध्य हुए अनुबंध के तहत ही बैलाडीला से 40 लाख टन कच्चे लोहे का निर्यात जापान किया जाना तय हुआ था।
अयस्क ढोने बिछाई रेल लाइन
इसके लिए जापान सरकार ने किरंदुल से लेकर विशाखापट्टनम तक 445 किमी लंबी रेल लाइन बिछाई और विशाखापट्टनम बंदरगाह में पानी जहाजों में लौह अयस्क लाद जापान पहुंचाया। उधर भंडारण की समस्या को देखते हुए वह बैलाडीला से प्राप्त लौह अयस्क को समुद्र में डूबा कर रखने लगा तथा समयानुसार समुद्र से निकाल उपयोग करता रहा।
तोकापाल प्रायमरी स्कूल में पढ़े तथा जापान की प्रतिष्ठित ब्वायज एंड मूर्स कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट पद पर कार्यरत अविनाश तिवारी बताते हैं कि भारत की उदार नीति के प्रति जापान कृतज्ञ है। उसके संबंध भारत से बेहतर हैं। आज भी कोई जापानी बस्तर पहुंचता है तो अपने देश की रीढ़ को मजबूत करने वाले लौह अयस्क से परिपूर्ण बैलाडीला को देखना नहीं भूलता।